इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज हैं एसएन शुक्ला. इन पर भ्रष्टाचार का इल्जाम है. आरोपी जज को पद से हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो-दो चीफ जस्टिस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख चुके हैं. मगर जस्टिस शुक्ला अभी तक पद पर टिके हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी क्या ये रिमाइंडर है कि जज एसएन शुक्ला हटाए जाएं. उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाए. सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी जज को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाना पड़ता है. क्या है ये पूरा मामला आइए जानते हैं. कौन हैं जस्टिस शुक्ला?
जस्टिस एसएन शुक्ला पूरा नाम श्री नारायण शुक्ला. इलाहाबाद के ही रहने वाले हैं. एलएलबी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की. फिर लंबे वक्त तक दीवानी के कद्दावर वकील रहे. यूपी सरकार के अपर महाधिवक्ता बनाए गए. साल 2005 के अक्टूबर महीने में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडिशनल जज बने. करीब दो साल बाद 10 अगस्त, 2007 को परमानेंट जज बना दिए गए. उनका कार्यकाल 17 जुलाई, 2020 तक है. रिटायर होने में कोई एक साल का वक्त बचा है. इससे पहले ही उन्हें हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की चर्चा है. पूरा मामला कहां से शुरू हुआ?
लखनऊ में एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज है. नाम है प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज. इस मेडिकल कॉलेज को प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट चलाता है. ट्रस्ट के संचालक हैं बीपी यादव और पलाश यादव. साल 2017 में केंद्र सरकार ने एक आदेश जारी किया. इसके जरिए प्रसाद इंस्टीट्यूट समेत देश भर के 46 मेडिकल कॉलेजों में नए एडमिशन पर रोक लगा दी गई. मेडिकल कॉ़लेजों से कहा गया कि वे साल 2017-18 और 2018-19 के लिए नए एडमिशन नहीं ले सकते. इन कॉलेजों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए बुनियादी सुविधाएं न होने के आरोप थे. कॉलेजों में ये प्रतिबंध मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया यानी MCI की जांच रिपोर्ट के आधार पर लगाए गए. देश भर में मेडिकल यानी डॉक्टरी की पढ़ाई के मानकों की निगरानी का काम तब MCI के हवाले था. कैसे हुई जस्टिस शुक्ला की एंट्री?
'द वायर' की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के फैसले के खिलाफ प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट समेत कई मेडिकल कॉलेज संचालक सुप्रीम कोर्ट चले गए. मामला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने सुना. बेंच की ओर से दूसरे कॉलेजों को कुछ खास राहत नहीं मिली. राहत मिली लखनऊ वाले प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट को. 24 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट को दो राहत मिलीं. पहली, ट्रस्ट सुप्रीम कोर्ट से अपनी रिट वापस ले सकता है. दूसरी, ट्रस्ट कुछ प्रावधानों के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट जा सकता है. जबकि उसकी एक रिट पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में खारिज हो चुकी थी. 'द वायर' के मुताबिक प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट को सुप्रीम कोर्ट से मिली ये छूट तब कई लोगों को असामान्य लगी थी. बहरहाल, अगले ही दिन यानी 25 अगस्त, 2017 को प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया. यहां मामला सुना जस्टिस एसएन शुक्ला की बेंच ने. बेंच ने प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट को 'एडमिशन के लिए काउंसलिंग' शुरू करने की इजाजत दे दी. ये उस वक्त बहुत बड़ा फैसला था. देश भर के तमाम मेडिकल कॉलेज एडमिशन नहीं कर पा रहे थे. तब अचानक एक कॉलेज को एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने की इजाजत मिल गई. जस्टिस शुक्ला का यही फैसला अब उनके लिए मुसीबत का सबब बन गया है. असल में, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ एमसीआई ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने 18 सितंबर, 2017 को एडमिशन प्रक्रिया पर फिर से रोक लगा दी. इस आदेश की खास बात ये थी कि इसे 21 सितंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. इस आदेश से ठीक दो दिन पहले यानी 19 सितंबर के दिन सीबीआई ने इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ किया था. और रिश्वतखोरी होने के इल्जाम लगाए थे. सीबीआई ने मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मालिक बीपी यादव, पलाश यादव, एक बिचौलिए विश्वनाथ अग्रवाल, भावना पांडेय, मेरठ के एक मेडिकल कॉलेज के सुधीर गिरी समेत 7 लोगों पर केस दर्ज किया. सीबीआई ने कुद्दूसी और दूसरे लोगों को गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई को आरोपियों के पास से दो करोड़ रुपए की नकदी, बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग और कुछ अहम दस्तावेज भी मिले. आरोप थे कि उड़ीसा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी समेत अन्य आरोपियों ने कोर्ट के जरिए प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एडमिशन का रास्ता साफ कराने का काम अपने हाथ में लिया. फिर अदालत को काम कराने के लिए मैनेज करने का प्रयास किया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जज जस्टिस एसएन शुक्ला और जस्टिस वीरेंद्र कुमार जांच के दायरे में आ गए. जस्टिस एसएन शुक्ला का नाम सीबीआई की एफआईआर में नहीं था. मगर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए तीन जजों की एक कमेटी बना दी. इस कमेटी में मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीके जायसवाल शामिल थे. तीन जजों की इनहाउस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूत हैं. उन्हें फौरन पद से हटाया जाए. जनवरी, 2018 में ये पूरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को सौंपी जा चुकी है. कमेटी ने जस्टिस शुक्ला को अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का दोषी माना. और उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की. तब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने जस्टिस एसएन शुक्ला से कहा कि या तो वे खुद इस्तीफा देकर चले जाएं, या फिर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस ले लें. मगर जस्टिस शुक्ला ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया. और छुट्टी लेकर चले गए. इस पर चीफ जस्टिस ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मांग की कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ संसद में महाभियोग का प्रस्ताव लाया जाए. अब सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है. शायद इस बार तीर निशाने पर लगे. क्योंकि सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपी दर्जनों आला अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया है. तो हो सकता है अगला नंबर जस्टिस शुक्ला का ही हो. अब तक कितने जजों पर हो चुकी है महाभियोग की कार्यवाही?
भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग के जरिए नहीं हटाया गया है. कुछ मामलों में संसद में कार्यवाही पूरी नहीं हो सकी. कुछ में संसद में प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला. और कुछ मामलों में जज ने पहले ही इस्तीफा दे दिया. तीन जजों पर महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. 1- सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी. 2- कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन. 3- सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन. चार जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी हुई. 1- गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेबी पार्दीवाला. 2- मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल. 3- आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी. 4- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा. अब क्या होगा?
महाभियोग आया तो जस्टिस शुक्ला को संसद में आना होगा. महाभियोग के लिए सरकार जज इन्क्वायरी एक्ट 1968 का सहारा लेगी. राज्यसभा के उप सभापति एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाएंगे. ये कमेटी चीफ जस्टिस की सलाह से सबूतों की जांच करती है. फिर कमेटी अपनी सिफारिश सौंपती है. तब ये तय होगा कि आरोपी जज को हटाने के लिए राज्यसभा में बहस शुरू हो या ना हो.
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जानिए जस्टिस एसएन शुक्ला को क्यों हटवाना चाहते हैं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एस एन शुक्ला. फाइल फोटो.