
अविनाश दास
अविनाश दास पत्रकार रहे. फिर अपना पोर्टल बनाया, मोहल्ला लाइव
नाम से. मन फिल्मों में अटका था, इसलिए सारी हिम्मत जुटाकर मुंबई चले गए. अब फिल्म बना रहे हैं, ‘आरा वाली अनारकली’ नाम से. पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है. कविताएं लिखते हैं तो तखल्लुस ‘दास दरभंगवी’ का होता है. इन दिनों वह किस्से सुना रहे हैं एक फकीरनुमा कवि बुलाकी साव के, जो दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आ रहा है. किस्सों की अगली किस्त हाजिर है, पढ़िए.
रायसाहेब पोखर के पास मिला बुलाकी मैथिली के राइटर रामदेव झा से मिलकर जब मैथिली के दूसरे राइटर रामानंद रेणु से मिलने जा रहा था, तो बीच में रायसाहेब पोखर के पास एक पेड़ के नीचे रुक गया. दूसरी तरफ कुछ लड़के बंसी फंसाये हुए थे. उन्हें एक आदमी निहार रहा था. ऐसा लगा कि वह बुलाकी साव है. मैंने आवाज लगायी. पोखरे के ठहरे पानी पर तैरती हुई मेरी आवाज दूसरी तरफ पहुंची. उसके चौंकने से पता चला कि वह बुलाकी साव ही है. दौड़ कर उसके पास पहुंचा. हालांकि मैं उसे लेखक नहीं मानता था, क्योंकि उसका लिखा हुआ कभी सामने नहीं आया. पर उससे मिलने में लेखक से मिलने की संतुष्टि मिलती थी. उसने पूछा, इधर किधर? मैंने बताया कि दरअसल यह जानना चाहता हूं कि हमारी मैथिली में बग़ावत के गीत कब लिखे जाएंगे. सो आज सिर्फ मैथिली के साहित्यकारों से मिल रहा हूं. बुलाकी साव हंसा और जोर से हंसा. कहने लगा कि बगावत के गीत किसी योजना के तहत नहीं पैदा होते, जिसमें खरीदे हुए क्रांतिकारी शब्द पकाये जाएं. विद्यापति ने जो भी जितना भी लिखा, वह सब बगावत के गीत हैं. बोलना ही बगावत है. उसने फैज की नज्म सुनायी, "बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे, बोल जबां अब तक तेरी है..." लेकिन इस नज्म के अधिकांश शब्द मुझे समझ ही नहीं आये. मुझे उर्दू नहीं आती थी. फिर बुलाकी साव ने उसका जो तर्जुमा (अनुवाद) सुनाया, वह आज आप सबके सामने रख रहा हूं. उम्मीद है, वह एक अलग और स्वतंत्र कविता जैसी लगेगी.
जीभ के दाने खुरच कुछ बोल बोल सब बातें दफ़न हैं जो कई सालों से सीने में
फुसफुसा कर बोलते थे कौन सुनता था कौन चेहरे में छुपी चुप्पी समझता था कौन आंखों की ज़बां पढ़ कर पिघलता था इसलिए अब बोल क्योंकि बोलना हथियार है साथी और बोलना ही वार है साथी
जीभ के दाने खुरच कुछ बोल बोल सब बातें दफ़न हैं जो कई सालों से सीने में!
खट से पट की बात कराओ खटपट बंद कराओ चट से पट की सब्ज़ी लेकर चटपट भात खिलाओ नट से खट में घुंघरू बांधो नटखट नटिन नचाओ लट से पट का जाला बुन कर लटपट बात बनाओ
सूरज जब तक डूब रहा है तब तक देह गलाओ सांझ सकारे घर आ जाओ मन का दिया जलाओ पोथी लेकर पतरा बांचो दास कबीरा गाओ चादर जितने पांव पसारो बिस्तर पर सो जाओ
बुलाकी साव के किस्सों की पिछली दो कड़ियां यहां हैं-