
और यदि इंफ़ेक्शन है, तो कितना गहरा है, कहां तक फैला है, आदि. इस प्रक्रिया में आपका एक बेंच पर लिटाया जाता है. लिटाने के पहले आपसे कहा जाता है कि धातु का बना सारा सामान या गहना उतार दीजिए. फिर वो बेंच सरककर एक छल्ले की तरह की मशीन में चली जाती है. मशीन शरीर के भीतर की तस्वीरें लेती है, ठीक वैसे ही जैसे एक्स-रे होता है. लेकिन एक्स-रे से ज़्यादा व्यापक और सटीक जानकारी के साथ. सीटी स्कैन की जरूरत क्यों? स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर बताया गया है कि इस वक्त देश में 29 लाख 78 हजार 709 एक्टिव केस हैं. और 2 लाख 01 हजार 187 लोगों की मौत हो चुकी है. काफी लोगों को कोविड में खांसी और जुकाम जैसे लक्षण नहीं होते. ऐसे लोगों में हुए वायरस अटैक को असिम्टोमैटिक कहा जाता है. इस दौरान यदि डॉक्टर को कोविड का शक होता है तो वह एंटीजन टेस्ट या RT-PCR के लिए कहते हैं.
कई बार एंटीजन टेस्ट में रिपोर्ट नेगेटिव आती है और RT-PCR में पॉजिटिव आती है. और कई बार तो RTPCR में भी रिपोर्ट नेगेटिव आती है. ऐसा दो वजहों से हो सकता है. पहली ये कि वायरस गले से होते हुए फेफड़ों में चला गया हो और स्वैब लेने के दौरान गले से कुछ नहीं मिला हो. दूसरी बात ये हो सकती है कि स्वैब लेने के दौरान गलती की गई हो. ऐसी स्थिति में डॉक्टर सीटी स्कैन की सलाह दे सकते हैं.

आजतक की एक खबर के मुताबिक दिल्ली एम्स के डॉ. अनंत मोहन ने बताया है कि कोरोना संक्रमण की गंभीरता दो बातों पर निर्भर करती है- सांस लेने की क्षमता और ख़ून में ऑक्सीजन की मात्रा यानी ऑक्सीजन सैचुरेशन. अगर ये दोनों ही मानकों से कम हैं तो सीटी स्कैन की जरुरत पड़ सकती है. साथ ही दूसरे विशेषज्ञों ने बताया कि RTPCR और एंटीजन टेस्ट की जांच में कोरोना के नए स्ट्रेन का पता नहीं चलता है लेकिन अगर सीटी स्कैन कराया जाए, तो लक्षणों के आधार पर इंफ़ेक्शन की पुष्टि की जा सकती है.
इस बात को थोड़ा और समझने के लिए हमने बात की बिहार के नालंदा मेडिकल कॉलेज के कोविड वार्ड में काम कर रहीं डॉक्टर तन्वी श्रीवास्तव से. उन्होंने कहा,
"कोरोना लंग्स को इन्फेक्ट करता है और लंग्स का इन्वॉल्वमेंट कितना हो गया है ये जानने के लिए डॉक्टर सीटी स्कैन कराते हैं. एक तो ये हर केस में जरूरी नहीं है. यानी अगर आपको कोरोना है भी, तब भी जरूरी नहीं कि सीटी स्कैन कराना पड़े. बहुत जरूरी होने पर ही, जब डॉक्टरों को फेफड़ों की असली स्थिति पता करनी होती है, किसी किसी केस में तब ही, और वो भी डॉक्टर की सलाह पर सीटी स्कैन कराना चाहिए."डॉक्टर तन्वी ने आगे कहा,
"आजकल कुछ लोग अपने आप सीटी स्कैन करा रहे हैं जिसकी कोई जरूरत नहीं है. जब RTPCR नेगेटिव हो और डॉक्टर को लगे कि लक्षण कोविड के हैं, जैसे सांस फूलना, सांस लेने में दिक्कत होना आदि, तब ही डॉक्टर सीटी स्कैन रिकमंड करते हैं. इसको कोविड टेस्ट नहीं कह सकते क्योंकि कोविड टेस्ट के लिए RTPCR ही असली और सही टेस्ट है. सीटी स्कैन से बस हमें फेफडों की स्थिति पता चलती है."सीटी स्कोर और सीटी वैल्यू क्या है? यहां कुछ चीजें समझनी हैं. मसलन ये कि सीटी वैल्यू जितनी कम होती है, संक्रमण उतना अधिक होता है और ये जितना अधिक होती है, संक्रमण उतना ही कम होता है. ICMR यानी Indian Council of Medical Research ने अभी सीटी वैल्यू 35 निर्धारित की हुई है. इसका अर्थ ये है कि 35 और इससे कम सीटी वैल्यू पर कोविड पॉजिटिव माना जाएगा और 35 से ऊपर यदि सीटी वैल्यू है तो पेशेंट को कोविड नेगेटिव माना जाएगा.
सीटी स्कोर से ये पता चलता है कि इंफेक्शन ने फेफड़ों को कितना नुकसान किया है. अगर ये स्कोर अधिक है तो फेफड़ों को नुकसान भी अधिक हुआ है और यदि स्कोर नॉर्मल है तो इसका अर्थ ये है कि फेफडों में कोई नुकसान नहीं हुआ है. इस नम्बर को CO-RADS कहा जाता है. यदि CO-RADS का आंकड़ा 1 है तो सब नॉर्मल है. लेकिन यदि CO-RADS 2 से 4 है तो हल्का फुल्का इन्फेक्शन है लेकिन यदि ये 5 या 6 है तो पेशेंट को कोविड माना जाता है. तो क्या कोरोना का टेस्ट करवाने के बजाय सीटी स्कैन करवा लें? नहीं. डॉक्टरों की बात ध्यान से सुनिए. ऊपर तन्वी श्रीवास्तव ने बताया कि ये कोरोना का टेस्ट नहीं है. और दूसरे डॉक्टरों की बात भी सुनिए. फ़रीदाबाद के डॉक्टर हिमांशु हितैषी कहते हैं,
"सीटी स्कैन सही स्थिति बता देता है. सीटी सिवियरिटी स्कोर से डॉक्टर को पता चल जाता है कि पेशेंट कोरोना पॉजिटिव है कि नहीं. हमारे फेफडों में कुछ लोब्स होते हैं उनकी स्थिति इस सीटी स्कैन के जरिए पता करते हैं. ये टेस्ट अधिक महंगा नहीं है. 2500 से 3000 तक का ये टेस्ट होता है. कुछ जगहों पर और भी सस्ता है. दरअसल हमें ये समझना होगा कि कोरोना म्यूटेट हो गया है. वैरिएंट चेंज हो गया है और इसलिए RTPCR भी कई दफा इसे पकड़ नहीं पा रहा लेकिन सीटी स्कैन में फेफड़ों का हाल साफ पता चलता है."

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीटी के स्कोर से ही सब निर्धारित होता है. सीटी गड़बड़ यानी हो गया कोरोना? नहीं. ऐसा नहीं है. मुंबई के जेजे हॉस्पिटल में कोविड वार्ड के प्रमुख डॉक्टर हेमंत गुप्ता कहते हैं,
"लोग काफी डरे हुए हैं और काफी लोग तो बिना वजह ही सीटी स्कैन करा रहे हैं. आजकल जो भी निमोनिया होता है लोग उसे कोविड समझ लेते हैं. बैक्टीरियल इंफेक्शन में भी लंग्स में शैडो दिख सकता है. निमोनिया के और कई कारण भी हो सकते हैं. ये भी देखना होगा कि फेफड़ों में जो हमें दिख रहा है, वो कितने दिन पुराना है. यदि 2-4 दिन के जुकाम में ही सीटी स्कैन की रिपोर्ट में ये सब दिख रहा है तो कोविड माना जाना चाहिए लेकिन अगर बहुत दिन से है और तब ऐसा दिखता है तो कोविड नहीं हो सकता."हेमंत गुप्ता आगे बताते हैं,
"आपके लंग्स में बहुत सारे सेगमेंट होते हैं. सीटी स्कोर से बातें पता चलती हैं. अधिक सीटी स्कोर का मतलब है कि इंफेक्शन अधिक है और कम सीटी स्कोर का अर्थ है कि इंफेक्शन कम है. अब लोग हाई सीटी स्कोर देखते ही रेमडेसिविर तलाशने लगते हैं, ये गलत है. जो भी दवाई करें, डॉक्टर के दिशानिर्देश में ही करें और बिना डॉक्टरी सलाह के कोई इंजेक्शन नहीं लें."तो ये तो साफ है कि सीटी स्कैन के जरिए कोविड का पता चल सकता है. लेकिन ये भी समझने वाली बात है कि कोविड का टेस्ट सीटी स्कैन नहीं बल्कि RT-PCR ही है. हम भी आपसे यही कहेंगे कि जो भी दवाई, इलाज करें, डॉक्टर की सलाह पर ही करें. लक्षण हों तो जांच करें. इलाज करें. अधिक से अधिक घर पर रहें. और ख़ुद का ख़याल रखें. ख़ूब सारा ख़याल.