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सेक्युलर था, किसने इस्लामिक बना दिया? बांग्लादेश में कैसे हुआ कट्टरपंथियों का उभार?

Bangladesh की Politics में जिस शख्स को Sheikh Mujibur Rahman के बरअक्स खड़ा करने की कोशिश की जाती है- वो हैं Ziaur Rahman. Mujibur Rahman के Murder के बाद Ziaur Rahman के हाथ सत्ता कैसे आई? और जिया के कार्यकाल में बांग्लादेश कैसे बदला? फिर ये मुल्क कहां से कहां पहुंच गया?

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जियाउर रहमान (बाएं) ने बांग्लादेश का कायापलट कर डाला था | फाइल फोटो

27 मार्च 1971 की बात है. बंगाल की खाड़ी में मौजूद एक जापानी जहाज को कुछ सिग्नल मिलने शुरू हुए. मैसेज ईस्ट पाकिस्तान में मौजूद चटगांव के कालूरघाट से प्रसारित हो रहा था- “हमारे नेता बंगबंधु मुजीबुर्रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) के नाम पर घोषणा करता हूं कि Bangladesh आज से आजाद है."

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इस सन्देश को रेडियो ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार दुनिया भर के लिए प्रसारित किया और यहीं से दुनिया को पता चला कि बांग्लादेश ने आजादी की घोषणा कर दी है. इस सन्देश को प्रसारित करने वाले जिया उर रहमान (Ziaur Rahman) आगे चलकर बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने. उन्होंने ही बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का गठन किया. जो वर्तमान में बांग्लादेश की दो बड़ी पार्टियों में से एक है. और जिसकी कमान जिया उर रहमान की पत्नी खालिदा जिया के हाथ में है. दूसरी बड़ी पार्टी है - आवामी लीग. जो शेख हसीना की पार्टी है.

अगस्त 2024 में जब हम आपसे बात कर रहे हैं. बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्तापलट कर एक अंतरिम सरकार बनाई जा चुकी है. अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस का कहना है कि स्थिति सामान्य होते ही आम चुनाव होंगे. आगे क्या होगा, चुनाव कब होंगे? कहना मुश्किल है. लेकिन अगर चुनाव हुए, BNP सत्ता की सबसे प्रबल दावेदार होगी. इसलिए भारत में अभी से कयास लगने शुरू हो गए कि अगर BNP दोबारा सत्ता में आई तो बांग्लादेश में किस तरह के बदलाव होंगे. फिलहाल हम आपको लेकर चलते हैं इतिहास की तरफ.

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BNP की शुरुआत कैसे हुई? मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद जिया उर रहमान के हाथ सत्ता कैसे आई? और जिया के कार्यकाल में बांग्लादेश कैसे बदला?

बांग्लादेश की राजनीति में जिस शख्स को मुजीब के बरअक्स खड़ा करने की कोशिश की जाती है- वो हैं जिया उर रहमान. जिया उर रहमान हालंकि छठे राष्ट्रपति थे. फिर मुजीब से उनकी तुलना कैसे होती है?

एक उदाहरण देखिए, अभी हमने बताया कि 27 मार्च 1971 को जिया ने बांग्लादेश की आजादी का सन्देश दिया था. वर्तमान में उनकी पार्टी BNP का दावा है कि चूंकि जिया के सन्देश से दुनिया को बांग्लादेश की आजादी का पता चला, इसलिए बांग्लादेश के गठन में जिया का बड़ा रोल है. जबकि आवामी लीग के समर्थकों के अनुसार जिया से पहले 26 मार्च को शेख मुजीब का संदेश प्रसारित हो चुका था. 1971 युद्ध के दस्तावेज़ों का संकलन करने वाले MMR जलाल, बांग्लादेश के अखबार, द डेली स्टार के आर्टिकल में लिखते हैं,

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‘गिरफ्तारी से पहले ही शेख मुजीब ने अपना संदेश समर्थकों तक पहुंचा दिया था. ये संदेश 26 मार्च को रेडियो से प्रसारित भी किया गया. हालांकि बहुत कम लोगों ने इसे सुना. इसके बाद आवामी लीग के नेताओं ने मेजर जिया उर रहमान से रिक्वेस्ट की कि आर्मी का एक बड़ा अफसर अगर आजादी की घोषणा करेगा, तो ज्यादा जोर पड़ेगा. जिया तैयार हो गए. और उन्होंने भी आजादी की घोषणा कर डाली.’

किसने पहले घोषणा की थी, इस बात ने बांग्लादेश की राजनीति में दो दशक तक हंगामा मचाए रखा. खालिदा जिया की पार्टी का दावा है कि जिया ने पहले घोषणा की. वहीं शेख हसीना की पार्टी ये क्रेडिट शेख मुजीब को देती है. दोनों पार्टियां जब जब पावर में आईं. स्कूलों में किताबों में हेरफेर हुआ. शेख हसीना के दौर में तो एक कानून पास कर दिया गया था कि जो कोई बंगबंधु की लेगेसी से छेड़छाड़ करेगा, उसे जेल जाना होगा.

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शेख हसीना

साल 2014 में बांग्लादेश के पूर्व एयर वाइस मार्शल AK खांडकर ने एक किताब लिखी. जिसमें उन्होंने दावा किया कि शेख मुजीब ने आजादी की घोषणा से जुड़ा कोई संदेश लिखा ही नहीं था. इस किताब के ऊपर आवामी लीग के समर्थकों ने इतना हंगामा किया कि खांडकर को किताब का वो हिस्सा हटाना पड़ा. बाकायदा बाद में उन्होंने फॉर्मल माफी भी मांगी.

#Ziaur Rahman का उभार

सलिल त्रिपाठी अपनी किताब, The Colonel Who Would Not Repent में लिखते हैं,

'शेख मुजीब से अलग, जिया उर रहमान मिलिट्री के आदमी थे, और प्रैग्मैटिक थे. उनके बहुत ऊंचे सपने नहीं थे. न ही उन्होंने मुजीब की तरह कोई आदर्श पेश किया था. उनका उद्देश्य बस इतना था कि शासन ठीक से चले. सब उनका आर्डर मानें और लॉयल रहें. अगस्त 1975 में शेख मुजीब की हत्या हुई. जिया को आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ नियुक्त किया गया. सत्ता की चाबी पहली बार उनके हाथ आई. नवम्बर 1975 में जब एक और सत्ता पलट हुआ, जिया को समझ आ चुका था कि आर्मी में आर्डर लाना होगा. इसलिए उन्होंने एक-एक कर अपने प्रतिद्वंद्वियों को ठिकाने लगाना शुरू किया.

इसके लिए उन्होंने दो रास्ते अपनाए. कुछ आर्मी अफसरों को मिलिट्री ट्रायल चलाकर मौत की सजा दे दी गयी. कुछ को फॉरेन अम्बेसडर बनाकर देश के बाहर भेज दिया गया. इतना ही नहीं जिया ने मुजीब के हत्यारों को भी इम्युनिटी दे दी. सलिल त्रिपाठी अपनी किताब में लिखते हैं, जिया ने मुजीब के हत्यारों को इम्युनिटी दी ताकि वे उन्हें अपना दुश्मन न समझें. जुलाई 1976 में उन्होंने खुद को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया. और इसके अगले ही साल राष्ट्रपति बन गए. सत्ता पर पकड़ बन चुकी थी. लेकिन जिया लेजेटीमेसी भी चाहते थे. इसलिए उन्होंने धार्मिक तुष्टिकरण का सहारा लेना शुरू किया.

सलिल त्रिपाठी अपनी किताब में बताते हैं,

‘जिया कहीं से धार्मिक कट्टरपंथी नहीं थे. लेकिन उनकी ट्रेनिंग पाकिस्तान में हुई थी. और उनकी सोच वहीं से तैयार हुई थी. जिसका एक बड़ा पहलू भारत का विरोध था. जिया के कार्यकाल के दौरान भारत और बांग्लादेश के रिश्ते एकदम ठंडे रहे. 1977 में राष्ट्रपति बनने के बाद जिया ने इस्लामिक पार्टियों से हाथ मिलाना शुरू किया.’

उन्होंने अज़ीज़ुर रहमान को अपनी कैबिनेट का मेंबर बनाया. जबकि ये वो शख्स था, जो बांग्लादेश युद्ध के दौरान UN जनरल असेम्ब्ली में पाकिस्तान का रेप्रेज़ेंटेटिव बन के गया था. जहां उसने बांग्लादेश की आजादी का विरोध किया था. जिया ने संविधान से सेक्युलर शब्द हटाया और संविधान में इस्लामिक रेफरेंस जोड़ दिए. जमात-ए- इस्लामी जो बांग्लादेश में बैन थी, उसके निर्वासित चीफ ग़ुलाम आजाद को जिया ने लौटने की परमिशन दी. और जमात दुबारा बांग्लादेश में खड़ी हो गई. जिया के दौर में जो निर्णय लिए गए. उनकी मुजीब के फैसलों से तुलना करेंगे तो आपको आसानी से दिखेगा कि बांग्लादेश में वर्तमान फाल्ट लाइंस कैसे तैयार हुई.

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शेख मुजीबुर्रहमान के नियमों को जिया उर रहमान ने बदल डाला

शेख मुजीब के दौर में मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले सैनिकों को वरीयता दी गई थी. जिया के दौर में ये सिस्टम हटा के पुरानी हायरार्की एस्टब्लिश की गई. जिसके चलते आर्मी में गुट बन गए. जिया ने विरोध करने वाले सैनिकों को फांसी पर लटका दिया. एंथनी मैस्करेन्हस अपनी किताब A Legacy of Blood में लिखते हैं,

‘दो महीनों में 1143 जवानों को बिना कानूनी प्रक्रिया के फांसी दे दी गई थी. जिया के दौर में भी पांच बार तख्तापलट की कोशिश हुई थी. जिया जानते थे, मिलिट्री का कोई भरोसा नहीं है. इसलिए राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक बड़ा गैम्बल खेला. अपनी कैबिनेट में मौजूद मिलिट्री ऑफिसर्स से उन्होंने कहा कि वो अपनी रैंक त्याग दें. जिया ने खुद भी मिलिट्री रैंक छोड़ दी. और खुद को सिर्फ राष्ट्रपति कहे जाने पर जोर देने लगे. राजनीतिक वैधता हासिल करने के लिए जिया ने BNP का गठन किया. 1979 में उन्होंने चुनाव कराए. जिसमें उनकी पार्टी ने 300 में से 207 सीटों पर जीत हासिल की.’

1981 में जब देश में हालात सामान्य हुए. जिया ने शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना को बांग्लादेश आने की मंजूरी दी. हसीना ने उस समय अपने राजनीतिक मंसूबे जाहिर नहीं किए थे. लेकिन देश लौटने पर उनका ऐसा स्वागत हुआ कि आवामी लीग, जो एकदम पस्त हो गई थी. उसमें नया जोश भर गया. जिया हालांकि तब तक इतनी ताकत इकठ्ठा कर चुके थे कि उन्हें राजनैतिक रूप से कोई खतरा नहीं था. खतरा हालांकि कहीं और मंडरा रहा था. जिसकी जिया को रत्ती भर भनक नहीं थी. और इसी लापरवाही के चलते जिया का अंत भी वैसा ही हुआ, जैसा उनके प्रतिद्वंद्वी शेख मुजीब का हुआ था.

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1977 में राष्ट्रपति बनने के बाद जिया ने इस्लामिक पार्टियों से हाथ मिलाना शुरू किया
#एक और हत्याकांड

29 मई, 1981 की बात है. ज़ियाउर रहमान चटगांव की यात्रा पर थे. यहां वे BNP के लोकल लीडरों का झगड़ा सुलझाने आए थे. दोपहर में कुछ मीटिंग्स के बाद जिया सर्किट हाउस चले गए. जहां उनके रुकने का इंतज़ाम था. रात को डिनर पूरा कर उन्होंने अपने कुक से कहा कि सुबह जल्दी नाश्ता तैयार कर देना. इसके बाद वो सोने चले गए. अगली सुबह ठीक चार बजे. जब जिया गहरी नींद में थे. सर्किट हाउस में कुछ लोगों ने हमला कर दिया. ये सैन्य अफसरों का एक गुट था. जो जिया की नीतियों से खुश नहीं थे. इन लोगों ने जिया के कमरे में घुसकर उनकी हत्या कर दी.

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बांग्लादेश के गठन के महज दस सालों में देश के दो राष्ट्रपतियों की हत्या हो चुकी थी. इसके बाद अगले 10 साल तक बांग्लादेश मिलिट्री शासन के अधीन रहा. हालांकि जिया के बाद उनकी पार्टी की कमान उनकी पत्नी खालिदा जिया ने संभाल ली थी. इसलिए यहां से बांग्लादेश की राजनीति में खालिदा vs हसीना, BNP vs आवामी लीग का दौर शुरू हो गया.

जैसा पहले बताया कि ये दोनों पार्टियां शेख मुजीब और जिया उर रहमान की सोच पर चलती हैं. इसलिए दोनों की लेगेसी से आप दोनों पार्टियों की नीतियों को भी समझ सकते हैं. खालिदा जिया और BNP, अगर एक बार फिर बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज़ हुई तो देश किस तरफ जाएगा, और भारत पर इसका कैसा असर होगा. इसका एक संकेत इतिहास में हुई घटनाओं से हम समझ सकते हैं. BNP के दौर में बांग्लादेश की दिशा कैसी हो सकती है, ये समझने के लिए एक और घटनाक्रम आपको बताते हैं.

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खालिदा जिया

बांग्लादेश के समाचार पत्र डेली जुगांतर के साल 2019 के एक आर्टिकल के अनुसार, साल 1979 में जब जिया उर रहमान राष्ट्रपति थे, उनके प्रधानमंत्री शाह अज़ीज़ुर रहमान ने कैबिनेट को एक सीक्रेट लेटर लिखा, जिसमें लिखा था,

“रबीन्द्रनाथ टैगोर का लिखा गीत एक भारतीय गीत है (यहां बांग्लादेश के नेशनल एंथम ‘अमार सोनार बांग्ला’ की बात हो रही है). रविंद्रनाथ टैगोर बांग्लादेश के नहीं हैं. मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है कि हिन्दू समुदाय से आने वाले कवि का लिखा गीत नेशनल एंथम है. हमें इसे बदलना होगा”

इस लेटर में कुछ दूसरे गीतों को सुझाया गया था. जिनमें से एक ‘प्रथम बांग्लादेश’ को TV पर प्रसारित भी किया जाने लगा. जिया उर रहमान खुद भी इस पक्ष में थे. जब BNP के एक लीडर डॉक्टर युसूफ ने जिया से कहा कि, हमें राष्ट्रीय झंडा भी बदलना चाहिए. इस पर जिया ने जवाब दिया- “हां हां, सब कुछ होगा. लेकिन पहले एक हिन्दू का लिखा नेशनल एंथम तो बदलने दो. उसके बाद हम नेशनल फ्लैग की सोचेंगे.” 

वीडियो: तारीख: शेख मुजीबुर्रहमान की पूरी कहानी? बांग्लादेश के लोग कैसे याद करते हैं?

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