बांग्लादेश में जो अस्थिरता (Bangladesh Unrest) हमने देखी है, उसके दूरगामी असर भी होंगे. लेकिन जो अभी दिख रहा है कि वहां प्रधानमंत्री को देश छोड़ने पड़ा. सैकड़ों लोगों की मौत के बाद अब अंतरिम सरकार बन रही है. इस बीच भीड़ की हिंसा रुकी नहीं है. बंगबंधु म्यूजियम, इंदिरा गांधी कल्चरल सेंटर जैसी कई ग़ैर-राजनीतिक जगहों पर भी तोड़-फोड़ हुई है. इन हालात का असर बांग्लादेश के समृद्ध कपड़ा उद्योग पर भी पड़ रहा है. बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग (Bangladesh Textile Industry) का हमने ख़ास तौर पर ज़िक्र किया क्योंकि इसकी ख्याति दुनियाभर में रही है. चीन के बाद बांग्लादेश दुनिया में कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है.
बांग्लादेश में मचे बवाल से भारत को हजारों करोड़ का फायदा! पूरा गणित हमसे जान लीजिए
Bangladesh–India border को सील कर दिया गया है. दोनों देशों के बीच व्यापार ठप होने की वजह से घाटा हो रहा है. लेकिन भारत में कपड़ा बनाने वाली कंपनियों के स्टॉक्स 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं. इसके पीछे माजरा क्या है?

लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा और तोड़-फोड़ के डर से बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने सभी व्यापारियों को अनिश्चितकाल तक फैक्ट्रियां बंद रखने की सलाह दी है. ये एसोसिएशन बांग्लादेश के कपड़ा उत्पादकों और व्यापारियों का एक बड़ा समूह है. इसके सहमने और घबराने का मतलब होगा बांग्लादेश की पूरी अर्थव्यवस्था का सहमना.
भारत ने भी बांग्लादेश से लगे अपने बॉर्डर सील कर दिए हैं. इसलिए दोनों देशों के बीच व्यापार ठप हो गया है. हालांकि, भारत में कुछ एक्सपर्ट्स ये मानते हैं कि भले ही इस पूरे प्रकरण से भारत-बांग्लादेश के व्यापार में घाटा हो रहा है लेकिन भारत की कपड़ा इंडस्ट्री को फिलहाल फायदा हो सकता है. ऐसी ही संभावनाओं के चलते 2 दिन में भारत में कपड़ा बनाने वाली कंपनियों के स्टॉक्स 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं. इसी से उठते हैं कुछ सवाल. जैसे,
- टेक्सटाइल इंडस्ट्री की सूरत फिलहाल दुनिया में, ख़ास तौर पर एशिया में कैसी है? बॉस कौन है?
- ये क्यों कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में पैदा हुए हालात के बाद भारत के कपड़ा उद्योग को लाभ हो सकता है?
- और बांग्लादेश जैसी छोटी इकॉनमी भारत जैसे देश की कपड़ा इंडस्ट्री के लिए कंपीटीटर कैसे बनी?
पहले समझिए कि कैसे भारत के साथ हुई कुछ दुर्घटनाओं और बांग्लादेश के कुछ सही साबित हुए फैसलों ने टेक्सटाइल इंडस्ट्री का पूरा डायनामिक्स बदल दिया.
टेक्सटाइल का इतिहासबात है 18वीं सदी की. कपड़ों के मामले में भारत जैसी दुनिया में दूसरी जगह नहीं थी. यहां मलमल बनता था. जिसके बारे में एक ब्रिटिश यात्री ने लिखा है,
"भारत में बनने वाला मलमल पानी जैसा है.
इतना मुलायम कहा जाता है कि भारत के बुनकर इस कदर महीन काम करते थे कि 90 मीटर कपड़े को आप अंगूठी से खींच सकते थे. एक ज़िक्र मिलता है कि 60 फ़ीट का कपड़ा माचिस की डिब्बी में समा जाता था. बनारसी साड़ी को ले लीजिए. जिसके एक पल्ले की चौड़ाई को बुनने में 5600 धागे लगते थे.
महज एक साड़ी बनाने में 16 से 30 दिन लग जाते थे. और एक वक्त में 3 से लेकर सात कारीगर इसे बनाने में लगते थे. हाल ये था कि इंडस्ट्रियल रेवॉल्यूशन के बाद मशीनों का इस्तेमाल करके भी ब्रिटेन, भारत में बने कपड़ों की बराबरी नहीं कर पा रहा था. इस इंडस्ट्री को ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने ढेरों उपाय किए. ब्रिटेन की सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को एक आदेश दिया. कहा कि साढ़े तीन लाख पाउंड के कपड़े इंग्लैंड से खरीदकर भारत में कम दामों पर डंप किए जाएं. माने उसे भारत में कम दामों पर बेचा जाए. ताकि भारत में बनने वाले हाई क्वालिटी कपड़ों की मार्केट में सेंध लगे.
दूसरा आदेश इससे भी ज्यादा शातिर था. क्योंकि यही मर्केंटलिज़्म यानी वाणिज्यवाद का मूल था. मर्केंटलिज़्म माने व्यापार की ऐसी पॉलिसी, जिसमें फ्री ट्रेड एकतरफा हो. माने एक पक्ष तो व्यापार में रियायत दे रहा है लेकिन दूसरा नहीं. उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन से भारत आने वाले कपड़ों पर भारत में ज़ीरो टैक्स था. क्योंकि अंग्रेज़ों ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर रखा था. लेकिन भारत में बनने वाले कपड़े अगर इंग्लैंड जाएं तो उन पर हपक कर टैक्स लगता था.
तो एक तरफ इंग्लैंड से आए कपड़े भारत में डंप किए गए. दूसरी तरफ भारत के एक्सपोर्ट्स यानी निर्यात को कम करने के लिए इंग्लैंड में भारत के कपड़ों पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाई गई. इस पूरी प्रक्रिया से भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री टूटने लगी.
आज़ादी के बाद भारत ने इस इंडस्ट्री को फिर से खड़ा करने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन ‘वो बात’ कभी नहीं आ पाई. अब भी भारत सरकार टेक्सटाइल पार्क्स बनाने पर फोकस कर रही है. जिससे भारत का टेक्सटाइल एक्सपोर्ट बढ़े. लेकिन फिर भी इंटरनेशनल मार्केट में भारतीय प्रोडक्ट्स धमाल नहीं मचा पाए हैं. ये तो हुई बात भारत की. अब बांग्लादेश का हाल भी जान लीजिये.
1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश बना, तब यहां की अर्थव्यवस्था की गाड़ी पूरी तरह से चरमरा चुकी थी. वर्ल्ड बैंक के एक इकॉनमिस्ट ने उस वक़्त बांग्लादेश के हाल पर कहा था कि “It was like the morning after a nuclear attack”
माने बांग्लादेश का हाल ऐसा ही था, माने किसी जगह हुए परमाणु हमले के बाद की सुबह. बांग्लादेश बुरे हाल में था. तभी एक पहल हुई. बांग्लादेश की कंपनी ‘देश गारमेंट्स’ ने कोरिया की ‘डाएवू’ कंपनी के साथ कोलैबोरेशन किया. उस वक़्त कोरिया की कंपनियां कपड़ा उद्योग के मामले में एक्सपर्ट थीं. बांग्लादेश से उन्हें सस्ते मजदूर मिले और बांग्लादेश को मिला उद्योग बढ़ाने का मौका. दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन.
इसके बाद बांग्लादेश में कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में कई स्वदेशी कंपनियां खड़ी हुईं. अवसर देखते हुए बांग्लादेश ने पॉलिसी में भी कुछ रियायतें दीं, बदलाव किए. नतीजा- ये देश रेडीमेड कपड़ों का एक बड़ा एक्सपोर्टर बनने लगा. बांग्लादेश में बनी कॉटन टी-शर्ट्स, पैन्ट्स ने यूरोप और अमेरिका के बाज़ार में एक दशक से धूम मचा रखी है. बीते करीब 4 दशक में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था करीब 25 गुना बढ़ी है और इसमें बड़ा योगदान टेक्सटाइल इंडस्ट्री का रहा है.
आपने जाना कि कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में भारत और बांग्लादेश कहां खड़े हैं. अब दोनों पड़ोसी देशों की तुलना की बारी.
भारत और बांग्लादेश में कौन कितना आगे?इसको समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए. साल 2023-24 में बांग्लादेश में करीब 4 लाख करोड़ रुपये के कपड़े निर्यात किए थे. जबकि भारत ने 2 लाख 82 हज़ार करोड़ रुपये के कपड़े एक्सपोर्ट किए थे. भारत के मुकाबले बांग्लादेश यूरोप में 2.7 गुना ज्यादा कपड़े एक्सपोर्ट करता है. लेकिन अगर उत्पादन की बात करें तो भारत, बांग्लादेश से आगे है. कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि इंडस्ट्री के कई पैमानों पर बांग्लादेश भारत से आगे है. लेकिन आपको एक सामान्य बात बताते हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में चलाने वाली 25% मिलों के मालिक भारतीय हैं. तो ऐसी क्या वजह है कि भारतीय कपड़ा उत्पादक भारत की जगह बांग्लादेश को प्रेफर करते है. इसके पीछे कई वजहें हैं.
पहली वजह है, यूनिट लेबर कॉस्ट. माने एक कपड़े को बनाने के लिए कितना मेहनताना देना पड़ता है. बिजनेस इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में एक शर्ट बनाने में कंपनी पर मजदूरी का खर्च 18 रुपये आता है. जबकि भारत में एक शर्ट को बनाने में 41 रुपये मजदूरी के तौर पर खर्च होते हैं. यानी दोगुने से भी ज्यादा.
दूसरी वजह है, लेबर कानून. बांग्लादेश में लेबर कानून काफी सरल है. इसकी वजह से वहां बड़ी मिलें स्थापित हो पाईं. जबकि अपेक्षाकृत सख़्त कानूनों की वजह से भारत में 80 फीसदी मिलें छोटी हैं और असंगठित क्षेत्र का हिस्सा हैं. इसकी वजह से विदेशी व्यापारी बांग्लादेश को प्रेफर करते हैं.
तीसरी बात है ऑर्डर और डिलीवरी के बीच का समय. भारत में ऑर्डर मिलने से डिलीवरी होने तक औसतन 63 दिन लगते हैं जबकि बांग्लादेश में सिर्फ 50 दिनों में ऑर्डर डिलीवर हो जाता है.
चौथी बड़ी वजह है, एक्सपोर्ट में लगने वाला समय. बांग्लादेश में फैक्ट्री से बंदरगाह तक माल पहुंचने में सिर्फ एक दिन का समय लगता है. जबकि भारत में कई बार बंदरगाह तक माल पहुंचने में 10 दिन का समय भी लग जाता है. चूंकि भारत का क्षेत्रफल भी ज़्यादा है, इसलिए ये एकदम जाहिर सी बात भी है.
ये भी पढ़ें- 'चावल के साथ नमक उबालकर खा रहे...' बॉर्डर पर पहुंचे 1 हजार से अधिक बांग्लादेशी शरणार्थी, BSF ने रोक दिया
इन सभी कारणों के चलते भारत की अपेक्षा पड़ोसी देश बांग्लादेश कपड़ा उत्पादकों और व्यापारियों के लिए आसान विकल्प हो जाता है. ऐसा नहीं है कि भारत सरकार इन समस्याओं को सुलझाने की कोशिश नहीं कर रही है. साल 2020 में भारत में लेबर कानूनों को पहले के मुकाबले सरल बनाया गया है. भारत सरकार ने कपड़े के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इंसेंटिव का प्रावधान भी बनाया है. लेकिन अभी इसका रिजल्ट नहीं मिल पाया है.
लेकिन बीते कुछ दिनों में जिस तरह से बांग्लादेश में हालात बिगड़े हैं, अस्थिरता आई है, उद्योगों को झटका लगा है, उससे भारत के कपड़ा उद्योग के लिए एक खिड़की खुलती दिख रही है.
5 अगस्त को बिजनेस स्टैंडर्ड में एक रिपोर्ट छपी. इसके मुताबिक, भारत को हर महीने 300 से 400 मिलियन डॉलर यानी 2500 से 3300 करोड़ रुपये का फायदा हो सकता है.
लेकिन हमारा उद्योग सिर्फ बांग्लादेश के हालात के भरोसे तो बैठ नहीं सकता और न ही बैठता है. और भी ज़्यादा मेहनत करनी होगी ताकि ये सिर्फ एक टेंपररी प्रॉफिट बनकर न रह जाए. पड़ोसी देश में हालात बेहतर हों, लोकतंत्र बहाल हो, ऐसी उम्मीद भारत भी करता है. प्रयास यही होना चाहिए कि हमारा उद्योग हर स्थिति में मज़बूत बना रहे.
वीडियो: तारीख: बांग्लादेश में पहले भी कांड कर चुकी है CIA, 1971 से 1990 तक क्या-क्या किया?