इस पंक्ति के बाद जाने कितने बड़े-बड़े लोगों के संघर्षों के किस्सों की शुरुआत होती है. हर जगह बार-बार यही पढ़ने और सुनने मिलता है. थोड़े ढंग से बोलें तो 'क्लीशे' लाइन है. लेकिन उनका क्या जो बंबई में ही पैदा हुए और अपने सपनों की पोटली बगल में दबाए अपने ही शहर में घूमते रहे. उनका संघर्ष किन मायनों में बाहर वालों से अलग होता है. ये हम पता लगाएंगे बंबई में ही पैदा हुए एक डायरेक्टर के जीवन के किस्सों से.
यहां बात बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर मधुर भंडारकर की हो रही है. 26 अगस्त 1968 को बंबई के ख़ार में आज ही के दिन पैदा हुए थे मधुर. जिन्होंने आगे चलकर 'चांदनी बार', 'ट्रैफिक सिग्नल', 'कॉर्पोरेट', 'पेज 3', और 'फैशन' जैसी फ़िल्में बनाईं. अभी हाल ही में रिलीज़ हुई उनकी फिल्म 'इंदु सरकार' ने तो गज़ब ही ढा दिया है. इस फिल्म ने वो कर दिखाया है, जो बॉलीवुड वाले होते देखना चाहते थे. पहलाज निहलानी का जाना!

मधुर भंडारकर की फिल्म 'इंदु सरकार' का पोस्टर.
मधुर की अधिकतर फिल्मों ने किसी न किसी केटेगरी में नेशनल अवॉर्ड जरूर जीता है. इनकी फिल्म 'पेज 3' को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला तो 'ट्रैफिक सिग्नल' के लिए मधुर बेस्ट डायरेक्टर का नेशनल अवॉर्ड ले उड़े. इनकी लाइफ के इंटरेस्टिंग वाले किस्से पढ़ लीजिये:-
1. फिल्मों के कैसेट के धंधे से फ़िल्में बनाना सीख गए
ऐसा था कि सब बच्चों की तरह मधुर का मन भी पढ़ने में नहीं लगता था. समझाया गया. नहीं समझे. फेल हो गए. अब पापा कोई अंबानी तो थे नहीं. तो नाम कटा कर घर बैठा दिए गए. लेकिन खाली घर बैठे क्या ही करते. सोचा कोई बिज़नेस करते हैं. तब के समय में लोग कैसेट ख़रीद कर या किराए पर लाकर फ़िल्में देखते थे. बच्चा स्टार्टअप माइंडेड था. 10-15 कैसेट खरीदे और लोगों के घरों में जाकर डिलीवर करने लगे. बड़े-बड़े लोगों के घर कैसेट देने जाते थे जैसे सुभाष घई, मिथुन चक्रवर्ती. तो बिज़नेस चलने लगा. 1500 से ज़्यादा कैसेट्स जमा हो गए. लेकिन टाइम बदला और लोगों ने टीवी पर फ़िल्में देखना शुरू कर दिया. बिज़नेस ठप हो गया. हालत इतनी बुरी थी कि रेड लाइट पर च्युइंग गम बेचना पड़ा. लेकिन मौका मिलने पर उन फिल्मों को मधुर ने खुद ही देखना शुरू किया. यहां से आइडिया आया कि फिल्मों में भी जाया जा सकता है. फिर क्या? शुरू हो गया स्ट्रगल!
पहले कैसेट बेचते थे .आजकल उनके कवर्स पर छपते हैं.
2. रोड पर फिल्म देखते वक़्त गाय ने दौड़ा लिया था
फिल्मों का चस्का अब मधुर को लग चुका था. लेकिन चस्के से क्या होता, रोकड़ा भी तो चाहिए था फिल्म देखने के लिए. जब कहीं फिल्म लगती तो किसी के साथ हो लेते थे. एक बार इनकी गली में ही परदे पर फिल्म दिखाई जा रही थी. फिल्म थी 'अमर अकबर एंथनी'. पूरे मोहल्ले के लोग जमा होकर फिल्म देख रहे थे. मधुर एकदम परदे में सट कर फिल्म देख रहे थे. एक दम आगे. ताकि पीछे कोई हल्ला-गुल्ला हो तो डिस्टर्ब न हो. फिल्म चल रही थी. पीछे हल्ला होना शुरू हुआ. सब लोग भागने लगे. मधुर यहां खुश हो रहे थे कि अब कम लोग हैं तो कम हल्ला होगा. लोग गिनने के लिए पीछे मुड़े तो देखा एक गायों का झुंड भीड़ में घुस गया है. पीछे का इलाका खाली करवाने के बाद इन्हीं की ओर बढ़ रहा है. हाथ-पांव फूलने लगे. जैस-तैसे जान बची.via GIPHY
3. रामगोपाल वर्मा ने दिया पहला मौका
जब फिल्ममेकिंग की तरफ मधुर का झुकाव हुआ तो उन्होंने छोटे-मोटे डायरेक्टर्स के साथ दिहाड़ी पर काम करना शुरू किया. काम कुछ ख़ास नहीं था. लेकिन फिल्म की शूटिंग देखने और मेकिंग सीखने के साथ 300 रुपए भी मिल जाते थे. ये प्रोसेस कुछ दिनों तक चला. तब तक मधुर फिल्ममेकिंग के बेसिक्स सीख गए थे. काम की तलाश में भटक रहे थे. काम दिया रामगोपाल वर्मा ने. फिल्म थी आमिर खान की 'रंगीला'. टेस्ट-वेस्ट लिया गया. समझदार पाए गए. नौकरी लग गई असिस्टंट डायरेक्टर की. वर्मा के साथ मधुर ने 'द्रोह', 'रंगीला' समेत 3 फिल्मों में काम किया. पोस्ट में बढ़ोतरी हो गई थी. ये साल था 1995 का. असिस्टंट डायरेक्टर से एसोसिएट प्रोड्यूसर बन गए थे. लेकिन अब ये सब काम करने में दिक्कत आ रही थी. क्योंकि अपनी फिल्म बनानी थी.
रामगोपाल वर्मा के साथ मधुर (बाएं) और फिल्म 'रंगीला' का पोस्टर (दाएं).
4. पहली फिल्म बनाने में तीन साल लगे और फिर भी पिट गई

मधुर की पहली फिल्म 'त्रिशक्ति' के पोस्टर्स.
1997 से जो फिल्म बननी शुरू हुई वो 1999 में रिलीज़ हुई. ये टाइम सिर्फ बनने में नहीं बल्कि फंड जुटाने से लेकर रिलीज़ तक का सफ़र था. सबके कहने पर मसाला पिक्चर बनाई थी. जो रिलीज़ होने से पहले ही पुरानी हो गई. क्योंकि टाइम पर रिलीज़ नहीं हुई. इस फिल्म का नाम था 'त्रिशक्ति'. फिल्म में अरशद वारसी और मिलिंद गुनाजी लीड रोल में थे. प्रोड्यूसर्स के कहने पर उन्होंने अपनी इस फिल्म का कॉन्सेप्ट चेंज कर दिया और फिल्म मसाला एंटरटेनर बन गई. मधुर की स्क्रिप्ट को लोगों ने सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि वो फिल्म के थ्रू कुछ मैसेज देना चाहते थे. प्रोड्यूसर्स ने मधुर से कहा कि अगर मैसेज देने हैं तो एक रुपया खर्च करके फ़ोन से दे दें. इसके लिए करोड़ों रुपए खर्च करने की क्या जरूरत है.
5. फिर आई 'चांदनी बार' और मधुर भंडारकर डायरेक्टर कहलाने लगे

मधुर की फिल्म 'चांदनी बार' का पोस्टर.
इंडस्ट्री के रिवाज़ के मुताबिक पहली फिल्म पिट जाने के बाद कोई भी काम नहीं दे रहा था. पिछली फिल्म में जो गलती की थी उससे बचना चाहते थे. इसलिए अच्छी कहानी का इंतजार कर रहे थे. स्क्रिप्ट मिली और सीधे तब्बू के पास गए. तब्बू ने हां कर दी. फिल्म बनी और हिट हुई. फिल्म देखने के बाद कई लोगों ने डायरेक्टर से मिलने की इच्छा जताई. मिलने गए. इज़्ज़त बख्शी गई. मीडिया ने फोटो खींचना चालू कर दिया. डायरेक्टर कहलाने लगे. फिर फिल्म को नेशनल अवॉर्ड भी मिल गया. अवॉर्ड था नेशनल फिल्म अवॉर्ड फॉर बेस्ट फिल्म ऑन सोशल इशू. अवॉर्ड का नाम जितना बड़ा था, ख़ुशी उससे सौ गुना ज़्यादा बड़ी थी.
6. इमरजेंसी पर बनी उनकी फिल्म 'इंदु सरकार' आज कल ख़बरों में है

मधुर भंडारकर और पहलाज निहलानी.
मधुर भंडारकर की हाल ही में आई फिल्म 'इंदु सरकार' अपने विषय को लेकर खासी चर्चा में रही थी. ये फिल्म इमरजेंसी के वक़्त हो रही घटनाओं पर बेस्ड है. इस फिल्म के लिए मधुर को सेंसर बोर्ड से भी काफी लड़ाई लड़नी पड़ी. सेंसर बोर्ड ने उनकी फिल्म से 17 सीन हटाने को कहा था. लेकिन रिवाइजिंग कमिटी में जाने के बाद फिल्म को दो कट्स और 2 बीप के साथ रिलीज़ कर दिया गया. अपने फैसलों के कारण फिल्म जगत से चौतरफा आलोचना झेल रहे सेंसर बोर्ड चीफ पहलाज निहलानी इस फिल्म में 17 कट्स लगाने को लेकर एक बार फिर से ख़बरों में आ गए थे. लेकिन इसका अंजाम उन्हें अपनी कुर्सी छोड़कर भुगतना पड़ा.