ये तब की बात है, जब टीपू के पापा मर चुके थे. 1782 का साल था वालिद की मौत का. तब तक टीपू की दो शादियां हो चुकी थीं. एक अम्मी के परिवार को खुश करने के लिए, दूसरी अब्बू के. हैदर अली ने खूब तरक्की की थी. अंग्रेजों को नाथ के रखा था. मराठों से भी कभी लड़ाई तो कभी सुलह का रास्ता अपनाया था. फ्रांसीसियों की खूब मदद ली थी. जब उनकी मौत हुई तो टीपू उनसे बहुत दूर था. वफादार सरदारों ने कई दिनों तक लाश को एक गुंबद में छिपाकर रखा. टीपू के पहुंचने के बाद ही हैदर की मौत का ऐलान किया गया. और कुछ ही बरसों के भीतर टीपू सुल्तान ने अपना राज्य बाप से भी बड़ा कर लिया. कृष्णा नदी से तुंगभद्रा नदी तक. साउथ में बड़े राज्यों के नाम पर सिर्फ त्रावणकोर बचा था. बाद में इसी से भिड़ंत टीपू के पतन और फिर मौत का कारण बनी. मगर ये सब बातें तो खूब पता हैं. आज हम बतियाते हैं टीपू के टाइम टेबल के बारे में. इसका पता कैसे चला.
दरअसल, जब टीपू अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में अंग्रेजों से लड़ते हुए मारा गया, तब उसकी रियासत के तमाम कागज अंग्रेज साथ ले गए. ये सुरक्षित हैं अब तक. इन्हीं को पढ़कर इतिहासकार केट ब्रिटिलबैंक ने एक किताब लिखी. टाइगर- द लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान के नाम से. इसे छापा है जगरनॉट बुक्स ने. कीमत है 399 रुपये. वहीं से ये ब्यौरे लाए हैं हम, जो आगे पढ़ेंगे आप. 
जब टीपू किसी लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए राजधानी के बाहर नहीं होता, तब उसकी रिहाइश तीन घरों में होती. पहला उसका मुख्य महल, जो किले के भीतर था. इसके अलावा आईलैंड के बीच में बना दरिया दौलत बाग. तीसरा था लाल बाग, जो उनके अब्बू हैदर अली की कब्र के पास था. तो इन तीन घरों में क्या करते थे टीपू राजा.
1. सुबह सवेरे उठते. शौचादि से निवृत्त होते. फिर नमाज पढ़ते. हैदर अली खुद ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे. सैनिक से तरक्की करते हुए पहले फौजदार और फिर नवाब बने थे. मगर टीपू की धार्मिक, दार्शनिक पढ़ाई पर उन्होंने खूब ध्यान दिया था. इसलिए टीपू धार्मिक भी ज्यादा था. अंग्रेजों से तीसरा युद्ध हारने के बाद तो भयानक कठमुल्ला हो गया था. जेहाद की बात किया करता था रात दिन. अपनी लड़ाई को इस्लाम बनाम ईसाइयत का रंग देना चाहता था. ये बात और है कि इस लड़ाई के लिए तुर्की खलीफाओँ के साथ साथ फ्रांसीसियों से भी मदद मांगता था, जो ईसा को मानने वाले थे.
2. प्रार्थना के बाद टीपू अपने महल में ही वर्जिश करता. उसके फौरन बाद एक हल्का फुल्का नाश्ता. फिर बारी आती चिट्ठी पत्री और जरूरी आदेशों को जारी करने की. इसी दौरान अपनी करीबी सलाहकारों से भी दुआ सलाम करता और हालचाल जानता. 3. सुबह सवेरे रोज रोज टीपू के कुंडली बांचने वाले, सितारों की गति देख भविष्य बताने वाले और डॉक्टर साहब, ये तीनों आ जाते. तीनों अपने अपने ज्ञान के हिसाब से टीपू और राज्य के बारे में अंदेशे जाहिर करते. टीपू के पापा को खून में इन्फैक्शन के चलते घाव हो गया था. उसी के चलते 62 की उमर में मरे थे. टीपू अपनी सेहत को लेकर तब से ज्यादा फिक्रमंद रहने लगा था.
4. मैसूर राज्य में हुसड़ के बगिया थीं. खूब फल फूल सब्जियां होतीं. सब तरफ से राजा को डलिया पहुंचती. टीपू सबको देखते. जो अच्छे फल सब्जियां होते, उसे अपनी रसोई के लिए भिजवा देते. कुछ बचते उन्हें रानियों के लिए. और बाकी मंडी में बेच दिए जाते. अब बज गए सुबह के 9. टाइम हो गया बड़े नाश्ते का. इस दौरान दस्तरखान पर उसके साथ दो तीन बेटे होते. साथ में सीनियर काबीना मंत्री भी. यहीं आगे की आइटनरी तय होती.
5. नाश्ता झांपने के बाद टीपू सुल्तान तैयार होते. बाहर जाने के लिए. पगड़ी पहनते, हीरे जवाहरातों से सजी. मोतियों की माला. अंगूठियां. उनकी पोशाक में एक विदेशी चीज भी होती. लटकने वाली घड़ी. जैसी अपने बापू जी टांगा करते थे अंग्रेजों से लड़ते वक्त. यूं सज धज के टीपू अपने दरबार पहुंचता. यहां सब चीजें भयानक प्रोटोकॉल की मारी होतीं. कौन कहां बैठेगा. कब बोलेगा, कौन आएगा, जब आएगा तो क्या करेगा. कितने सलाम ठोंकेगा. असल बात से पहले कित्ती उपमाएं और रूपक खर्च करेगा, सब तय था. फरियादियों के अलावा तमाम विभागों के मुखिया आते और रोजनामचा पेश करते. यहीं पर डाक विभाग के मुखिया आते और राज्य के सब हिस्सों के समाचार कहते. दूसरे राज्यों में तैनात राजदूत भी अगर आए होते तो इसी वक्त मिलते.
6. ये पूरा मामला चलता 3 बजे तक. राजकाज के इस फेरे में आखिरी में नंबर आता अपराधियों को सजा सुनाने का. किसी ने ज्यादा खतरनाक अपराध किए होते, तब तो मौत पक्की थी. मगर वैसे भी सजा तगड़ी होती थी. कान काटने और नाक काटने की सजा पेल कर दी जाती थी. चाबुक मारने का भी विधान था. 7. दरबार बर्खास्त. अब सुल्तान आराम करेंगे. घड़ी में बज गए पूरे 3. एक घंटा दोपहर की नींद के लिए. उसके बाद अल्लाह को याद करेंगे. और फिर रवाना होंगे. कभी फौज फाटा देखने जाएंगे. कभी तोपघर और बारूदघर देखने. अगर कहीं नहर, सड़क या बिल्डिंग बन रही होती तो उसके इन्सपेक्शन की भी बारी आ सकती है. टहलते टहलते हथकरघा उद्योग की यूनिट भी चेक हो सकती है.
8. ये सब काम निपटाने के बाद वापस महल. किसी एक रानी के पास. और दिन का बचा खुचा टाइम बच्चों संग खेलने में. उनकी पढ़ाई लिखाई और घरेलू मसलों का हाल सुनने में बीतता. ये था टीपू का टाइम टेबल. ज्यादा सालों तक नहीं चल पाया. 1790 में ब्रिटिश सेना के साथ तीसरी लड़ाई शुरू हो गई. टीपू ने कैलकुलेशन गड़बड़ की थी. उसने त्रावणकोर के राजा की नाफरमानी को दिल पे ले लिया. और उनकी सीमा पर जोरदार झड़प शुरू कर दी. अंग्रेजों को बहाना मिल गया. उन्होंने पिछली संधि को डाला डस्टबिन में और चढ़ाई शुरू कर दी. इस बार टीपू बुरी तरह हारा. आधे से ज्यादा राज्य मराठों, हैदराबाद के नवाब और अंग्रेजों के पास चला गया. इन सबमें साल बीत गए चार.
1794 में वापस श्रीरंगपट्टनम आया. मगर उथलपुथल नहीं थमी. अंग्रेजों को पटखनी देने की जुगत में लगा रहा. इसी के वास्ते मॉरीशस संदेश भिजवाया मदद का. मगर दांव उलट गया. अंग्रेजों को पता चल गया और उन्होंने राजधानी पर चढ़ाई शुरू कर दी. साल था 1799. दिन 4 मई का आया और टीपू खेत रहा.
अब उसकी विरासत को लेकर राजनेता, इतिहासकार तथ्यों का खलिहान लीपने में लगे हैं.
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