शहज़ादे का नाम, अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब आलमगीर. जिसे हम आज सिर्फ़ ‘औरंगज़ेब’ के नाम से जानते हैं.
क़ैदी शाहजहां अपने बेटे औरंगजेब का गिफ्ट खोलते ही बेसुध क्यों हो गया?
दारा शिकोह से हारी हुई लड़ाई जीतकर औरंगज़ेब चिल्लाया, 'ख़ुदा है, ख़ुदा है'.
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पेंटिंग: औरंगज़ेब, हाथी पर कूच करते हुए (एटलस हिस्टोरिक' शैटेलेन द्वारा, 1705-20)
आज 14 जुलाई है और इस तारीख़ का संबंध है एक शहज़ादे के बादशाह बनने की कहानी से. शहज़ादा, जिसने अपने पिता को कैद करवाया, अपने भाइयों को मरवा दिया, बादशाह बनने के बाद आधी सदी तक राज किया और आज तक विवादों में रहता आया है.
शहज़ादे का नाम, अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब आलमगीर. जिसे हम आज सिर्फ़ ‘औरंगज़ेब’ के नाम से जानते हैं.दक्खिन की निज़ाम शाही-
1636 की बात है. हमारी स्टोरी के मुख्य किरदार का पिता, यानि शाहजहां अपने साम्राज्य को मजबूत करने की कोशिश में लगा था. दक्खिन की निज़ाम शाही अपना सर उठा रही थी. दक्खिन यानि आज के महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक का इलाक़ा. आज़ ही के दिन यानि 14 जुलाई को शाहजहां ने औरंगज़ेब को दक्खिन का सूबेदार नियुक्त किया. ये औरंगज़ेब की पहली नियुक्ति थी. औरंगज़ेब बीजापुर की तरफ़ रवाना हुआ (बीजापुर आज के कर्नाटक में पड़ता है). 25 हज़ार मुग़ल सैनिकों के साथ औरंगज़ेब ने बीजापुर को फ़तह कर लिया.
शतरंज का खेल-
आगे चलकर इन भाइयों की लड़ाई ने क्या मोड़ लिया. ये समझने के लिए हमें उस पूरे खेल को समझना होगा. जो दिल्ली के तख़्त को पाने के लिए खेला जा रहा था. इस शतरंज की मोहरें कहां-कहां बिछी थीं? कौन सा मोहरा कौन सी चाल चल रहा था? आइए जानते हैं.
जहांआरा और रोशनआरा
1656 में, शाहजहां इतना बूढ़ा हो चला था कि राजशाही चलाने के काबिल नहीं रहा. ये देखकर चारों भाइयों ने गद्दी पर अपना हक़ जताना शुरू कर दिया. काबुल और मुल्तान की सूबेदारी मिलने के बावजूद दारा शिकोह दिल्ली में ही रुका हुआ था. उसने सभी भाइयों के शाहजहां से मिलने पर रोक लगा दी. औरंगज़ेब और भाइयों के समर्थकों को दरबार से हटा दिया.
दारा शिकोह और औरंगज़ेब की जंग-
औरंगज़ेब पहले ही दक्खिन की सूबेदारी छिन जाने से ग़ुस्से में था. दारा शिकोह के दूसरे धर्मों से बढ़ती नज़दीकी की खबरों को सुनकर वो बौखला उठा. 1658 में औरंगज़ेब ने आगरा पर चढ़ाई करने की योजना बनाई. उसने अपने समर्थकों से कहा-
बचपन का बदला-
फटेहाल कपड़ों में दारा शिकोह को एक हाथी पर बैठाया गया और पूरे शहर में घुमाया गया. औरंगज़ेब बचपन की दुश्मनी का बदला ले रहा था.
मृत्यु-
औरंगज़ेब कुल 88 साल की उम्र तक ज़िंदा रहा. उसने अपने कई बच्चों की मौतें देखी. अंतिम समय में वो बहुत कमज़ोर और बीमार था. उसे अहसास हो चुका था की मुग़ल शासन का अंत नज़दीक है. जिसके बीज खुद उसने ही बोये थे. मरते वक्त उसके आख़री शब्द थे-
शहज़ादे का नाम, अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब आलमगीर. जिसे हम आज सिर्फ़ ‘औरंगज़ेब’ के नाम से जानते हैं.
दक्खिन की निज़ाम शाही-
1636 की बात है. हमारी स्टोरी के मुख्य किरदार का पिता, यानि शाहजहां अपने साम्राज्य को मजबूत करने की कोशिश में लगा था. दक्खिन की निज़ाम शाही अपना सर उठा रही थी. दक्खिन यानि आज के महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक का इलाक़ा. आज़ ही के दिन यानि 14 जुलाई को शाहजहां ने औरंगज़ेब को दक्खिन का सूबेदार नियुक्त किया. ये औरंगज़ेब की पहली नियुक्ति थी. औरंगज़ेब बीजापुर की तरफ़ रवाना हुआ (बीजापुर आज के कर्नाटक में पड़ता है). 25 हज़ार मुग़ल सैनिकों के साथ औरंगज़ेब ने बीजापुर को फ़तह कर लिया.
शतरंज का खेल-
आगे चलकर इन भाइयों की लड़ाई ने क्या मोड़ लिया. ये समझने के लिए हमें उस पूरे खेल को समझना होगा. जो दिल्ली के तख़्त को पाने के लिए खेला जा रहा था. इस शतरंज की मोहरें कहां-कहां बिछी थीं? कौन सा मोहरा कौन सी चाल चल रहा था? आइए जानते हैं.
जहांआरा और रोशनआरा
1656 में, शाहजहां इतना बूढ़ा हो चला था कि राजशाही चलाने के काबिल नहीं रहा. ये देखकर चारों भाइयों ने गद्दी पर अपना हक़ जताना शुरू कर दिया. काबुल और मुल्तान की सूबेदारी मिलने के बावजूद दारा शिकोह दिल्ली में ही रुका हुआ था. उसने सभी भाइयों के शाहजहां से मिलने पर रोक लगा दी. औरंगज़ेब और भाइयों के समर्थकों को दरबार से हटा दिया.
दारा शिकोह और औरंगज़ेब की जंग-
औरंगज़ेब पहले ही दक्खिन की सूबेदारी छिन जाने से ग़ुस्से में था. दारा शिकोह के दूसरे धर्मों से बढ़ती नज़दीकी की खबरों को सुनकर वो बौखला उठा. 1658 में औरंगज़ेब ने आगरा पर चढ़ाई करने की योजना बनाई. उसने अपने समर्थकों से कहा-
बचपन का बदला-
फटेहाल कपड़ों में दारा शिकोह को एक हाथी पर बैठाया गया और पूरे शहर में घुमाया गया. औरंगज़ेब बचपन की दुश्मनी का बदला ले रहा था.
मृत्यु-
औरंगज़ेब कुल 88 साल की उम्र तक ज़िंदा रहा. उसने अपने कई बच्चों की मौतें देखी. अंतिम समय में वो बहुत कमज़ोर और बीमार था. उसे अहसास हो चुका था की मुग़ल शासन का अंत नज़दीक है. जिसके बीज खुद उसने ही बोये थे. मरते वक्त उसके आख़री शब्द थे-
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