लेकिन एक और सिरा है. कपिल मिश्रा के मौजपुर चौक पर पहुंचने से पहले का सिरा. इस कम सुने हुए सिरे का नाम है पिंजरा तोड़. आरोप हैं कि पिंजरा तोड़ ने सीलमपुर और ज़ाफराबाद के लोगों को भड़का दिया. CAA और NRC को लेकर हो रहे प्रदर्शनों को रुख थोड़ा बदल दिया. बार-बार सड़क को बंद करने के अपीलें करते रहे. पहले से पत्थर और बोतल सामान जुटाते रहेने के आरोप लगे. प्रदर्शन कर रही भीड़ को इतना भड़का दिया कि मामला उग्र हो गया. और कपिल मिश्रा को राजनीति करने की ज़मीन मिल गयी.
आगे बढ़ने से पहले एक लाइन मे जानिये कि क्या है पिंजरा तोड़. पिंजरा तोड़ देश के शिक्षा संस्थानों के महिला छात्रावासों में समानता को लाने का एक आन्दोलन है, जो दिल्ली विश्वविद्यालय से शुरू हुआ था.
मामला जानिए
जनवरी 2020 के तीसरा हफ्ता था. दिल्ली के इस सीमान्त इलाके में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन शुरू हुए. इलाके के लोकल लोगों ने शुरू किया, अधिकतर समुदाय विशेष से ताल्लुक रखते थे. इसमें सीलमपुर के छियासठ फुटा रोड पर लम्बे समय से प्रोटेस्ट हो रहे थे. धीरे-धीरे करावल नगर के खुरेजी ख़ास और चांद बाग़ में भी शाहीन बाग़ के समर्थन में प्रदर्शन शुरू हो गए. चांद बाग़ में सड़क के किनारे सर्विस लेन में बाकायदे तम्बू-कनात तनवाए गए. शाहीन बाग़ की तर्ज पर.
ओवैस सुल्तान खानसीलमपुर इलाके में रहने वाले सामजिक कार्यकर्ता ओवैस सुल्तान खान बताते हैं कि जैसे ही सीलमपुर में आन्दोलन शुरू हुआ, उसके कुछ दिनों के भीतर ही पिंजरा तोड़ के लोग सीलमपुर चले आए. कहते हैं,
"यहां चल रहे प्रोटेस्ट में यहां की लोकल लीडरशिप थी. लेकिन कुछ ही दिनों में पिंजरातोड़ के लोग आए. उन्होंने अपनी एक साथी को खड़ा किया. उसी साथी के नाम पर प्रोटेस्ट आगे बढ़ाया."ओवैस जानकारी देते हैं कि इसके बाद से आन्दोलन टूटने लगा. कहते हैं कि उन्होंने आंदोलन को हाइजैक कर लिया. यहां के लोकल लोगों के साथ मीटिंग करने लगे. कुछ ही दिनों बाद सबको बिल्ले बांटने लगे. बिल्लों पर "नादान परिंदे" का टैग लगा हुआ था. इसके कुछ ही दिनों बाद पहली बार पिंजरा तोड़ के कार्यकर्ताओं ने अपना पहला प्लान सामने रखा.
"एक सभा थी. पूर्व विधायक चौधरी मतीन उस सभा में बोल रहे थे. बोलकर उतरे तो चौधरी मतीन से पिंजरा तोड़ के लोगों ने मांग की कि वो सड़क बंद करके आदोलन करना चाहते हैं. चौधरी मतीन ने साफ़ मना कर दिया. इलाके के कई लोगों ने इसका विरोध किया."ओवैस दावा करते हैं कि धीरे-धीरे पिंजरा तोड़ का दखल बढ़ा. पूरे आन्दोलन की दिशा बदल गयी. आखिर में हमने और हमारे वालंटियर्स ने खुद को इस आंदोलन से 22 जनवरी को अलग कर लिया.
सड़क पर गाड़ियों की जगह पत्थर पड़े हैं. ये वो पत्थर हैं, जो प्रदर्शनकारियों ने एक-दूसरे के ऊपर फेंके थे. तस्वीर खजूरी रोड की है. क्रेडिट- PTI.ओवैस बताते हैं कि दरअसल सीलमपुर के इलाके में बीते बीस सालों में कई बार विरोध और प्रदर्शन हुए हैं. कई बार हिंसा भी हुई है. और हमारा सोचना था कि इस बार इलाके के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन किसी भी कीमत पर हिंसा न हो. लोगों ने इसीलिए सड़क बंद करने सरीखी मांगों को नकार दिया. ओवैस कहते हैं,
"पिंजरा तोड़ वालों ने बंद कमरे में मीटिंग करना शुरू कर दिया. हमें कई बार मांग की कि खुले में मीटिंग करें, ताकि सबको पता चले. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कई मीटिंग यूं ही हुईं. इसके कुछ दिनों बाद उन लोगों ने पत्थर जुटा लिए. खाली बोतलें जुटा लीं. हमने हटाने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि नहीं, इसकी ज़रुरत पड़ेगी."कहते हैं कि 22 फरवरी की रात, जब पूरे प्रोटेस्ट को सीलमपुर से उठाकर ज़ाफराबाद मेट्रो ले जाने जुगत शुरू हुई, उस समय, बक़ौल ओवैस, उन्होने कई लोगों को मैसेज भेजे. लोगों के साथ मिलकर एक बयान जारी किया. कहा कि हम परेशान हैं, डर में हैं. बाहर के लोग तमाम चीज़ें कर रहे हैं. इसके बाद आती है 23 फरवरी. इस दिन ज़ाफराबाद मेट्रो पहुंचे. और कुछ ही देर बाद यहां पहुंचे भाजपा के नेता कपिल मिश्रा. बाद में क्या हुआ? कमोबेश सभी को पता है.
भीम आर्मी का कितना रोल
23 फरवरी से शुरू हुई हिंसा में बार-बार भीम आर्मी का नाम लिया जा रहा है. क्यों? क्योंकि इस दिन यानी 23 फरवरी को भीम आर्मी ने पूरे देशभर में बंद का ऐलान किया था. CAA के विरोध में. जानकारी मिलती है कि दिल्ली में जितनी भी जगहों पर प्रोटेस्ट हो रहे थे, भीम आर्मी से जुड़े लोग हर उन जगहों पर पहुंचे. लोगों से मिले. साथ देने की अपील की. सीलमपुर प्रदर्शन में मौजूद एक महिला नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं कि हमें लगा कि एक तरह की आवाज़ है, इस वजह से हम भीम आर्मी के साथ मिलें.
चंद्रशेखर रावण और उनके संगठन भीम आर्मी के बारे में चला कि उनके चक्कर में दिल्ली के दंगे हुए. लेकिन बातें और भी हैं.लेकिन इस बारे में ओवैस ने कुछ अलग कहा,
“यहां के प्रदर्शनकारियों की कोई इच्छा नहीं थी कि भीम आर्मी से जुड़ें. पिंजरा तोड़ ने भीम आर्मी का इस्तेमाल किया. भीम आर्मी की कोई इच्छा नहीं थी कि प्रदर्शन थोड़ा भी हिंसक हो. उनका इस्तेमाल हुआ. हमारा और यहां के प्रदर्शनकारियों का इस्तेमाल हुआ. हिन्दू मारे गए. मुसलमान मारे गए. और बाकी लोग बच के चले गए."क्या कहना है पिंजरा तोड़ का?
इन आरोपों पर पिंजरा तोड़ ने सीधे बात नहीं की. उनसे बात होती है, कोई नया फ़लक खुलता है तो हम ज़रूर साझा करेंगे. बहरहाल, संगठन से जुडी एक छात्रा ने बताया कि पिंजरा तोड़ किसी संगठन के रूप में प्रोटेस्ट से नहीं जुड़ा था. चूंकि प्रदर्शन में महिलाएं ज्यादा बैठ रही हैं, इसलिए इससे जुडी लड़कियां मिलने पहुंचीं. एकता दिखाई. बाकी कई लोग सवाल उठा रहे हैं. हम पर आरोप लगा रहे हैं. जो लोग आरोप लगा रहे हैं, कहीं न कहीं उनके मन में मलाल है कि वो आंदोलन को हाइजैक करना चाह रहे थे, लेकिन लोगों ने नहीं करने दिया. कहना है कि आरोप लगाने वाले दरअसल ख़ुद को बचाना चाह रहे हैं.
पिंजरा तोड़ द्वारा जारी किया गया बयानइसके बारे में पिंजरा तोड़ ने एक बयान भी फेसबुक पर जारी किया है. लिखा क्या है,
“पिंजरा तोड़ के बारे में बहुत सारे झूठे बयान चलाये जा रहे हैं. ये हमारी एक्टिविटी के बारे में झूठ फैलाने का एक सोचा समझा प्रयास है....हम शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने में यकीन रखते हैं, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों का बचाव हो सके, और लोगों के अधिकार सुरक्षित रह सकें. हम सबसे ये अपील करते हैं कि साथ मिलकर इन मूल्यों को आगे बढ़ायें, और झूठ को फैलने से रोकें.”इस सबके बीच 48 लोग थे. इन लोगों ने अपनी जिंदगी गंवाई. 200 से ज़्यादा लोग घायल हैं. कुछ कम और कुछ ज़्यादा.
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