The Lallantop

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: दो अनुभूतियां

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं.

post-main-image
फोटो - thelallantop
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री. एक बार नहीं तीन बार उन्हें इस राष्ट्र के प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ. लेकिन वो सिर्फ नेता नहीं थे, उन विरले नेताओं में से थे, जिनका महज साहित्य में झुकाव भर नहीं था. वो खुद लिखते भी थे. कविताएं. विविध मंचों से और यहां तक कि संसद में भी वो अपनी कविताओं का सस्वर पाठ कर चुके हैं. उनकी कविताओं का एक एल्बम भी आ चुका है जिन्हें जगजीत सिंह ने भी अपनी अावाज़ दी है. पढ़िए उनकी कविता-  

दो अनुभूतियां

 

पहली अनुभूति:

गीत नहीं गाता हूं

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं गीत नहीं गाता हूं लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद राहू गया रेखा फांद मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं गीत नहीं गाता हूं

दूसरी अनुभूति:

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं


ये भी पढ़ें: अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: न दैन्यं न पलायनम् अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: मैंने जन्म नहीं मांगा था अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: हिरोशिमा की पीड़ा अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं
कविता वीडियो: मां पर नहीं लिख सकता कविता