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अभी तक तो सोनम गुप्ता बेवफा नहीं है

पहली बार किसी ने दस रूपए के नोट पर लिखा होगा, 'सोनम गुप्ता बेवफा है'. तब क्या घटित हुआ होगा?

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फोटो - thelallantop

anil-yadavअनिल यादव. ये जनाब पेशे से पत्रकार हैं. जब ढर्रे वाली पत्रकारिता से जी ऊब गया, तो फ्रीलांसिंग करने लगे. अभी वही कर रहे हैं. इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि इनके रीडर्स ने इन्हें बेशुमार प्यार दिया है. इनके हिंदी ट्रैवलॉग 'वह भी कोई देस है महराज' के लिए. गजब की किताब है.

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घुमक्कड़ी के भयंकर शौकीन हैं. इतने कि घुमक्कड़ी के मामले में राहुल सांकृत्यायन के बाद आप सिर्फ इन्हीं से ईष्या कर सकते हैं. अनिल ने सोनम गुप्ता के बारे में कुछ लिखा है. उन्होंने बताया कि अभी तक तो सोनम बेवफा है ही नहीं. उन्होंने फेसबुक पर लिखा था और हम उनकी इजाजत लेकर उठा लाए आपके लिए. बांचिए.


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पहली बार किसी ने दस रूपए के नोट पर लिखा होगा, 'सोनम गुप्ता बेवफा है'. तब क्या घटित हुआ होगा? क्या नियति से आशिक, मिजाज से आविष्कारक कोई लड़का ठुकराया गया होगा. उसने डंक से तिलमिलाते हुए सोनम को बदनाम करने की गरज से उसे सरेबाजार ला दिया होगा. या वह सिर्फ फरियाद करना चाहता था, किसी और से कर लेना, लेकिन इस सोनम से दिल न लगाना.

क्या पता सोनम को कुछ खबर ही न हो. वह सड़क की पटरी पर मुंह फाड़कर गोलगप्पे खा रही हो. जिंदगी में तीसरी बार लिपिस्टिक लगाकर होठों को किसी गाने में सुने होंठों जैसा महसूस रही हो. अपनी भाभी के सैंडिलों में खुद को आजमा रही हो और तभी वह लड़के को ऐसी स्वप्न-सुंदरी लगी हो, जिसे कभी पाया नहीं जा सकता. लड़के ने चाहा हो कि उसे अभी के अभी दिल टूटने का दर्द हो. वह एक क्षण में वो जी ले, जिसे जीने में प्रेमियों को पूरी जिंदगी लगती है. उसने किसी को तड़पकर बेवफा कहना चाहा हो और नतीजे में ऐसा हो गया हो. यह भी तो हो सकता है कि किसी चिबिल्ली लड़की ने ही अपनी सहेली सोनम से कट्टी करने के बाद उसे नोट पर उतारकर राहत पाई हो.

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जो भी हुआ हो, लेकिन वह वैसा ही आविष्कारक था या थी, जैसा समुद्र से आती हवा को अपने सीने पर आंख बंद करके महसूस करने वाला वो मछुआरा या मुसाफिर रहा होगा, जिसे पहली बार नाव में पाल लगाने का इल्हाम हुआ होगा. या वह आदमी जिसने इस खतरनाक और असुरक्षित दुनिया में बिल्कुल पहली बार अभय मुद्रा में कहा होगा, 'ईश्वर सर्वशक्तिमान है'. उसने नोट के हजारों आंखों से होते हुए अनजान ठिकानों पर जाने में छिपी परिस्थितिजन्य ताकत को शायद महसूस किया होगा, वो भी ऐसे वक्त में जब हर नोट को बड़े गौर से देखा जा रहा है. उसके बारे में आपका नजरिया आपको देशभक्त, कालाधन-प्रेमी या स्यूडोसेकुलर, कुछ भी बना सकता है.

नोटबंदी के चौकन्ने समय में सोनम गुप्ता सारी दुनिया में पहुंच गई. उसके साथ वही हुआ, जो सूक्तियों के साथ हुआ करता है. वे पढ़ने-सुननेवाले की स्मृति, पूर्वाग्रहों, वंचनाओं और कुंठाओं के साथ घुलमिलकर बिल्कुल अलग कल्पनातीत अर्थ पा जाती हैं. यह रहस्यमय प्रक्रिया है, जिसके अंत में किसी स्कूल या रेलवे स्टेशन की दीवार पर लिखा 'अच्छे नागरिक बनिए' जातिवाद के जहर के असर में झूमते समाज में जरा सा स्वाराघात बदल जाने से प्रेरित करने के बजाय कहीं और निशाना लगाने लगता है.

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सबसे लद्धड़ प्रतिक्रियाएं सरसों के तेल के झार की तासीर वाली नारीवादियों की तरफ से आईं, जिन्होंने कहा, 'सोनू सिंह या संदीप रस्तोगी क्यों नहीं'? उन्हें सोनम गुप्ता नाम की लड़कियों की हिफाजत की चिंता सताने लगी, जिन्हें सिर्फ इसी एक कारण से छेड़ा जाने वाला था और यह भी कि हमेशा औरत ही बेवफा क्यों कही जाए. हमेशा घायल होने को आतुर इस ब्रांड के नारीवाद का अंजाम चाहे जो हो, 'सपोज दैट' में भी मर्द से बराबरी चाहिए. जूते के हिसाब से पैर काटने की जिद के कारण वे अपनी सोनम को जरा भी नहीं पहचान पाईं.

इन दिनों देश में पाले बहुत साफ खिंच चुके हैं और एक बड़े गृहयुद्ध से पहले की छोटी झड़पों से आवेशित गर्जना और हुंकारें सुनाई दे रही हैं. एक तरफ RSS की उग्र मुसलमान-विरोधी विचारधारा और प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिपूजा की केमिस्ट्री से पैदा हुए भक्त हैं, जो बैंकों के सामने लगी बदहवास कतारों में से छिटककर गिरने वालों की बेजान देह समेत हर चीज को देशभक्ति और देशद्रोह के पलड़ों में तौल रहे हैं.

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दूसरी तरफ मामूली लोग हैं, जिनके पास कुछ ऐसा भुरभुरा और मार्मिक है, जिसे बचाने के लिए वे उलझना कल पर टाल देते हैं. भक्त सरकार के कामकाज को आंकने, फैसला लेने का अधिकार छीनकर अपना चश्मा पहना देना चाहते हैं. जो इनकार करे, गद्दार हो जाता है. हर नुक्कड़ पर दिखाई दे रहा है, अक्सर दोनों पक्षों के बीच एक तनावग्रस्त, असहनीय चुप्पी छा जाती है. तभी सोनम गुप्ता प्रकट होती है, जो लगभग मर चुकी बातचीत को एक साझा हंसी से जिला देती है. सोनम गुप्ता उस युद्ध को टाल रही है. उसकी वेवफाई से अनायास भड़कने वाली जो हंसी है, उसमें कोई रजामंदी और खुशी तो कतई नहीं है. सब अपने-अपने कारणों से हंसते हैं.


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