अमेरिकी लेखक जॉन ली एंडरसन अपनी किताब, Che Guevara: A Revolutionary Life, में लिखते हैं,
मेसी के देश का लड़का, जिसकी मौत के बाद लोग उसके बाल काटकर ले गए!
चे ग्वेरा की मौत कैसे हुई?
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"जब चे ग्वेरा की मौत हुई, स्थानीय लोग उनके शव के पास आए और उनके बालों को काटकर ले जाने लगे. ये वो किसान और मजदूर थे, जिन्होंने चे ग्वेरा की क्रांति में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया था. लेकिन मौत के बाद वो उनके बालों के ऐसे ले जा रहे थे, मानो वो कोई पवित्र निशानी हो".
चे ग्वेरा का असली नाम अर्नेस्टो ग्वेरा था. स्पैनिश भाषा के शब्द चे का मतलब होता है 'hey'. यानी जैसे हम हिंदी में किसी को अरे, तुम कहकर बुलाते हैं. वैसे ही स्पैनिश में चे कहकर बुलाया जाता है. चे ग्वेरा को क्यूबा के एक क्रांतिकारी ने ये नाम दिया था क्योंकि वो बार बार 'चे' कहकर बुलाते थे. दुनिया में बहुत लोगों के लिए ये क्रांति का दूसरा नाम है. और बाकियों के लिए आतंक का. जिसने नाम नहीं सुना उसने तस्वीर तो कम से कम जरूर देखी होगी। सर पर गोल चपटी टोपी, चेहरा थोड़ा सा मुड़ा हुआ, और आंखें क्षितिज को देखती हुई. कम्युनिस्ट क्रांति के अगुवा चे की ये तस्वीर छापकर न जाने कितनी टी शर्ट बेची गई, खरीदी गई, पहनी गई. (Che Guevara)
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Che Guevara की कर्मभूमि
ये कहानी है, अर्जेंटीना में पैदा हुए उस लड़के की, जो बचपन से अस्थमा का मरीज था. एक डॉक्टर जिसने कभी मिलिट्री की ट्रेनिंग नहीं ली. जो मोटरसाइकिल लेकर निकला और पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट क्रांति का चेहरा बन गया. कौन था चे ग्वेरा? (Cuban Revolution)
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चे ग्वेरा की जन्मभूमि थी अर्जेंटीना. लेकिन हम शुरू करेंगे उसकी कर्म भूमि से. सेंट्रल अमेरिका में बसा एक बेहद छोटा सा देश है- रिपब्लिक ऑफ ग्वाटेमाला. अमेरिकी के पड़ोसी मेक्सिको से बेहद नजदीक बसा ये देश 1954 में एक तख्ता पलट का गवाह बना. चे ग्वेरा की उम्र तब 26 साल थी. और वे ग्वाटेमाला में ही थे. क्रांति की तलाश में. लेकिन इस अनुभव ने उनकी जिंदगी में ऐसा असर डाला कि उन्होंने अपनी मां को खत लिखकर कहा,
“मां, मुझे यकीन हो गया है कि दुनिया तर्क और विवेक से नहीं चलती.”
ऐसा हुआ क्या था ग्वाटेमाला में? जैसा पहले बताया एक तख्तापलट हुआ था. और जहां तख्तापलट की बात हो, वहां अमेरिका का जिक्र न आए, ऐसा कम ही होता है. 1960 के दशक में CIA ने ग्वाटेमाला में सरकार बदलने का एक ऑपरेशन चलाया.
दरअसल उस दौर में ग्वाटेमाला में यूनाइटेड फ्रूट नाम की एक अमेरिकी कम्पनी धंधा किया करती थी. केले का कारोबार करने वाली इस कंपनी ने पहले होंडुरस, फिर ग्वाटेमाला और फिर लैटिन अमेरिका के एक दर्जन देशों को लगभग अपनी पर्सनल जागीर बना लिया था. तानाशाहों और भ्रष्ट रेजीम की मदद से इस कंपनी ने इन देशों की बड़ी बड़ी जमीन कब्ज़ा ली. और फलों की खेती शुरू कर दी. कंपनी का फायदा था लेकिन आम लोग भूखे मरते थे. उनके पास न जमीन थी, न कृषि का हक़. लगभग आधी सदी से चल रहे इस धंधे में साल 1953 में ब्रेक लगा.
ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति थे, कर्नल हाकोबो अरबेन्ज ग़ुजमैन. कर्नल हाकोबो सुधारवादी लीडर थे. 1953 ही उन्होंने भूमि सुधार लाने की कोशिश की. इससे यूनाइटेड फ्रूट कंपनी को अपने साम्राज्य पर खतरा दिखाई देने लगा. हेंस एंटर - CIA. CIA ने ऑपरेशन पीबीसक्सेस के तहत हाकोबो को सत्ता से हटा दिया. और उनके बदले ऐसी सरकार बिठा दी जो अमेरिकी इंटरेस्ट की रक्षा करती थी. ग्वाटेमाला में जो कुछ हुआ, चे ग्वेरा ने उसे काफी नजदीक से देखा. इस अनुभव ने उनके मन में अमेरिका के लिए नफरत भर दी. उन्होंने ठान लिया कि बिना हथियार उठाए क्रांति नहीं हो सकती. इसके बाद उनकी मुलाकात होती है फिदेल कास्त्रो से. और शुरू होता है सशस्त्र क्रांति का एक लम्बा दौर. क्रांति के बीज चे ग्वेरा के मन में कैसे पड़े, ये जानने के लिए उनके बचपन का एक किस्सा सुनिए. (Che Guevara revolutionary)
मोटरसाइकल डायरी
चे जब छोटा था, उसके साथ एक घटना घटी. जिस गली में वो रहता था, उसकी दूसरी तरफ गरीबों की एक बस्ती हुआ करती थी. बस्ती में एक शख्स रहता था, जिसे लोग 'कुत्ते वाला आदमी' कहकर बुलाते थे. वो बेचारा विकलांग था. और एक छोटी सी गाड़ी से चलता था. गाड़ी मतलब लकड़ी का एक पटरा जिसमें नीचे पहिए लगे होते थे. इस गाड़ी से वो कुछ कुत्तों को बांध देता था. और कुत्ते खींचकर उसे इधर उधर ले जाते थे. एक रोज़ जब गली में कुत्ते उसकी गाड़ी खींच रहे थे. कहीं से कुछ बच्चे आए. और उन्होंने उस विकलांग आदमी को परेशान करना शुरू कर दिया. वे उसे पत्थर मारने लगे.

ये देखकर चे ग्वेरा को बहुत गुस्सा आया. उसने उन बच्चों को वहां से भगा दिया. चे को लगा था कि उसने उस आदमी की मदद की है. लेकिन उसने चे का शुक्रिया अदा करने के बजाय उसे ही हड़काना शुरू कर दिया. चे ने उसकी आंखों में एक अजीब सी नफरत देखी. उसने देखा कि वो आदमी इस हरकत के बावजूद उन बच्चों की बजाय चे को दुश्मन मान रहा था. उस रोज़ चे को पहली बार अहसास हुआ कि क्लास डिवाइड क्या चीज होती है. चे कमोबेश अमीर था, जबकि जो बच्चे उस विकलांग को परेशान कर रहे थे, वो उसके अपने थे. क्योंकि वो उसकी ही तरह गरीब थे.
हालांकि चे बहुत अमीर नहीं था, लेकिन उसकी हालत ज्यादातर लोगों से अच्छी थी. पिता गरीब थे लेकिन मां अमीर घर से आती थीं. 1928 में चे की पैदाइश हुई. दूसरा जन्मदिन आने में महज हफ्ते भर का समय था. जब एक रोज़ मां उसे नदी तक ले गयी. छोटे अर्नेस्टो को तैरना पसंद था. लेकिन उस रोज़ ठण्ड ने ऐसा जकड़ा कि अस्थमा का अटैक आ गया. अस्थमा जिंदगी भर साथ रहा. इसके चलते चे स्कूल नहीं जा पाया. लेकिन फिर भी पढ़ाई खूब की. क्रांतिकारियों के बारे में पढ़ा. मार्क्स को घोट के पी लिया. क्रांति के बीज यहीं से पड़े. आगे जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लिया.
चे में क्रांति की धुन थी. लेकिन बिना शस्त्रों के क्रांति उसे कभी पसंद नहीं आई. कॉलेज में एक बार जब दोस्तों ने एक विरोध प्रदर्शन में चलने को कहा, चे ने जवाब दिया, बिना हथियार जुलूस में जाऊं, फालतू डंडे खाने के लिए. जीत नहीं सकते तो लड़ो मत, ये ग्वेरा का सिद्धांत था. कॉलेज में ही चे की दोस्ती हुई अल्बर्टो ग्रेनाडो से. ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे की तर्ज़ पर दोनों ने मोटरसाइकिल ली और निकल गए सफर में. एक ऐसा सफर जिसने चे को दुनिया से रूबरू करवाया. दोनों ने मोटरसाइकिल से पूरे लैटिन अमेरिका का दौरा किया. चिली, पेरू, इक्वाडोर, कोलंबिया, वेनेजुएला और अमेरिका. 9 महीने की इस यात्रा में चे के मार्क्सवादी विचार पुख्ता हो गए.
चे को दिखाई दिया कि दुनिया दो हिस्सों में बंटी थी. अमीर और गरीब. गरीब हर जगह प्रताड़ित थे. चे की नज़रों में ये अमेरिकी पूंजीवाद का कसूर था. जैसा पहले बताया यूनाइटेड फ्रूट जैसी कंपनियों ने पूरे लैटिन अमेरिका को बाजार बनाया हुआ था. और इसमें अमेरिकी सरकार उनकी मदद करती थी. अधिकतर देशों में या तो ऐसी सरकारें थीं जो अमेरिका के पलड़े में थी. या ऐसे डिक्टेटर जिन्हें खरीदा जा सकता था. ये सब चे ने अपनी डायरी में लिखा. जिसे एक किताब की शक्ल दी गयी. मोटर साइकिल डायरीज़ नाम की इस किताब के अंत में चे प्रतिज्ञा करते हैं कि वो ग़रीब और हाशिये पर धकेले जा चुके लोगों के लिए जीवनभर लड़ाई लड़ेंगे. उन्होंने वापस अर्जेंटीना लौटकर डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की और एक बार फिर यात्रा पर निकल गए.
क्यूबा की क्रांति
सबसे पहले वो ग्वाटेमाला गए. वहां उन्होंने गरीबों के लिए लड़ाई की शुरुआत की. उन्हें उम्मीद थी कि राष्ट्रपति कर्नल हाकोबो के सुधार कार्यक्रम से गरीबों की हालत में सुधार होगा. लेकिन जब CIA ने तख्तापलट के जरिए इन सुधारों पर पानी फेर दिया , चे ग्वेरा ने हथियार उठाने की ठान ली. इस मुहिम का कोई फायदा नहीं हुआ. चे को मेक्सिको भागना पड़ा. यहां उनकी मुलाकात कुछ लोगों से हुई जो क्यूबा से निर्वासित थे. उन लोगों ने चे की मुलाकात कराई फिदेल कास्त्रो से. ये मुलाक़ात चे की जिंदगी की सबसे निर्णायक मुलाक़ात साबित हुई. दोनों अलग थे. चे आग थे, तो फिदेल पानी. लेकिन फिर भी क्रांति की चाहत दोनों को थी. फिदेल अपने देश क्यूबा में क्रांति लाना चाहते थे. क्यूबा में तब बतिस्ता की तानाशाही सत्ता चलती थी. बतिस्ता को अमेरिका का समर्थन हासिल था. और फिदेल उसे सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहते थे.
फिदेल और चे ग्वेरा ने मिलकर क्यूबा में क्रांति की शुरुआत की. दोनों ने एक गुरिल्ला फ़ोर्स को बनाई. जिसने बतिस्ता की फौज की नाक में दम कर दिया. धीरे-धीरे ये क्रांति इतनी बड़ी हो गई कि राष्ट्र्पति बतिस्ता को देश छोड़कर भागना पड़ा. और फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा में कम्युनिस्ट शासन की नींव डाल दी. चे को जिम्मेदारी मिली उन लोगों से निपटने की, जो बतिस्ता के समर्थक रहे थे. क्रांति के बाद फिदेल ने इन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. क्यूबा में एक पुराना किला था. ला कबाना नाम का. ये किला जेल की तरह इस्तेमाल किया जाता था. फिदेल कास्त्रो ने चे ग्वेरा को इस किले का कमांडर नियुक्त किया. ग्वेरा ने एक वॉर ट्रिब्यूनल बनाया. इस ट्रिब्यूनल ने बतिस्ता समर्थक हजारों लोगों को मौत की सजा सुनाई. सजा के खिलाफ अपील का ऑप्शन था और ग्वेरा खुद ऐसी अपील को रिव्यू करते थे.

हालांकि ग्वेरा के विरोधी आरोप लगाते हैं कि इस दौरान ग्वेरा ने बिना प्रक्रिया का पालन किए, हजारों लोगों को मरवाया. कई लोगों को क्यूबा छोड़कर भागना पड़ा. इनमें से कई लोग अमेरिका जाकर बसे. जो सालों तक यही मानते रहे कि ग्वेरा ने क्यूबा में नरसंहार किया था. हालांकि क्यूबा की सरकार का तर्क दूसरा था. उनके अनुसार इन लोगों को सजा देने के लिए वैसा ही तरीका अपनाया गया जैसा, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नाजियों को सजा देने के लिए न्यूरमबर्ग ट्रायल्स के दौरान अपनाया गया था. कास्त्रो और चे का दावा था कि ये जनता की मांग थी. सच्चाई जो भी हो, चे पर लिखी अधिकतर किताबें इस बात का समर्थन करती हैं कि क्यूबा की क्रांति ने चे ग्वेरा को बहुत कठोर बना दिया था. और वो क्रांति के रास्ते में आने वाले लोगों को हटाने के लिए कोई भी तरीका जायज ठहराने लगे थे. क्यूबा में सफलता हासिल करने के बाद कुछ साल तक चे सरकार का हिस्सा रहे.
क्यूबा की क्रांति से आगे
कास्त्रो ने उन्हें बाद में उद्योग मंत्री बनाया और साथ ही वे ‘बैंक ऑफ़ क्यूबा’ के अध्यक्ष बनाये गए. 1959 में कास्त्रो ने उन्हें विदेशी दौरों पर भेजा. चे ग्वेरा भारत भी आए. यहां प्रधानमंत्री नेहरू से मुलाक़ात की. जिसके बाद नेहरू ने उन्हें एक खुकरी गिफ्ट की. आगे चे जापान भी गए. वहां अधिकारी चे को एक युद्ध स्मारक पर ले जाना चाहते थे. लेकिन चे ने इंकार कर दिया. उन्होंने कहा,
"मैं हिरोशिमा जाऊंगा, जहां अमेरिकियों ने 1 लाख मासूम जापानियों की हत्या कर दी थी".
यात्राओं के बाद ग्वेरा क्यूबा लौटे. वहां उन्होंने भूमि सुधार क़ानून लागू किए. बड़े जमीन मालिकों से जमीन लेकर छोटे किसानों में बांटी. नई इंडस्ट्रीज़ की नींव रखी. शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दिया. लेकिन फिर भी क्यूबा की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ पाई. कुछ लोग इसका कारण कास्त्रो सरकार की नीतियों को मानते हैं. वहीं कास्त्रो समर्थकों का कहना है कि ये सब अमेरिका के कारण हुआ था. ये कोल्ड वॉर के दिन थे. अमेरिका कम्युनिस्टों को अपना दुश्मन मानता था. इसलिए क्यूबा सोवियत संघ के नजदीक आता गया. सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइल तैनात कर दिए. अमेरिका अपने पड़ोस में ये बर्दाश्त नहीं कर सकता था. इसलिए अमेरिकी ट्रुप्स ने क्यूबा में दाखिल होकर वहां कास्त्रो के खिलाफ विद्रोह भड़काने की प्लानिंग की. लेकिन इसमें अमेरिका को सफलता नहीं मिली.
क्यूबा का मिसाइल क्राइसिस तो कुछ साल में शांत हो गया. लेकिन क्यूबा हमेशा के लिए अमेरिका का कट्टर दुश्मन बन गया. क्यूबा पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए. जिसके कारण वहां की अर्थव्यस्था कभी तेज़ी से नहीं बढ़ पाई. इधर कुछ साल बाद चे भी प्रशासनिक काम से ऊब चुके थे. उन्होंने तय किया कि वो क्यूबा छोड़कर कांगो चले जाएंगे. अगले कुछ साल तक चे ग्वेरा दुनिया की नज़र से एकदम गायब हो गए. उन्होंने अपनी दाढ़ी और बाल काट लिए, अपना हुलिया बदल लिया. ये सब सीआईए से बचने के तरीके थे. अमेरिका की नज़र में ग्वेरा आतंकी थे. चे ग्वेरा जहां जहां गए, अमेरिका ने उनका पीछा नहीं छोड़ा.
कांगो में चे के क्रांति के प्रयास फेल रहे. इसके बाद उन्होंने दक्षिण अमेरिकी देश बोलीविया का रुख किया. चे को उम्मीद थी कि अगर बोलीविया में क्रांति सफल रही तो जल्द ही वो आसपास के देशों में फ़ैल जाएगी. लेकिन बोलीविया में चे को वैसा सपोर्ट नहीं मिला, जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी. न मजदूर वर्ग ने उनका समर्थन किया, न ही बोलीविया की कम्युनिस्ट पार्टी ने. फिर भी चे ने एक गुरिल्ला फ़ोर्स बनाकर सेना के खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया. इस बीच CIA को ग्वेरा के बोलीविया में होने की खबर मिल चुकी थी. उन्होंने अपनी एक टीम बोलीविया भेजी और वहां की फौज की मदद करनी शुरू कर दी.

8 अक्टूबर 1967 की तारीख. बोलिवियन फौज ने चे और उनके साथियों को चारों तरफ से घेर लिया. चे को सरेंडर करना पड़ा. जॉन ली एंडरसन की किताब के अनुसार पकडे जाने से पहले चे की बन्दूक की गोलियां ख़त्म हो चुकी थीं. उनका पैर गोलियों से छलनी था. ऐसे में जब फौज उनके एकदम नजदीक पहुंच गई, चे ने चिल्लाकर कहा,
"गोली मत चलाना, मैं चे ग्वेरा हूं, मौत से ज्यादा जिन्दा रहकर तुम्हारे काम आऊंगा".
चे ग्वेरा की मौत
चे ग्वेरा को पकड़ लिया गया. हालांकि बोलवियन फौज का उनको जिन्दा छोड़ने का कोई प्लान नहीं था. चे को पकड़ने वाली टुकड़ी के एक अफसर ने बाद में बताया कि जिस वक्त चे को पकड़ा गया, उनकी हालत काफी ख़राब थी. वो उठे और एक फौजी से तम्बाकू मांगा. तम्बाकू लेकर वो उसे अपने पाइप में भरकर पीने लगे. तभी एक दूसरा अफसर आया और उनसे पाइप छीनने की कोशिश करने लगा. वो उस पाइप को बतौर निशानी अपने पास रखना चाहता था. ग्वेरा ने उसे एक लात मारी और दूर भगा दिया. अगले रोज़ चे को एक स्कूल में ले जाया गया. बोलीविया के राष्ट्रपति ने उनकी हत्या के आदेश दिए. सवाल था कि चे ग्वेरा को गोली कौन मारेगा?
ये जिम्मेदारी ली मारियो टेरान नाम का एक फौजी ने. टेरान की उम्र 27 साल थी. उसके कई साथी चे ग्वेरा से लड़ते हुए मारे गए थे. इसलिए वो ग्वेरा से भयंकर नफ़रत करता था. उसने शराब के कुछ घूंट पिए और ग्वेरा की तरफ अपनी पिस्तौल तान दी. उसके हाथ अभी भी कांप रहे थे. तब ग्वेरा ने उससे कहा,
"कायर, गोली चला, तू सिर्फ़ एक आदमी को मार रहा है".
चे ग्वेरा को कुल 9 गोलियां मारी गई. इसके बाद उनके हाथ काटकर क्यूबा भिजवाए गए. और बाकी शरीर को एक अज्ञात स्थान पर दफना दिया गया. हालांकि मौत ने ग्वेरा को अमर कर दिया. दुनिया भर में उनके दीवानों की एक लम्बी फौज तैयार हुई जो ग्वेरा को आदर्श मानते हैं. क्यूबा में उन्हें हीरो का दर्ज़ा मिला. जबकि लैटिन अमेरिका के कई देशों में उन्हें संत की तरह पूजा गया. वो दुनिया भर में क्रांति का एक सिंबल बन गए. हालांकि जैसा पहले बताया ग्वेरा के आलोचकों की भी कमी नहीं है. क्यूबा छोड़कर अमेरिका पहुंचे लोग उन्हें एक क्रूर इंसान मानते हैं. जो हत्या करने में लुत्फ़ महसूस करता था. (Che Guevara death)
चे ग्वेरा के बारे में अगर एक अंतिम बात जाननी हो तो एक और आख़िरी किस्सा सुनिए,
मारियो टेरान के बारे में हमने अभी आपको बताया. ग्वेरा को मारने के बाद उन्होंने 30 साल तक नौकरी की और फिर रिटायर हो गए. दुनिया उन्हें भूल चुकी थी लेकिन फिर साल 2007 में दोबारा उनका नाम सामने आया. टेरान को बुढ़ापे में आंख की बीमारी हो गई थी. ऐसे में उनका इलाज़ हुआ वेनेजुएला में. दिलचस्प बात ये थी कि टेरान का इलाज़ क्यूबा के डॉक्टरों ने किया था. क्यूबा में हेल्थकेयर मुफ्त है. और वो एक प्रोग्राम के तहत 20 से ज्यादा देशों में हेल्थ सेवाएं देता है. इन्हीं में से एक वेलेजुएला भी था. यानी मारियो टेरान के इलाज़ में उसी देश ने मदद की, जिसके हीरो को उसने गोली मार दी थी.
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