साइंस-फिक्शन फिल्मों में दिखाया जाता है कि जब कोई आदमी स्पेस में बहुत लंबी यात्रा कर लेता है, तो उसे एक खास तकनीक से जमा दिया जाता है. फिर दशकों बाद उसी अवस्था में जिंदा कर लिया जाता है. असल जिंदगी में ये टेक्नोलॉजी सिर्फ कुछ खुराफाती दिमागों की कल्पना में है. लेकिन विज्ञान अपार संभावनाओं को तलाशने और उन्हें सच करने की कोशिश का ही नाम है. ऑस्ट्रेलिया की एक फर्म ने इस दिशा में एक कदम बढ़ाया है. कंपनी (Australia Cryogenic Firm) ने एक शख्स की बॉडी को मायनस 200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर जमा दिया है.
'कैप्टन अमेरिका' की तरह बर्फ में जमा इंसान ज़िंदा हो सकता है क्या? ऑस्ट्रेलिया वाले तो इसी जुगाड़ से लगे हैं
ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी प्रयोग कर रही है. उन्होंने एक शरीर को -200° सेल्सियस तक जमा दिया है. मगर लाख टके का सवाल तो यही है कि वापस जिंदा किया जा सकता है या नहीं.

ABC ऑस्ट्रेलिया की खबर के मुताबिक, शख्स सिडनी का रहने वाला है. हाल ही में उसकी मौत हो गई थी. करीब 80 साल की उम्र में. इन्हें नाम दिया गया है, पेशेंट-1. रिपोर्ट के मुताबिक, पेशेेंट-1 को सिर्फ बर्फ में जमाया नहीं गया है, बल्कि इसमें एक खास तरह के प्रोसेस का इस्तेमाल करने की बात कही जा रही है. क्रायोजेनिक प्रिजर्वेशन (Cryopreservation).
जटिल नाम पर मत जाइए, इसमें क्या-कैसे किया गया है, ये बताते हैं. इसके लिए पहले ये समझ लेते हैं कि मरने के बाद शख्स के साथ ऐसा किया क्यों गया?
दरअसल एक वैचारिक प्रयोग - जिसे वैज्ञानिक लोग ‘थॉट एक्सपेरिमेंट’ कहते हैं - काफी समय से चर्चा में है. विचार ये कि अभी किसी इंसान को जिंदा करने की कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है, लेकिन अगर भविष्य में ऐसी तकनीक बन जाए, जिसके जरिए लोगों को वापस जिंदा किया जा सके, तो?
ये भी पढ़ें - जानवर के अंगों को इंसानों में लगाना कितना मुश्किल?
अब ये बात तो भविष्य में ही पता चलेगी. लेकिन कुछ लोग इस विचार पर दाव खेलना चाहते हैं. इसी सिलसिले में वो क्रायोजेनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. लोगों को इस ढंग से जमाने की बात कर रहे हैं कि बॉडी सालों-साल तक खराब न हो. इस उम्मीद में कि अगर भविष्य में तकनीक उपलब्ध हो पाई, तो उन्हें वापस से जिंदा किया जा सके.
एक करोड़ का पूरा प्रोसेस है क्या?कंपनी से जुड़े फिल रोड्स ने इस बारे में ABC को विस्तार से बताया है. फिल के मुताबिक, 12 मई, 2024 की सुबह सिडनी के एक अस्पताल में मरीज की मौत हो गई थी. इसके फौरन बाद करीब 10 घंटे चलने वाला प्रोसीजर शुरू किया गया.
मौत की खबर सुनते ही शरीर को कोल्ड रूम में ले जाया गया. बर्फ के बैग्स की मदद से फिर बॉडी का तापमान करीब 6 डिग्री सेल्सियस तक किया गया. कंपनी के मुताबिक, बॉडी में एक हार्ट-लंग बाईपास मशीन के जरिए एक खास तरह का लिक्विड डाला गया. ये ऐंटी-फ्रीजिंग एजेंट की तरह काम करता है. मतलब इससे खून नहीं जमता है और कोशिकाओं को सुरक्षित रखा जा सकता है. साथ ही शरीर का तापमान भी कम किया जा सकता है.

फिर बॉडी को एक खास तरह के बैग में रखा गया. इसमें ड्राई आइस (जमी हुई कार्बन डाई-ऑक्साइड) थी. हुआ ये कि शरीर का तापमान 80 डिग्री सेल्सियस और नीचे गया. माने -80 डिग्री के आसपास.
माइनस 200 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचाने के लिए बॉडी को साउदर्न क्रायोनिक्स की होल्डब्रूक फैसिलिटी में ले जाया गया. यहां ड्राई आइस को लिक्विड नाइट्रोजन से बदल दिया गया, और बॉडी को कंप्यूटर के कंट्रोल वाले एक टैंक में रख दिया गया.
बताया जा रहा है कि इसमें करीब 1,70,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर या करीब 94 लाख रुपये का खर्च आया.
ये भी पढ़ें - ‘बोली सोनू बीड़ी देना... ’ सुनसान जंगल में कोई नाम लेता है, ये भूत है या अपना ही दिमाग?
कंपनी ने ये भी बताया कि ये पूरा प्रोसेस बहुत सावधानी से करने की जरूरत होती है. नहीं तो शरीर के अंगों में जमने की वजह से दरार पड़ने का खतरा रहता है. खासकर दिमाग में.
क्या जमाए गए शरीर को जिंदा किया जा सकता है?लाख टके का सवाल तो यही है - जमा तो लिया, मगर वापस जिंदा किया जा सकता है या नहीं? इस बारे में कंपनी के डायरेक्टर हेनरी त्सोलॉकिडेस ने सिडनी मॉर्निंग हैराल्ड को बताया. वो मानते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है. भविष्य में ऐसे फ्रीज की गई बॉडी को वापस से जिंदा किए जाने के पीछे कोई ठोस तकनीक अभी तो नहीं है. लेकिन…
वो ये भी कहते हैं कि आने वाले 150 साल बाद मेडिसिन, क्लोनिंग, कंप्यूटिंग पावर और नैनो टेक्नोलॉजी में उन्नति की उम्मीद है. ऐसे में किसी को वापस जिंदा किए जाने के चांस 5-30% के बीच है. ये अनुमान उनका है.
उनका साफ कहना है कि ये चांस का मामला है. हालांकि, जमीन में दफन कर दिए जाने वाले या जला दिए गए लोगों के भविष्य में वापस जिंदा होने के चांस तो जीरो है.
इसके पीछे क्या मामला है?दरअसल, हमारा शरीर पानी और कई तरह के केमिकल्स से मिलकर बना है. जो लगातार नए रिऐक्शन से अपना काम चलाते रहते हैं. इससे ऊर्जा बनती है. नई कोशिकाएं बनती हैं और शरीर का कामकाज चलता है.
मरने के बाद ये रिऐक्शन रुक जाते हैं. तब शरीर को सुरक्षित रखने के लिए बेहद ठंडे तापमान की जरूरत होती है. जैसे क्रायोजेनिक तकनीक में करते हैं. फिलहाल अभी की तकनीक में पुरुषों के स्पर्म और महिलाओं के ओवम फ्रीज किए जाते हैं. ताकि भविष्य में उनका इस्तेमाल किया जा सके. लेकिन ये महज एक खास तरह की सेल्स हैं.
अंगों को भी बेहद ठंडे तापमान पर कुछ समय के लिए सुरक्षित रखा जाता है. लेकिन पूरे शरीर को वो भी मरने के बाद, सुरक्षित रखना और फिर से उसे जिंदा करना फिलहाल टेढ़ी खीर नजर आती है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मर गई कोशिकाओं को - वो भी पूरे शरीर की अलग-अलग अंगों की कोशिकाएं - इन्हें इतनी आसानी से जिंदा नहीं किया जा सकता. साथ ही मरने वाले शख्स की उस वजह को भी उलटना होगा, जिसकी वजह से उसकी मौत हुई हो. ऐसे में फिलहाल तो ये सिर्फ एक विचार और प्रयोग है.
एक सवाल लोग नैतिकता का भी उठा रहे हैं कि ऐसा करना सही है या नहीं. आपको क्या लगता है? कॉमेंट कर के बताइए.
वीडियो: सोशल लिस्ट: विज्ञापन देकर ऑक्सीजन मांगने वाले केजरीवाल क्यों हुए ट्रोल?