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छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, क्या है पूरा मामला?

फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने को लेकर छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि उनकी सरकार आदिवासी आरक्षण को लेकर गंभीर है.

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दिल्ली के एक म्यूजियम में भूपेश बघेल (साभार- आजतक)

छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है. राज्य सरकार ने 58% आरक्षण को असंवैधानिक करार देने वाले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाईकोर्ट के फैसले से राज्य में आदिवासी समुदाय को मिलने वाला 32% आरक्षण घटकर 20% रह जाएगा. फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने को लेकर छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) ने कहा कि उनकी सरकार आदिवासी आरक्षण को लेकर गंभीर है.

सीएम ने इसे लेकर ट्वीट कर बताया कि उनकी सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने बताया,   

इससे पहले 19 सितंबर 2022 को छत्‍तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्‍य के शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 58% आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था. तब हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार और न्यायमूर्ति पीपी साहू की पीठ ने आरक्षण की 58% सीमा को रद्द किया. पीठ ने कहा कि आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता. 

2012 से पहले क्या व्यवस्था थी?

सीधे चलते हैं साल 2012 में. छत्तीसगढ़ में साल 2012 से पहले तक SC को 16, ST को 20 और OBC 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था. यानि 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था. तब राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली रमन सिंह सरकार थी. तब की सरकार ने 2012 में आरक्षण को बढ़ाकर 58% कर दिया. इस नए नियम के तहत SC को 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, ST को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और OBC को पहले की ही तरह 14 प्रतिशत आरक्षण मिलना शुरू हो गया.

रमन सिंह सरकार के इस फैसले का काफी विरोध हुआ. फैसले को 2012 में ही छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. एक दशक तक चले केस में 19 सितंबर 2022 को अदालत ने 58% आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताकर नकार दिया. हालांकि, हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बढ़े आरक्षण के तहत जिन उम्‍मीदवारों को नियुक्तियां मिल गई हैं, वे बरकरार रहेंगी. लेकिन आगे आने वाली भर्तियों में कोर्ट के बताए नियमों के अनुसार ही नियुक्तियां की जाएंगी.

BJP-कांग्रेस आमने-सामने 

अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद आदिवासी समाज नाराज है. अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाला आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर वापस 20 पर आ गया है. इसीलिए आदिवासी समाज इसे लेकर गुस्से में है, तो सीएम भूपेश बघेल भी इसके लिए लड़ने की बात कह रहे हैं. 

सीएम भूपेश बघेल आरक्षण की मौजूदा स्थिति के लिए बीजेपी की पिछली सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. सीएम ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा, 

"2005 में केंद्र ने छत्तीसगढ़ में जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण देने की मंजूरी दी थी, लेकिन पिछली राज्य सरकार (BJP) ने 2011 तक इसे रोक दिया था. फिर 2011-12 में, जब आदिवासियों ने आंदोलन किया, तो राज्य सरकार ने उन्हें 32 प्रतिशत, SC को 12 प्रतिशत और OBC को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया, जिससे 58 प्रतिशत आरक्षण हुआ."

CM बघेल ने आरोप लगाया कि 2012 में आरक्षण बढ़ाने के बाद दो समितियों का गठन किया गया था, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश नहीं की. जबकि 2012 से ही हाईकोर्ट में इसे लेकर सुनवाई चल रही है. 2012 से 2018 तक BJP सरकार ने कोर्ट में मजबूती से आरक्षण का पक्ष नहीं रखा. इसके बाद 2018 में हमारी सरकार बनी तो केवल डेटिंग-पेंटिंग का काम बचा था. सीएम ने कहा कि अब हम अब सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं. पटेल समिति की रिपोर्ट आने के बाद हम उसके अनुसार बढ़ा हुआ आरक्षण लागू करेंगे.

उधर, BJP भी बघेल सरकार को निशाने पर ले रही है. बीजेपी ने हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद 8 अक्टूबर को प्रदेश के तीन संभाग में चक्का जाम किया. वहीं, 13 अक्टूबर से कांग्रेस के आदिवासी विधायकों के घरों का घेराव किया गया. अब BJP नेताओं का कहना है कि वे दीपावली के बाद रैली करके सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे.

Chhattisgarh में बड़ी आदिवासी आबादी

छत्तीसगढ़ के लिए आदिवासी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से छत्तीसगढ़ में 30.62 % आबादी अनसूचित जनजाति या आदिवासियों (ST) की थी. वहीं 12.82% आबादी SC की है. अब ऐसे में जब अगले साल ही राज्य में चुनाव होने हैं, तो BJP-कांग्रेस दोनों ही पार्टी इस मुद्दे पर सक्रिय दिख रही हैं. 

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