‘मैं पूरे आदर के साथ कहना चाहूंगा कि उनसे हमारी सरकार या व्लादिमीर पुतिन को कोई ख़तरा नहीं था. अगर आप पुतिन या पूरी सरकार की पॉपुलैरिटी से तुलना करें तो नेम्तसोव साधारण नागरिकों से थोड़े ही ऊपर थे.’ये नेम्तसोव और उनकी हत्या को कमतर करके आंकने की कोशिश थी. लेकिन क्या ये कोशिश कामयाब होने वाली थी? क्या मामला इतना साफ़-सुथरा था? क्या ये सब पुतिन को बदनाम करने के लिए किया गया था? शायद नहीं. इस कहानी में कई पेच बाकी थे. आज हम जानेंगे, - बोरिस नेम्तसोव की पूरी कहानी क्या है? - उन्हें क्यों और किसके इशारे पर मारा गया था? - और, हाल में हुए खुलासे से क्या नया पता चला है? पहले इतिहास की बात. बोरिस नेम्तसोव का जन्म अक्टूबर 1959 में हुआ था. सोच्चि में. ये शहर ब्लैक सी के किनारे पर बसा है. याद रखने के लिए एक फ़ैक्ट बता देता हूं. 2014 में पहली बार रूस को विंटर ओलंपिक्स की मेज़बानी मिली थी. रूस ने गेम्स का आयोजन सोच्चि में ही किया था. जब नेम्तसोव 09 बरस के हुए, उनका परिवार गोर्की आ गया. सोच्चि से दो हज़ार किलोमीटर दूर. गोर्की को बाद में निझनी नोवग्रोद के नाम से जाना गया. नेम्तसोव ने रेडियोफ़िजिक्स में अपना करियर बनाने की योजना बनाई. 1981 में ग्रेजुएट हुए. फिर रिसर्च इंस्टिट्यूट में साइंटिस्ट के तौर पर काम करने लगे. 1985 में उन्होंने फ़िजिक्स में पीएचडी पूरी की. वो अपना जीवन रिसर्च में झोंकने के लिए तैयार थे. इसी बीच में एक कांड हो गया. 26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल में न्युक्लियर रिएक्टर में बड़ा हादसा हो गया. उसी समय सोवियत सरकार गोर्की में न्युक्लियर हीटिंग प्लांट बनाने की तैयारी कर रही थी. नेम्तसोव ने इसका जमकर विरोध किया. उनके तीन साल इसी आपाधापी में गुजरे. उनके प्रयासों से गोर्की में न्युक्लियर पॉवर स्टेशन का काम रोकना पड़ा. ये ऐपिसोड नेम्तसोव के जीवन की दशा और दिशा बदल देने वाला था. 1990 के साल में नेम्तसोव को रूस की संसद में नियुक्ति मिल गई. वहां वो बोरिस येल्तसिन की नज़र में आए. जून 1991 में रूस में पहला राष्ट्रपति चुनाव हुआ. येल्तसिन जीते. इस जीत में नेम्तसोव की भी भूमिका थी. उन्हें इसका फायदा भी मिला. उन्हें नोवग्रोद प्रांत का गवर्नर बना दिया गया. येल्तसिन ने नियुक्ति के समय नेम्सतोव से कहा था, तुम्हारी उम्र 31 साल है. मैं तुम्हें दो महीने के लिए गवर्नर बना रहा हूं. अगर तुम काम नहीं कर पाए तो अपना बोरिया-बिस्तर समेट लेना. नेम्तसोव ने काम किया. कुर्सी पर बने रहे. दोबारा चुनाव जीते. मार्च 1997 में उन्हें डिप्टी पीएम बनाया गया. उस समय नेम्तसोव की सफ़लता का ग्राफ़ अपने चरम पर पहुंच चुका था. कहा जाता था कि नेम्तसोव रूस के अगले राष्ट्रपति हैं. दरअसल, येल्तसिन सुस्त पड़ रहे थे. उम्र और शराब की लत भारी पड़ रही थी. वो बड़ी-बड़ी बैठकों में शराब पीकर पहुंचने लगे थे. उनके ऊपर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप भी लग रहे थे. उनकी तुलना में नेम्तसोव जवान थे. उदार भी थे और उन्हें शासन चलाने का अच्छा-खासा अनुभव हो चुका था. इसी दौर में पुतिन की एंट्री होती है. नेम्तसोव हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं. 1999 में पार्टी बनाते हैं. यूनियन ऑफ़ रशियन फ़ोर्सेज़. फिर रूस की संसद के निचले सदन ड्यूमा में डिप्टी स्पीकर के तौर पर चुने जाते हैं. 2000 में पुतिन राष्ट्रपति बन चुके थे. नेम्तसोव ने नए निज़ाम के साथ चलने की कोशिश की. लेकिन जल्दी ही उनके रास्ते अलग हो गए. इस अलगाव की वजह यूक्रेन में तैयार हो रही थी. 2004 में यूक्रेन में राष्ट्रपति चुनाव हुए. इसमें दो मुख्य उम्मीदवार थे. विक्टर यान्कोविच और विक्टर युशचेन्को. यान्कोविच को पुतिन का समर्थन था. चुनाव से ठीक पहले दो बड़ी घटनाएं हुईं. पहली, युशचेन्को को पूर्वी यूक्रेन के इलाकों में रैली करने से रोक दिया गया. दूसरी चीज़ ये हुई कि सितंबर के महीने में युशचेन्को अचानक बीमार पड़ गए. अक्टूबर में चुनाव होने वाला था. जांच में पता चला कि उन्हें ज़हर दिया गया था. युशचेन्को की जान तो बच गई, लेकिन उनका चेहरा हमेशा के लिए बदल गया. खैर, नवंबर 2004 में चुनाव की प्रक्रिया पूरी हुई. जैसा कि माना जा रहा था, इस चुनाव में यान्कोविच आसानी से जीत गए. लेकिन युशचेन्को ने नतीजा मानने से मना कर दिया. उन्होंने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया. उनके समर्थकों ने ज़बरदस्त प्रोटेस्ट किया. दो हफ़्ते तक यूक्रेन नारंगी रंग में रंगा रहा. ये रंग युशचेन्को के कैंपेन से जुड़ा था. इसी के चलते उस प्रोटेस्ट को ऑरेंज रेवोल्यूशन या नारंगी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. यान्कोविच के समर्थक धमकी देते रहे. उनका कहना था कि अगर नतीजा रद्द हुआ तो पूर्वी यूक्रेन के लोग रूस में मिल जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इस धमकी को नज़रअंदाज कर नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश दिया. इस चुनाव में विक्टर युशचेन्को विजयी हुए. यूक्रेन की गद्दी पर कठपुतली सरकार बिठाने का पुतिन का सपना कुछ समय के लिए टल गया. ऑरेंज क्रांति के दौरान नेम्तसोव क्या कर रहे थे? वो क्रांति का समर्थन कर रहे थे. यूक्रेन के अंदरुनी मामले में दखल देने के लिए पुतिन को भला-बुरा सुना रहे थे. नेम्तसोव ने 2005 से 2006 तक युशचेन्को के सलाहकार के तौर पर काम किया. ये सब पुतिन को नाराज़ करने के लिए काफ़ी था. हालांकि, नेम्तसोव यहीं नहीं रुके. वो पुतिन के ख़िलाफ़ रैलियों में हिस्सा लेते रहे. उन्हें कई बार गिरफ़्तार भी किया गया. लेकिन उन्होंने पुतिन का विरोध करना नहीं छोड़ा. नवंबर 2013 में यूक्रेन में एक और क्रांति हुई. विक्टर यान्कोविच उस समय यूक्रेन के राष्ट्रपति की कुर्सी पर थे. फ़रवरी 2014 में यान्कोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा. यूक्रेन अस्त-व्यस्त था. नए चुनावों में देर थी. इसका फ़ायदा उठाकर पुतिन ने क्रीमिया पर हमले का आदेश दे दिया. बाद में रूस ने क्रीमिया और सेवस्तोपूल को अपना प्रांत घोषित कर दिया. इसके अलावा, रूस ने डोनबास में अलगाववादियों को मदद भी दी. ये झगड़ा फ़रवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में बदल गया. 34 दिनों से चल रही लड़ाई में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. लाखों पलायन कर चुके हैं. नेम्तसोव उन चंद लोगों में से थे, जिन्होंने शुरुआत में ही पुतिन के आदेश का विरोध किया था. वो रूस में रहकर क्रीमिया पर क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ मुहिम चला रहे थे. जिस रोज़ उनकी हत्या हुई, उसके कुछ दिनों के बाद वो एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रहे थे. बोरिस नेम्तसोव की हत्या के मामले में चेचेन मूल के पांच लोगों को गिरफ़्तार किया गया. इन सभी का संबंध चेचेन नेता रमज़ान कादिरोव से था. कादिरोव के ऊपर पुतिन का हाथ रहा है. हम अपनी कहानी पर वापस चलते हैं. नेम्तसोव की हत्या में गिरफ़्तार किए गए लोगों ने आरोप स्वीकार कर लिए थे. उनमें से एक को 20 साल की जेल हुई. जबकि बाकी चार दोषियों को 11 से 19 साल के बीच की सज़ा सुनाई गई. इन सबके बीच एक सवाल बचा रह गया. नेम्तसोव की हत्या किसने और क्यों करवाई थी? ये सवाल सात सालों से घूम रहा है. अब बीबीसी ने इन्वेस्टिगेटिव वेबसाइट बेलिंगकैट और इनसाइडर के साथ मिलकर कुछ खुफिया जानकारियां जुटाईं है. बेलिंगकैट ने इससे पहले पुतिन के आलोचक अलेक्सी नवलनी को ज़हर दिए जाने की घटना की पड़ताल की थी. इस वेबसाइट की रिपोर्ट्स अक्सर रूसी सत्ता-प्रतिष्ठान को परेशान करती रही है. आज हम ये समझते हैं कि हालिया खुलासे में क्या सामने आया है? - पता चला है कि हत्या से पहले बोरिस नेम्तसोव का पीछा किया जा रहा था. कम-से-कम 13 मौकों पर उनके पीछे खुफिया एजेंसी के एजेंट लगाए गए थे. आख़िरी बार उनका पीछा 17 फ़रवरी 2015 को किया गया था. इसके दस दिनों के बाद उनकी हत्या हो गई. - दस्तावेजों के मुताबिक, नेम्तसोव के पीछे वलेरी सख़ारोव नाम का एजेंट लगा था. वो रूस की खुफिया एजेंसी FSB के लिए काम करता है. वो हर बार नेम्तसोव के पहुंचने से कुछ मिनट पहले पहुंच जाया करता था. - पुतिन के कई आलोचकों को ज़हर देने में सख़ारोव का नाम आ चुका है. प्राप्त रेकॉर्ड के अनुसार, 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उसने नाम बदलकर अलेक्सी नवलनी का पीछा किया था. नवलनी को बाद में ज़हर देकर मारने की कोशिश की गई. जर्मनी में इलाज के बाद उनकी जान बचाई जा सकी. नवलनी जनवरी 2021 में रूस लौटे. वहां उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. इसके बाद से वो अलग-अलग मामलों में सज़ा झेल रहे हैं. बेलिंगकैट ने दस्तावेज कहां से जुटाए? - FSB अपना पूरा डेटा मजिस्ट्राल नाम के डेटाबेस में रखती है. इसमें एजेंट्स के पल-पल की गतिविधि दर्ज़ रहती है. ये डेटाबेस ब्लैक मार्केट में लीक हुआ. वहां से बेलिंगकैट ने इसे खरीदा है. कुछ डेटा सीधे रूसी अधिकारियों को पैसे खिलाकर खरीदे गए. इन अधिकारियों के पास मजिस्ट्राल का एक्सेस था. जांच से ये भी सामने आया कि FSB के भीतर एक सीक्रेट हिट स्क़्वाड काम करता है. ये स्क़्वाड पुतिन के राजनैतिक विरोधियों पर नज़र रखने और उन्हें निशाना बनाने का काम करता है. रूस ने इस रिपोर्ट से सामने आई जानकारी को झूठा बता दिया है. जबकि, FSB ने इस रिपोर्ट पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया है. बोरिस नेम्तसोव की कहानी को यहीं पर विराम देते हैं. चलते हैं पाकिस्तान. जहां कप्तान की सलामती के लिए क़ुर्बानियों का दौर जारी है. 28 मार्च को प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पटल पर रख दिया गया. पटल पर रखे जाने के तुरंत बाद डिप्टी स्पीकर ने नेशनल असेंबली को स्थगित कर दिया. 31 मार्च से प्रस्ताव पर बहस शुरू होगी. वोटिंग 03 अप्रैल को कराई जाएगी. अगर विपक्ष ने 172 सांसदों का समर्थन जुटा लिया तो इमरान ख़ान की कुर्सी चली जाएगी. इस मामले में नया क्या हुआ? - 28 मार्च को पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुज़दार ने इस्तीफ़ा देने का ऐलान किया. उन्होंने अपना इस्तीफ़ा प्रधानमंत्री को भेजा. कानूनन, मुख्यमंत्री अपना इस्तीफ़ा प्रांत के गवर्नर को भेजते हैं. बुज़दार ने कहा है कि अगर इमरान ख़ान ने इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया तो वो कुर्सी छोड़ देंगे. इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क़ायद (PML-Q) के चौधरी परवेज़ इलाही को कुर्सी देने की बात कही है. PML-Q के पास नेशनल असेंबली में पांच सीटें हैं. कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपने सीएम को क़ुर्बान कर दिया है. हालांकि, इस समय उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं है. इस क़ुर्बानी ने इमरान ख़ान के सामने एक और संकट खड़ा कर दिया है. उनके गठबंधन में कई और भी छोटी-मोटी पार्टियां शामिल हैं. जानकारों का कहना है कि उनकी बारगेनिंग की क्षमता बढ़ने वाली है. (PAUSE) - 27 मार्च को PTI ने इस्लामाबाद में बड़ी रैली आयोजित की थी. इस रैली में भाषण देते हुए इमरान ख़ान ने एक चिट्ठी दिखाई थी. उन्होंने कहा था कि ये चिट्ठी विदेशी साज़िश का सबूत है. विपक्ष ने कहा, सबूत है तो दिखा दीजिए. अब सूचना मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा है कि हम चिट्ठी दिखाने के लिए तैयार हैं. लेकिन हम इसे सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को दिखाएंगे.
बोरिस नेम्तसोव की पूरी कहानी क्या है?
क्या Putin ने मरवाया डिप्टी पीएम को, घटना का Russia-Ukraine War से क्या संबंध है?
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क्या Putin ने मरवाया डिप्टी पीएम को, घटना का Russia-Ukraine War से क्या संबंध है? (AFP)
रूस की राजधानी मॉस्को में 27 फ़रवरी 2015 की शाम रूमानी लग रही थी. सब अपनी गति से घट रहा था. किसी को कहीं जाने की जल्दी नहीं थी. इन्हीं खोये लोगों में एक जोड़ा भी था. जब ये जोड़ा हाथ में हाथ डाले हुए मॉस्को नदी के पुल के ऊपर पहुंचा, तभी माहौल पलट गया. दूसरी तरफ़ से सफ़ेद रंग की एक कार आई. कार की खिड़की खुली. खिड़की से बंदूक निकली. साथ में गोलियां भी. गोलियों का निशाना प्रेमी की तरफ़ था. निशाना सटीक रहा. कुछ ही सेकेंड में काम पूरा हो गया. कार आगे बढ़ गई. शरीर नीचे पड़ा रहा. निष्प्राण. ये हत्या रूसी सत्ता-प्रतिष्ठान के केंद्र क्रेमलिन के पास हुई थी. कुछ ही समय बाद वहां एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ियों के साथ-साथ लोगों का जमावड़ा होने लगा. लाश की पहचान की गई. उसके बाद हंगामा मच गया. दरअसल, वो लाश बोरिस नेम्तसोव की थी. नेम्तसोव 1990 के दशक में रूस के उप-प्रधानमंत्री रहे. उन्हें बोरिस येल्तसिन का उत्तराधिकारी बताया जाता था. ये टैग तब तक कायम रहा, जब तक येल्तसिन के जीवन में व्लादिमीर पुतिन की एंट्री नहीं हुई थी. जैसे-जैसे पुतिन येल्तसिन के करीब आते गए, नेम्तसोव दूर होते चले गए. येल्तसिन ने पुतिन को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. नेम्तसोव कुछ समय तक पुतिन का साथ देते रहे. फिर विरोधी हो गए. यूक्रेन की ऑरेंज क्रांति का समर्थन किया. रूस में पुतिन के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट के अगुआ रहे. क्रीमिया पर रूस के हमले की मुख़ालफ़त की. नेम्तसोव वो सब कर रहे थे, जिससे पुतिन की सत्ता को आंच पहुंच रही थी. नेम्तसोव की हत्या से सबसे बड़ा लाभ पुतिन को हो रहा था. उनके ऊपर ऊंगली उठनी थी. उठी भी. क्रेमलिन ने इसपर सफाई दी. क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने कहा था,
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