छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला हुआ है. हमले में छत्तीसगढ़ पुलिस की DRG टीम के 10 जवान शहीद हो गए. उनके साथ गए एक ड्राइवर की भी मौत हो गई है. नक्सलियों ने ये हमला IED ब्लास्ट कर अंजाम दिया. घटना के बाद आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक DRG की टीम ऑपरेशन के बाद वापसी कर रही थी. उसी दौरान माओवादियों ने अरनपुर एरिया के अचेली के बीच IED ब्लास्ट कर दिया.
दंतेवाड़ा में नक्सली हमले के पीछे की कहानी का सुराग पता चल गया!
गृहमंत्री के बस्तर में दिए बयान के बाद इतने बड़े नक्सली हमले पर सरकार क्या एक्शन लेगी?

पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नक्सलियों के हमले को कायरतापूर्ण बताया. उन्होंने ट्वीट किया,
"दंतेवाड़ा के अरनपुर में पुलिस वाहन पर हमला करके नक्सलियों ने कायरता दिखाई है. इस हमले में शहीद हुए हमारे DRG के 10 वीर जवान और 1 ड्राइवर की शहादत को नमन करते हुए प्रार्थना करता हूं कि पीड़ित परिजनों को यह दुःख सहन करने की शक्ति मिले... दुःख इस बात का भी है कि इससे पहले हमारे भाजपा नेताओं की भी हत्या होती रही और बस्तर संभाग में नक्सलियों की बढ़ती हिंसा सामने आती रही, लेकिन भूपेश बघेल सरकार अब तक गंभीर होकर इस विषय पर ठोस निर्णय नहीं ले पाई है."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस हमले की निंदा की और शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी. वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भूपेश बघेल को फोन किया और हर मुमकिन मदद देने की बात कही.
यहां हम फिर बता दें कि नक्सलियों के हमले में जिन जवानों की मौत हुई वे DRG का हिस्सा थे. DRG यानी डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड. ये छत्तीसगढ़ पुलिस की एक यूनिट है, जिसे साल 2008 में नक्सलियों का सामना करने के लिए बनाया गया था. शुरू में इसे बस्तर रेंज के 7 जिलों में तैनात किया गया. तब इसे कांकेर और नारायणपुर में नक्सल विरोधी अभियान में लगाया गया था. बाद में राज्य के अन्य जिलों में भी इसका विस्तार हुआ.
DRG की टीम में स्थानीय युवाओं को ही भर्ती किया जाता है. क्योंकि इन्हें स्थानीय इलाकों और बोली की अच्छी जानकारी होती है. पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले नक्सलियों को भी DRG में भर्ती किया जाता है. हमारे सूत्र बताते हैं हालिया दिनों में DRG ने तमाम नक्सल ऑपरेशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. राज्य की पुलिस से लेकर केंद्रीय बल भी इन पर भरोसा करते हैं. ऐसा क्यों? सूत्र बताते हैं कि DRG के कई जवान नक्सलवादी रहे हैं. वे नक्सलियों की आदतों और उनकी बारीकियों को ज्यादा बेहतर समझते हैं. इसीलिए कई बार नक्सल विरोधी अभियान में DRG के जवानों की बतौर गाइड मदद ली जाती है.
सूत्र ये भी बताते हैं कि सरेंडर करने के बाद नक्सली 1-2 साल तक निगरानी में रहते हैं. सुरक्षा बल उनकी गतिविधियों पर नजर रखते हैं. अगर उनके व्यवहार में भरोसेमंद बदलाव आता है तो उनको गाइड या गोपनीय सैनिक की भूमिका दी जाती है. वे नक्सल ऑपरेशन में इनफॉर्मर की भूमिका में काम करते हैं. बदले में पुलिस फंड से उन्हें आर्थिक मदद मिलती है. उनके परिवारों को नक्सल प्रभावित इलाकों से निकालकर सुरक्षित इलाकों में बसाया जाता है.
गाइड की भूमिका में सफल होने पर इन लोगों को इंसास राइफल दी जाती है. फिर वो नक्सल ऑपरेशन में बतौर जवान शामिल होते हैं. इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग मिलती है. यानी DRG के जवान आमने-सामने की लड़ाई करना जानते हैं.
दंतेवाड़ा के जंगलों के बारे में कहा जाता है कि यहां ऐसे-ऐसे इलाके हैं जहां आज तक आजाद भारत का कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचा है. न कोई नक्शा है न बहुत ज्यादा जानकारी. ये पहली बार नहीं है जब नक्सलियों ने सीधे सुरक्षाबलों को निशाना बनाया हो. एक नजर पिछली कुछ बड़ी घटनाओं पर डाल लेते हैं.
> 3 अप्रैल 2021. सुरक्षाबलों को सूचना मिली थी कि नक्सलियों का दुर्दांत कमांडर हिडमा बीजापुर के पोवर्ती गांव में है. उसके बाद CRPF और छत्तीसगढ़ पुलिस की संयुक्त टुकड़ी गांव की ओर रवाना हुई. लेकिन गांव से करीब 1 किलोमीटर पहले ही नक्सलियों ने घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला कर दिया. इस हमले में नक्सलियों ने देसी रॉकेट लॉन्चर और LMG का इस्तेमाल किया था. हमले में 22 जवानों की मौत हो गई. शहीद जवानों में 8 CRPF के और 14 राज्य पुलिस के थे. एक जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था. उन्हें 2 दिन बाद नक्सलियों ने छोड़ा था.
> 21 मार्च 2020 की दोपहर DRG, STF और CRPF के कोबरा जवानों की संयुक्त टीम सर्च ऑपरेशन पर निकली थी. सुरक्षाबलों को सूचना मिली थी कि एलमागुंडा में नक्सली मौजूद हैं. उसके बाद सुरक्षाबलों की टुकड़ी चिंतागुफा, बुर्कापाल और तिमेलवाड़ा कैम्प से एलमागुंडा की तरफ बढ़ी. जैसे ही वो कोरजगुड़ा की पहाड़ियों के करीब पहुंचे नक्सलियों की तरफ से फायरिंग शुरू हो गई. 17 जवानों की मौत हो गई. 11 घायल हो गए. मारे गए जवानों में 5 छत्तीसगढ़ STF के और 12 DRG के थे.
> 27 से 30 अक्टूबर 2018 तक नक्सलियों ने एक के बाद एक कई हमले किए. ये छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का समय था. सबसे पहले 27 अक्टूबर को बीजापुर जिले में मतदान से पहले नक्सलियों ने सीआरपीएफ की एक गाड़ी को उड़ा दिया था. जिसमें CRPF के 4 जवानों की मौत हो गई थी. 28 अक्टूबर को नक्सलियों ने एक बीजेपी नेता पर हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया था. 30 अक्टूबर को दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में नक्सलियों ने हमला कर दो पुलिसकर्मियों और दूरदर्शन के एक कैमरामैन को मार दिया था.
> 20 मई 2018 को दंतेवाड़ा जिले के चोलनार गांव में एक नक्सली हमला हुआ था. ये एक IED ब्लास्ट था जिसमें 7 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थी.
> 13 मार्च 2018 को सुकमा जिले में नक्सलियों ने सुरक्षाबलों की एक गाड़ी को बम से उड़ा दिया, जिसमें सीआरपीएफ के नौ जवान शहीद हो गए और दो अन्य घायल हो गए थे.
> 25 अप्रैल 2017. सीआरपीएफ के जवान सुकमा जिले के दुर्गपाल नाम की जगह के पास सुबह-सुबह गश्त पर निकले थे. करीब 2 किलोमीटर आगे बढ़ने के बाद वे दो दस्तों में बंट गए. दोनों 500 मीटर ही आगे बढ़े होंगे कि घात लगाए नक्सलियों ने उन पर हमला कर दिया. 25 जवान शहीद हो गए. 7 घायल हो गए. नक्सलियों ने जवानों के हथियार भी लूट लिए थे. इससे एक महीने पहले सुकमा जिले के भेज्जी इलाके में भी एक नक्सली हमला हुआ था. 11 मार्च 2017 को गश्त पर निकले 11 सीआरपीएफ के जवान उस हमले में शहीद हो गए थे.
> 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने अपने सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया था. इसमें CRPF के 76 जवान शहीद हो गए थे. करीब 1 हजार नक्सलियों ने CRPF के जवानों को घेरकर हमला किया था. उन्होंने पहले जवानों की गाड़ी पर फायरिंग की, फिर IED से उड़ा दिया था. इस घटना के करीब 2 महीने बाद नारायणपुर में हुए एक नक्सली हमले में CRPF के 26 जवानों की मौत हो गई थी.
> सुरक्षाबलों के अलावा राजनीति करने वाले भी नक्सलियों की निशाने पर रहे हैं. 25 मई 2013 को बस्तर की झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला किया गया था. इसमें कांग्रेस के 35 नेताओं और कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी. मरने वालों में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व मंत्री महेंद्र कर्मा और पूर्व विधायक उदय मुदलियार शामिल थे.
इन घटनाओं में एक चीज गौर करने वाली है. नक्सलियों के अधिकतर बड़े हमले फरवरी से जून के दौरान हुए हैं. यानी गर्मी के महीनों में. ये महज संयोग नहीं है. इसके पीछे की नक्सलियों की जो रणनीति है वो समझिए.
दरअसल नक्सलवादी हर साल फरवरी से जून तक TCOC यानी tactical counter-offensive campaign चलाते हैं. इस दौरान छापामार-गुरिल्ला तकनीक से सशस्त्र बलों पर सबसे अधिक हमले किए जाते हैं. और इसी समय माओवादियों को फिर से जुटने का समय मिलता है. लेकिन ये फरवरी से जून के ही महीने में क्यों होता है?
सूत्र बताते हैं कि इस सीजन में पतझड़ की वजह से जंगल थोड़े साफ हो जाते हैं, तो नक्सलवादी ऑपरेशन के लिए माहौल मुफीद हो जाता है. दूसरा कारण ये है कि ये तेंदू पत्ते तोड़ने और बिक्री का समय होता है. माओवादी तेंदू पत्ते के ठेकेदारों से लेवी (जिसको हफ्ता कहते हैं) भी इसी मौसम में वसूलते हैं. मानसून आते ही जंगल में मूवमेंट करना और तेंदू पत्ता बटोरना माओवादियों के लिए असंभव हो जाता है. इसी वजह से फरवरी से जून तक नक्सलियों की मूवमेंट बाकी दिनों की तुलना में ज्यादा होती है.
अब एक नजर आंकड़ों पर भी डाल लेते हैं. फरवरी 2023 में बजट सत्र के दौरान गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया था कि 2018 से 2022 तक कुल 870 नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की मौत वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी हिंसक घटनाओं में हुई. 2018 में 240 लोगों की मौत हुई. जबकि 2022 में 98 लोगों की मौत हुई. सरकार के मुताबिक 2010 में नक्सली हिंसा को रिपोर्ट करने वाले जिलों की संख्या 96 थी. जो 2022 तक घटकर 45 हो गई. यानी सरकारी आंकड़ों में गिरावट दिख रही है.
करीब एक महीने पहले 25 मार्च को देश के गृहमंत्री बस्तर में थे. CRPF के कैम्प में. यहां उन्होंने कहा था कि नक्सल अब खात्मे की ओर हैं. नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई अंतिम चरण में है. लेकिन दंतेवाड़ा में आज हुआ ये हमला, तमाम सरकारी दावों पर सवाल खड़े करता है.
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