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बस्तर माने बारूदी सुरंग, नक्सल और पुलिस ही नहीं होता... बस्तर बैंड दिखाता है नया चेहरा

बस्तर बैंड यहां के आदिम संगीत का प्रतिनिधि है और लोक की शक्ति का पर्याय भी.

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बस्तर बैंड में 60 से अधिक प्रचलित व दुर्लभ वाद्य और आठ से दस बोलियों-भाषाओं का प्रतिनिधित्व है.
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यह लेख मुन्ना के. पाण्डेय ने लिखा है. 1 मार्च 1982 को बिहार के सिवान में जन्मे डॉ. पाण्डेय के नाटक, रंगमंच और सिनेमा विषय पर नटरंग, सामयिक मीमांसा, संवेद, सबलोग, बनास जन, परिंदे, जनसत्ता, प्रभात खबर जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में दर्जनों लेख/शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली सरकार द्वारा ‘हिन्दी प्रतिभा सम्मान (2007)’ से सम्मानित डॉ. पाण्डेय दिल्ली सरकार के मैथिली-भोजपुरी अकादमी के कार्यकारिणी सदस्य रहे हैं. उनकी हिंदी प्रदेशों के लोकनाट्य रूपों और भोजपुरी साहित्य-संस्कृति में विशेष दिलचस्पी है. वे वर्तमान में सत्यवती कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) के हिंदी-विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.

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