हाल ही में ब्रिटिश मैग्जीन द इकॉनमिस्ट (The Economist) के कवर पेज पर एक लाइन छपी. ‘The rise of Chinese Science’ अपनी भाषा में कहें, तो ‘चीन में विज्ञान का उदय.’ बताया गया कि चीनी वैज्ञानिक, प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल्स में अमेरिका और यूरोपियन यूनियन से भी ज्यादा रिसर्च पेपर छाप रहे हैं. चीनी यूनिवर्सिटीज दुनिया की टॉप रिसर्च संस्थानों में अपनी धाक जमा रही हैं. रिसर्च फंडिंग के मामले में भी चीन, अमेरिका को टक्कर देता है. पर सवाल ये कि इस सब में भारत की रैंकिंग कहां बैठती है?
अमेरिका और चीन तो साइंस की रेस में पिले पड़े हैं, पर अपना क्या हाल है?
The Rise of Chinese Science: बीजिंग के शोध संस्थान चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस (CAS) में एक बड़ी दिलचस्प दीवार देखने मिलती है, दीवार पेटेंट (Patent) की. खैर करीब पांच मीटर चौड़ी और दो तल्ला ऊंची इस दीवार में 192 सर्टिफिकेट टंगे हैं.

आप कभी बीजिंग के शोध संस्थान चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस (CAS) में जाएंगे, तो एक बड़ी दिलचस्प दीवार देखने को मिलेगी, दीवार पेटेंट (Patent) की. पेटेंट माने वो सर्टिफिकेट जो किसी नई खोज या आविष्कार वगैरह करने पर दिया जाता है.
ये बताने के लिए कि यह आपकी बौद्धिक संपदा है. किताबों में हम पढ़ते आए हैं कि धन चोरी हो सकता है. लेकिन बुद्धि नहीं. लेकिन ये बुद्धि लगाई किसने, आइडिया किसका था? यही सब बताने का कुछ काम पेटेंट का होता है. कुल मिला कर ये इस बात का प्रमाणपत्र है कि फलां खोज, फलां तरीका, फलां आदमी ने बताया है.
खैर करीब पांच मीटर चौड़ी और दो तल्ला ऊंची इस दीवार में 192 सर्टिफिकेट टंगे हैं. जो एक के बाद एक सजा कर रखे गए हैं. साथ में कुछ कांच के बर्तन भी देखने को मिलते हैं. जिनमें इंजीनियर्ड सीड (genetically engineered seeds) यानी खास तौर पर विकसित किए गए बीजों को रखा गया है. जो विज्ञान के मामले में चीनी तरक्की की कहानी बताते नजर आते हैं.
बता दें साल 1960-1962 के बीच चीन में भीषण अकाल आया था. जिसमें करीब 3 करोड़ लोगों की जान गई थी. इंसानी इतिहास में किसी अकाल में सबसे ज्यादा मौत इसी में हुई थी. आज गेहूं, चावल समेत तमाम फसलों के उत्पादन के मामले में चीन दुनिया भर में सबसे आगे है.
देश | जारी पेटेंट | |
1 | चीन | 695,946 |
2 | अमेरिका | 327,307 |
3 | जापान | 184,372 |
4 | दक्षिण कोरिया | 145,882 |
5 | भारत | 30,721 |
6 | ब्राजील | 26,872 |
7 | रूस | 23,662 |
यही कहानी नेचर इंडेक्स से भी पता चलती है. नेचर (Nature) दुनिया का एक जाना-माना रिसर्च जर्नल है. जिसमें दुनिया भर की प्रतिष्ठित रिसर्च्स छपती हैं. यही दुनिया भर के रिसर्च संस्थानों की एक रैंकिंग भी निकालता है.
बता दें जब भी किसी संस्थान वगैरह में कोई रिसर्च होती है. तो उस रिसर्च को छापने के लिए एक प्रकाशक के पास भेजा जाता है. जिसे रिसर्च जर्नल कहते हैं. नेचर (Nature), सेल (Cell), JAMA वगैरह ऐसे कुछ प्रतिष्ठित जर्नल्स के नाम हैं.
बहरहाल नेचर इंडेक्स में दुनिया भर के संस्थानों से छपी रिसर्च के आधार पर रैंकिंग दी जाती है. बीते कई सालों से चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस (Chinese Academy of science) अपनी धाक बनाए हुए है. अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) इस मामले में दूसरे नंबर पर है. वहीं भारत का नाम इसमें 167 पायदान पर देखने को मिलता है.
रैंकिग | संस्थान | साल 2020-2021 में बदलाव | देश |
1 | चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस (CAS) | 0.014 | चीन |
2 | हार्वर्ड यूनिवर्सिटी | -0.041 | अमेरिका |
3 | मैक्स प्लांक सोसायटी | -0.043 | जर्मनी |
4 | फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (CNRS) | -0.078 | फ्रांस |
5 | स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी | -0.073 | अमेरिका |
6 | हेल्महोल्टज़ एसोशिएशन ऑफ जर्मन रिसर्च सेंटर्स | -0.056 | जर्मनी |
7 | मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (MIT) | -0.014 | अमेरिका |
8 | यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस | 0.214 | चीन |
9 | यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ चाइना | 0.091 | चीन |
10 | पीकिंग यूनिवर्सिटी | 0.074 | चीन |
167 | भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) | 0.229 | भारत |
218 | होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान | 0.305 | भारत |
265 | वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) | 0.149 | भारत |
लेकिन रिसर्च पेपर छापने में चीन की ये रैंकिग हमेशा से नहीं थी. करीब एक दशक पहले, साल 2012 में अमेरिका रिसर्च पेपर छापने के मामले में चीन से करीब चार गुना आगे था. हालांकि चीन तब भी दूसरे नंबर पर था. वहीं भारत नेचर जर्नल पर रिसर्च पेपर छापने के मामले में 13वें नंबर पर था.
इससे एक सवाल तो उठता है, चीन ने साइंस रिसर्च के मामले में ऐसा क्या कर रहा है कि अमेरिका भी इसकी तरक्की से परेशान हो रहा है.
धारदार तैयारीकिसी घिसे हुए चाकू से कोई सब्जी काटनी हो. तो पहले घंटों उस पर धार लगानी पड़ती है. भले सब्जी काटने का काम मिनटों का हो, चाकू को बेहद धारदार बनाने में घंटों की मेहनत लग सकती है. जमाइका के धावक उसैन बोल्ट का नाम आपने सुना होगा. जिन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में लगातार तीन ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीते थे. महज 9.58 सेकंड में 100 मीटर दौड़कर रिकॉर्ड बनाया था. लेकिन चंद सेकंड की दौड़ के लिए वो हर दिन घंटों अभ्यास करते थे.
ऐसी ही कुछ तैयारी किसी देश की विज्ञान में तरक्की में लगती है. द इकॉनमिस्ट के मुताबिक, चीन ने विज्ञान के क्षेत्र में जो बदलाव किए हैं. उसके लिए पैसा, संसाधन और लोगों पर खासा ध्यान दिया गया है. साल 2000 के बाद से चीन ने अनुसंधान और विकास पर खर्च 16 गुना बढ़ाया है.
नीचे दिए हालिया आंकड़ों में देख सकते हैं, भारत और दूसरे देश GDP का कितना प्रतिशत R&D पर खर्च करते हैं. नजर फिराएं तो समझा जा सकता है, साल 2000 से पहले चीन और भारत इस मामले में आस-पास ही थे. लेकिन 2021 में तस्वीर अलग नजर आती है.
अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर खर्च की बात करें. 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत R&D पर अपनी GDP का 0.6 फीसद खर्च करता है. वहीं चीन के मामले में यह आंकड़ा 2.4 फीसद है. बता दें वर्ल्ड बैंक के मुताबिक साल 2020 में चीन की GDP 14.69 ट्रिलियन डॉलर थी, तो वहीं भारत इस मामले में 2.67 ट्रिलियन डॉलर पर था.
कह सकते हैं, साल 2020 में चीन का R&D पर खर्च 0.352 ट्रिलियन डॉलर या उस समय के हिसाब से रुपयों में बदलें, तो करीब 26 लाख करोड़ रुपये. वहीं भारत के लिए यह आंकड़ा, चीन से बीस गुना कम 1.2 लाख करोड़ रुपये का बैठता है.
प्रोजेक्ट 211चाहे वो चीनी सरकार का ‘प्रोजेक्ट 211’ हो, जिसमें 100 से ज्यादा विश्वविधालयों को फंडिंग देकर बेहतर करने का प्रयास किया गया. या फिर चाहे ‘985 प्रोग्राम’ हो, जिसमें चीनी विश्वविधालयों को विश्व स्तर का बनाने का लक्ष्य रखा गया था. 4 मई, 1998 को चीनी सरकार ने घोषणा की थी,
चीन को विश्व स्तर की बेहतरीन लेवल की कई फर्स्ट क्लास यूनिवर्सिटीज की जरूरत है.
शुरुआत में इस प्रोग्राम में 9 विश्वविधालयों को जोड़ा गया था. पर साल 2004 के दूसरे फेज में इनकी संख्या बढ़ाकर 39 कर दी गई.
वहीं ‘चाइना नाइन लीग’ के जरिए चुनिंदा लैब्स को पैसे भी मुहैया करवाए गए. अगर किसी यूनिवर्सिटी से कोई किसी प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल में कोई पेपर छापता, तो उसे औसत 44,000 डॉलर तक बोनस दिया जाता. हमारी और आपकी समझ के लिए, करीब 3.6 करोड़ रुपये.
हर दस लाख में कितने शोधकर्ता?वहीं R&D में रिसर्चर्स यानी शोध वगैरह करने वाले लोगों की बात करें, तो भारत अमेरिका और चीन के मामले में काफी पीछे नजर आता है. साल 2021 के वर्ल्ड बैंक के आंकडों के मुताबिक, हर दस लाख लोगों में भारत में 260, चीन में 1,687 वहीं अमेरिका में 4,452 रिसर्चर्स हैं.
हालांकि चीनी रिसर्च पेपर्स और पेटेंट्स की क्वालिटी पर सवाल भी उठाए जाते हैं. पर AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, सोलर पावर वगैरह के मामले में भी चीन ने काफी तरक्की की है. जिसकी खबरें भी हाल फिलहाल में आती ही रहती हैं. ऐसे में शायद भारत को भी विज्ञान के मामले में नए कदम उठाने की जरूरत है.
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