जैसे ही वो खाट पर दोबारा लेटी कि बाहर से कुत्तों के भौंकने की तेज आवाज़ सुनकर वो फिर से दरवाज़े की तरफ भागी. कुतिया को चार कुत्ते घेरे अपने पैने दांतों से चुनौती दे रहे थे. कुतिया भी अपने पिल्लों की हिफाज़त में खड़ी लगातार भौंके जा रही थी. पिल्ले बेचारे सहमे हुए अपनी मां को देख रहे थे. बिंदिया दरवाज़े पर खड़ी ये सब देखती रही. वो कुत्ते गुर्रा ज़रूर रहे थे लेकिन चाह कर भी पिल्लों तक पहुंच नहीं सके. सारे एक -एक करके लौट गए. कुतिया पिल्लों के पास आकर बैठ गई. उन्हें सूंघने लगी. पिल्ले भी मां को घेरकर उस पर लुढ़कने लगे. बिंदिया भीतर आ गई. जैसे ही पानी का घड़ा भरे अम्मा झोपडी में घुसी बिंदिया ने ताली बजा-बजा कर कुतिया की वीरगाथा सुनाई. अम्मा ने घड़ा रख दिया. फिर बिन्दिया को पुचकार कर बोली ‘जानवरों को अपने बच्चो से बड़ा प्यार होता है. खुद को कुछ भी हो जाए मगर किसी को अपने बच्चे नहीं छूने देते’दोनों मां -बेटी बात कर ही रहे थे कि बस्ती के ही तीन आदमी बिन्दिया के बापू को उठाकर अन्दर ले आए. उसे खाट पर लिटा दिया . ‘ध्यान रखो इसका. सडक पर पड़ा था रात से.‘ उनमें से एक पसीना पोंछते हुए बोला. फिर तीनों बाहर निकल गए. बिन्दिया का बापू खाट पर बेहोश पड़ा था. सारे कपड़े मिट्टी में सने थे. अम्मा चुप थी. करीब जाकर खाट से नीचे लटके पति के पांव ऊपर कर दिए. सूरज छिप गया था. तारों ने आसमान में हाज़िरी लगा दी . बिन्दिया अम्मा के पास अचार-रोटी खा रही थी. बापू दोपहर में होश आने के बाद से फिर गायब था. अम्मा हमेशा की तरह चूल्हे में ही लगी थी. एक पिल्ला झोंपड़े के दरवाज़े पर आ गया. इससे पहले कि बिन्दिया पिल्ले के करीब जाती, बिन्दिया के बापू ने अन्दर घुसते हुए पिल्ले को लात मारी. पिल्ला दर्द से चांय-चांय करता बाहर भागा. दोनों मां - बेटी चौंक गई. एक और आदमी बापू के पीछे-पीछे अन्दर घुसा. बापू ने बिन्दिया की तरफ उंगली उठाई. कोई कुछ समझता इससे पहले ही वो आदमी आगे बढ़ा और बिन्दिया की कलाई मज़बूती से पकड़ ली. वो गुर्राया - ’चल खड़ी हो .‘ उसके हाथ से रोटी गिर पड़ी . ‘छोड़ मेरी बच्ची को!!’ अम्मा लपकी लेकिन बिन्दिया के बापू ने बीच ही में उसे दबोच लिया. वो आदमी बिन्दिया को खींच कर बाहर ले जाने लगा. बिन्दिया रो पड़ी. खुद को उस कैद से छुड़ा पाने मे नाकामयाब बिन्दिया मां को पुकार रही थी – ‘मुझे छुड़ाओ अम्मा. अम्मा .’ बिन्दिया के बापू ये क्या कर रहे हो ? अपना हाथ दूसरे हाथ से छुड़ाती अम्मा ने रोते हुए पूछा . ‘अरी बेच दिया इस बोझ को.‘ – बिन्दिया के बापू ने जवाब दिया. अम्मा का सिर घूम गया जैसे हथौड़ा पड़ा हो. बिन्दिया घिसटते हुए बाहर जा चुकी थी. अपना हाथ छुड़ाकर बिन्दिया की अम्मा भागी. दरवाजे से बाहर पहुंची ही कि पीछे से बिन्दिया के बापू ने फिर उसे जकड़ लिया. बिन्दिया रोती घिसटती अम्मा की तरफ देखती चली जा रही थी. तभी अचानक गली के कई कुत्ते पिल्लों की तरफ बढ़े. कुतिया फिर उनके सामने खड़ी होकर गुर्राने लगी. उन्हें देख अम्मा के ज़हन मे अपनी ही बात गूंजी – “जानवरों को अपने बच्चों से बड़ा प्यार होता है. खुद को कुछ भी हो जाए मगर किसी को अपने बच्चे छूने नहीं देते.'' ये भी पढ़ें 17 सालों से बुढ़िया वहीं बैठी-बैठी गाली और दिलबाग खा रही है आप कहानी लिखते हैं? हमको भेज दीजिए न. जैसे इन लोगों ने भेजी. पता है thelallantopmail@gmail.com
'जानवरों को अपने बच्चों से बड़ा प्यार होता है'
एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए नितिन ठाकुर की कहानी.
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फोटो - thelallantop
“अम्मा देख किन्ना प्यारा पिल्ला है!” आंखें चमकाती हुई बिंदिया रोटी बनाती हुई अपनी मां के पास आकर बैठ गई. “तू फिर ठा लाई इसे.” झुंझलाकर अम्मा ने तवे पर रखी रोटी पलटी. बिंदिया पिल्ले को लेकर खाट पर बैठ गयी और लाड करने लगी. पिल्ला भी सर्दी में गद्दे की गरमाई पा कर नीचे को धंस गया. “अम्मा इसे एक रोटी दे ना.” बिंदिया ने पिल्ले के वास्ते दरयाफ्त की. अम्मा चुपचाप रोटी सेंकती रही. बिंदिया को भी पता था कि अम्मा रोटी नहीं देगी, फिर भी उसने कह ज़रूर दिया. क्या पता कभी कभार की तरह अम्मा आज भी रोटी दे ही दे. बेचारी अम्मा भी क्या करे, गरीबी ने इस लायक छोड़ा कहां कि कुत्ते को रोटी दे. “अम्मा... बापू कहां हैं?” बिंदिया चुप रहने वालों में कहां, फिर बोली. “मुझे क्या पता कहां हैं, ताश- दारु चल रे होंगे कहीं.” बिंदिया को जैसी उम्मीद थी वो ही हुआ. अम्मा को बापू पर पहले से ही गुस्सा आ रहा था. अगर बिंदिया के बापू घर पर नहीं हैं तो कहां होंगे ये तो बस्ती में रहने वाला बच्चा भी जानता है. अम्मा सुबह से ही खामोश है इसलिए बिंदिया बस अम्मा से कुछ भी बुलवाना चाहती थी. अपनी मां को चुप देखकर बिंदिया का भी दम सा घुटने लगता है. बिंदिया पिल्ले को पुचकार रही थी. पिल्ला भी कभी बिंदिया की गोद में और कभी गद्दे की गरमाई में खूब अठखेलियां कर रहा था. उसके मुंह से अपना मुंह चिपकाते हुए अम्मा को मनाते हुए बिंदिया बोली- “ मेरी प्यारी अम्मा गुस्सा है?” अम्मा चुप ही रही. उसकी आंखें चूल्हे में जल रही आग पर कहीं टिकी थीं. बिंदिया को पता था की अम्मा आज उदास है. उनकी आंखों से दो आंसू गाल पर ढुलक आए. बिंदिया अब खाट से उतर आई. अम्मा के गले में पीछे से अपनी बाहों का घेरा डालकर झूल गयी. “बोलो ना अम्मा.” बेटी के लाड से मजबूर हो अम्मा ने उसे गोद में बैठा लिया और फिर बालों में प्यार से हाथ फिराने लगी. “तू ना समझेगी बिंदिया. ले तू पिल्ले को रोटी खिला दे.” लकड़ी की टोकरी में रखी एक ताज़ा बनी रोटी अम्मा ने बिंदिया के हाथ में थमा दी. बिंदिया को तो जहान मिल गया. खाट पर लोटते पिल्ले को रोटी खिलाने के लिए अम्मा की गोद से उठ गई. अम्मा ने साडी के पल्लू से आंखों की नमी पोंछ ली. रात के आठ बज गए थे. शहर की ऊंची इमारतों में उजाला फैल गया था जिसका अक्स नदी के बहते पानी में बन बिगड़ रहा था. गर्मी में काफी लोग नदी की तरफ घूमने निकलते थे मगर हाड़ कंपाती ठण्ड में इक्का-दुक्का को छोड़कर कोई दिख नहीं रहा था. इस तरफ बसी अवैध बस्तियां अंधेरे में गुम होने के लिए बनी थीं सो घर के उपेक्षित बुजुर्ग की तरह गुम ही थीं. खिचड़ी की तरह एक दूसरे में घुसे- चिपके प्लास्टिक और खपरैल की छत वाले छोटे छोटे झोंपड़ों में ऐसा सन्नाटा पसरा था कि लगता नहीं था कि यहां जिंदगी सांसें ले रही होगी. एकाध बिजली का बल्ब उम्मीद की तरह कहीं टिमटिमा रहा था मगर ज्यादातर झोपडियों में मोमबत्ती अपनी हैसियत के हिसाब से रोशनी फैलाने की कोशिश कर रही थी. हल्की बारिश ने सर्दी को मारक बना दिया. चीथड़ों में खुद को गरमाने की कशमकश जारी थी. झोंपड़े में बिंदिया अम्मा की बगल में बेसुध सो रही थी. बाहर कुतिया अपने पिल्लों को खुद में दुबकाए उन्हें गरमाहट दे रही थी. कूं- कूं करते पिल्ले एक के ऊपर एक पड़े थे. तभी झोंपड़ी के दरवाज़े पर पड़ा झीना सा पर्दा हिला. तीसेक साल की सांवली काया वाली एक औरत ने परदा हटाया. हौले से बिंदिया की अम्मा को आवाज लगायी – “जिज्जी”. नींद में डूबती उतरती बिंदिया की अम्मा की आंख झट से खुल गयी -“आ जा कमला.” कमला पैर दबाकर अंदर आ गयी. कंपकंपाती देह और मुंह से “सी-सी” की आवाज़.. उस पर जाड़े का असर पता चल रहा था. “जिज्जी सो गयी थी क्या?“ “नहीं री,बिंदिया को सुला रही थी.” अम्मा उठकर बैठ गयी. “बिंदिया के बापू नहीं लौटे क्या?” ज़मीन पर पड़े बोरे के टुकड़े पर बैठ कमला बोली. “तुझे पता तो है. कहीं जमी होगी चौकड़ी. आज तो गांठ में पैसे भी होंगे न, लुट लुटाकर आते होंगे.” “पैसे कहां से आये जिज्जी?’कमला ने ठण्ड के मारे टांगें और सिकोड़ लीं. “चार बर्तन आज और उठाकर ले गए.बेच दिए होंगे वो ही.”अम्मा रुआंसी हो गयी. “तुमने रोका नहीं.” “परसों रोका तो कमर में बेंत बजाया था, उसका लगा चीस रहा है अबतक.”बिंदिया की अम्मा की आंखों में नमी जमा हो गयी. “हां जिज्जी शोर तो सुन रहा था हमें भी.. पर बताओ क्या करें...”कह कर बेबसी से चुप हो गयी कमला. दोनों अपने- अपने शून्य में ताक रही थीं. बारिश का शोर और पिल्लों की कूं कूं सुनाई पड़ रही थी. रात भर पानी रुक रुक कर बरसता रहा ..बाहर भी और अम्मा की आंखों से भी. मौसम खुल गया था. धूप खिल रही थी. बस्ती में रोज़ की वही चहल पहल थी. सरकारी नल से पानी भरती औरतें आपस में लड़ रही थीं और उनकी गोद से चिपटे बच्चों का रोना कोरस में बज रही धुन की तरह सुनाई पड़ रहा था. शोर ने बिंदिया को जगा दिया. अम्मा ने परदा हटा दिया था जिससे धूप झोंपड़े के खाली कोनों को रोशन कर रही थी. बिंदिया खाट से खड़ी हो गयी. अधमुंदी आंखों से देखते हुए बाहर निकल आई. झोंपड़े के दाहिने तरफ दो पिल्ले आपस में खेल रहे थे और बाकी दो आंखें बंद किये पड़े थे. सांस लेते हुए उनका पेट बार बार फूल जाता था. ये देखकर बिंदिया को बड़ा मज़ा आया. पिल्लों की मां सड़क पर कुछ ही दूर थी. बिंदिया अंदर लौट आई.
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