क्या सुप्रीम कोर्ट कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करेगी? या केंद्र सरकार के उस फैसले को बरकरार रखा जाएगा जिसमें कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर दिया गया था? सुप्रीम कोर्ट में आज अनुच्छेद 370 पर सुनवाई पूरी हो गई है. दो अगस्त से लगातार सुनवाई शुरू हुई थी. कुल 16 दिन तक इस मामले में कोर्ट में दोनों पक्षकारों ने जिरह की. यहां एक पक्ष सरकार का है, जो अनुच्छेद 370 के निष्क्रिय करने के फैसले का बचाव कर रही थी. और दूसरे पक्षकार में वो तमाम याचिकाकर्ता जो सरकार के इस फैसले की मुखालफत कर रहे थे. तो इन 16 दिनों की सुनवाई में क्या-क्या दलीलें दी गई इसी पर आज शो में चर्चा हुई है.
आर्टिकल 370 पर सुनवाई के दौरान किस पर भड़के CJI चंद्रचूड़?
किस वकील ने क्या तर्क दिए, सरकार के वकील ने कैसे बचाव किया?

27 अक्टूबर, 1949 को - अनुच्छेद 370 को भाग-21 के तहत संविधान में शामिल किया गया था. संविधान निर्माताओं का शुरूआती मत था कि ये एक अस्थायी प्रावधान ही होगा और जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान के अपनाए जाने तक ही प्रभावी रहेगा. मगर 1957 में राज्य की संविधान सभा भंग हो गई. और अस्तित्व में आई जम्मू-कश्मीर विधानसभा और विधान परिषद. लेकिन इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं आई कि अनुच्छेद 370 का क्या होगा? क्या ये स्थाई हो जाएगा? और आम जनमानस में ऐसा मान लिया गया कि अनुच्छेद 370 को बिना संविधान में संशोधन किए निष्क्रिय नहीं किया जा सकता. लेकिन 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर जम्मू-कश्मीर राज्य में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया. और इसके तहत मिलने वाला विशेष राज्य के दर्जे को भी खत्म कर दिया. साथ ही 9 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर री-ऑर्गेनाइज़ेशन एक्ट भी पारित कर दिया गया. जिसके तहत जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्ज खत्म करते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.
इसपर सियासी घमासान मचा. पर सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाया गया. एक साथ कई याचिकाएं दायर की गईं. 28 अगस्त 2019 को तब के CJI रंजन गोगोई ने इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया. लेकिन बीते 4 साल से ये मामला शांत था. इस साल 3 जुलाई, 2023 को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 2 अगस्त से लगातार सुनवाई करने का फैसला लिया. 2 अगस्त से आज तक इस केस में 16 दिन सुनवाई हुई. और कोर्ट की भाषा में आज हियरिंग कन्क्लूड हो गई.
इस मामले में कुल 23 याचिकाएं दायर हुई. कुल 18 वरिष्ठ वकीलों ने अलग-अलग याचिकाओं में दलीलें दीं और सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत कई सरकारी वसीलों ने जिरह की.
संविधान पीठ की बात करें तो CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने इस केस की सुनवाई की.
अब चलते हैं सुनवाई पर. 16 दिन की इस सुनवाई में पहले 10 दिन याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में अपनी-अपनी दलीलें दी. इसके बाद सरकार ने अपना पक्ष रखा. इस पूरी बहस में जिस आधार पर सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी उससे कुछ सवाल निहित थे. क्या हैं ये सवाल? और क्या दलीलें दी गई एक-एककर समझने की कोशिश करते हैं.
पहला सवाल- संविधान में अनुच्छेद 370 का प्रावधान अस्थाई था या फिर परमानेंट. यानी क्या इसे निष्प्रभावी किया जा सकता था या नहीं. यही सवाल इस केस की नींव थी.
सरकार के कदम के खिलाफ और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पूर्व स्पीकर, मोहम्मद अकबर लोन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार किसी भी हाल में इस अनुच्छेद को निष्प्रभावी नहीं कर सकती. इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 370 में तो स्पेसिफिकली 'टेम्परेरी' यानी अस्थाई शब्द का इस्तेमाल किया गया है.
इसी मसले पर जस्टिस एसके कॉल ने कहा कि उन्हें इसमें दो प्वाइंट नज़र आ रहे हैं. पहला तो ये कि क्या अनुच्छेद 370 ने संविधान में अपनी स्थाई जगह बना ली थी? लेकिन इस पर तो डिबेट चल रही है. दूसरी बात अगर ये स्थाई नहीं था तो इसके निष्क्रिय करने का तरीका था. प्रोसीज़र क्या था? और क्या उस प्रोसीज़र को फॉलो किया गया है या नहीं?
इस पर सिब्बल ने दलील दी कि संविधान का अनुच्छेद 367 से जोड़ते हुए दलील दी. अनुच्छेद 367 को the interpretation clause of the Constitution कहा जाता है यानी वो क्लॉज़ को संविधान की व्याख्या करता है.
सिब्बल ने कहा कि इस अनुच्छेद का इस्तेमाल करके अनुच्छेद 370 में बदलाव नहीं किया जा सकता. दरअसल, अनुच्छेद 367 में, राष्ट्रपति के आदेश में एक नया सब-क्लॉज़ (4)(D) शामिल किया गया, जिसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 370(3) में "संविधान सभा" शब्द को "राज्य की विधान सभा" पढ़ा जाए. कोर्ट सिब्बल के इस तर्क से सहमत नज़र आई. और यहीं से अगल सवाल उठा.
दूसरा सवाल- क्या जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की भूमिका भारत की संसद ले सकती है.
हमने आपको शुरुआत में ही बाताया था कि 1957 तक जम्मू-कश्मीर में संविधान सभा थी. जिसे संविधान में संशोधन करके विधानसभा बनाया गया. और अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने मूर्त रूप दिया था.
कपिल सिब्बल ने कहा कि देश की कोई भी इंस्टिट्यूशन जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को रिप्लेस नहीं कर सकता.
इसी पर जिरह करने आए एक और वरिष्ठ वकील वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने राज्य के लिए एक कानूनी अधिकार के रूप में बनाया था. जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ही अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी या बदलने के लिए उपयुक्त अथॉरिटी थी. और ये अधिकार सिर्फ उसी के पास है.
इस पर जब सरकार बाद में अपना पक्ष रखा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि
"जब विधान सभा नहीं थी तब संविधान सभा शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. जो कि समानार्थी थे. क्योंकि जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में दोनों ही एक जैसी भूमिका में है. लेकिन जब संविधान सभा ही नहीं है तो उसकी रिकमेंडेंशन, उसके प्रोविज़न्स कैसे हो सकते हैं. वो तो पहले से ही समाप्त हो चुके हैं."
इस पर चीफ जस्टिस ने असहमति जाहिर करते हुए कहा कि जो सरकार ने किया उसे भी सही नहीं ठहराया जा सकता. संविधान सभा को विधान सभा के बराबर करने के लिए अनुच्छेद 367 में संशोधन करके. क्या आप अनुच्छेद 370(3) का सहारा लिए बिना अनुच्छेद 370 में संशोधन नहीं कर रहे हैं?
तीसरा सवाल- क्या जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में तोड़ने का फैसला संविधान के तहत लिया गया या नहीं?
ये सवाल जुड़ा था The Jammu and Kashmir Reorganisation Bill, 2019 से. इसी बिल को कानून बनाकर सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांट दिया था. सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए थे.
कपिल सिब्बल ने कहा कि देश के संविधान के अनुच्छेद-3 के मुताबिक किसी भी पूर्ण राज्य को दो केंद्र शासित राज्यो में तोड़ा ही नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि ये तो रिप्रजेंटेटिव फॉर्म ऑफ गर्वनमेंट के खिलाफ है. जबकि सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने इस पर दलील देते हुए कहा कि Jammu and Kashmir Reorganisation Bill के जरिए, सीमाओं से छेड़छाड़ की गई है. जबिक इसके लिए तो विधानसभा की अनुमति की जरूरत होती है. लेकिन विधानसभा उस समय भंग थी. तो सहमति की बात ही नहीं उठती. यानी जम्मू-कश्मीर को दो भागों में तोड़ना संवैधानिक था ही नहीं. एक और वरिष्ठ वकील शेखर नाफड़े ने तो इसे संविधान के मूल ढांचे का उल्लघंन बता दिया.
चौथा सवाल- क्या अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के असल वजह राजनीतिक थी?
सुप्रीम कोर्ट में इस सवाल पर भी चर्चा हुई. वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि ये राष्ट्रपति द्वारा आदेश जारी किया गया. कहा गया कि राष्ट्रहित में आदेश जारी किया गया है. लेकिन इसका असल मकसद तो बीजेपी- का अपना चुनावी वादा पूरा करना था. बीजेपी लंबे समय से अपने मेनिफेस्टो में 370 को हटाने की बात कहती आ रही थी.
कपिल सिब्बल ने कहा कि ये पूरा राजनीतिक एजेंडा था. सिब्बल ने कोर्ट में जम्मू-कश्मीर का पूरा घटनाक्रम बताया. जब बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाई. फिर समर्थन वापस लेकर सरकार गिराई. जब महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के हाथ खींचने के बाद सरकार बनाने का दावा पेश किया था तो राज्यपाल ने उनका फैक्स रिसीव नहीं किया. सिब्बल पूरी कहानी बताते हुए इसे राजनीतिक एजेंडा साबित करने की कोशिश की.
पंचवा सवाल- क्या अनुच्छेद 370 को राष्ट्रपति के आदेश भर से निष्प्रभावी किया जा सकता है.
ये इस केस का सबसे महत्वपूर्ण सवाल इसलिए है क्योंकि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी राष्ट्रपति के एक आदेश पर ही किया गया था. कोई कानून नहीं बताया गया. संविधान में सीधे तौर पर इसके लिए कोई संशोधन भी नहीं किया गया.
कोर्ट में सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए वकीलों सबसे बड़ा सवाल यही उठाया. वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि कुछ भी कर लेने के लिए कार्यकारी शक्ति का सहारा नहीं लिया जा सकता. राष्ट्रपति को ऐसा करने के लिए अधिकृत नहीं किया जा सकता. अनुच्छेद 356 शक्ति की आड़ में अनुच्छेद 3 द्वारा प्रदान की जाने वाली हर अधिकार को ख़त्म नहीं किया जा सकता. ऐसा करना constitutional safeguards का मजाक उड़ाना कहलाएगा. 1975 में क्या हुआ था, हम देख चुके है.
पक्ष और विपक्ष की दलीलों से इतर भी कुछ टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट में की गई जिन गौर करना जरूरी है. क्योंकि ये टिप्पणियां खुद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कीं है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में धारा 35ए ने देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों के मूल अधिकारों को छीन लिया था. कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 35ए को 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ा गया था, इसने लोगों को कम से कम तीन मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि 35ए ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 16(1) के तहत सार्वजनिक नौकरियों में देश के अन्य राज्यों के लोगों से अवसर की समानता का अधिकार छीन लिया. अनुच्छेद 19(1)(एफ) और 31 के तहत संपत्तियों के अधिग्रहण का अधिकार छीन लिया. इसके अलावा 35ए ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार भी अन्य हिस्सों के लोगों से छीन लिया.
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि अनुच्छेद 35ए ने न केवल जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों और अन्य निवासियों के बीच, बल्कि देश के अन्य नागरिकों के बीच भी एक अंतर पैदा कर दिया था. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 35ए एक गलती थी और साल 2019 में इस अनुच्छेद को संविधान से हटाकर देश की वर्तमान सरकार ने गलती सुधारने की कोशिश की है.
इसके अलावा एक और ऐसा वाकया हुआ जिसकी खूब चर्चा हुई. सुनवाई के दौरान 4 सितंबर को कोर्ट में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का जिक्र हुआ. केंद्र के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने विधानसभा में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए थे. हमने आपको बताया भी था कि अकबर लोन इस मामले में एक याचिकाकर्ता हैं. जिनका पक्ष कपिल सिब्बल रख रहे थे. केंद्र के आरोप पर कोर्ट ने कहा कि मोहम्मद अकबर लोन को इसके लिए माफी मांगनी होगी. कोर्ट ने आदेश दिया कि इसके लिए अकबर लोन बाकायदा हलफनामा दाखिल करें.
अनुच्छेद 370 पर हुई सुनवाई का पूरा तियां-पांचा हमने आपको समझाया. इस केस का फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ सुनाएगी. जब फैसला आएगा, तब भी हम विस्तार से उस पर चर्चा करेंगे.