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500 बच्चों की सेना बनाकर पूरा चिटगांव आज़ाद करवा लिया था इस आदमी ने

ज‍िन्हें भयानक टॉर्चर करके मारा था अंग्रेजों ने.

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2012 के अपने कन्वोकेशन में कोलकाता यूनिवर्सिटी ने दो लड़कियों को मरणोपरांत डिग्री दी थी. ये लड़कियां थीं बीना दास और प्रीतिलता वादेदार, जिनका ग्रेजुएशन 1930 में ही पूरा हो गया था. लेकिन इनकी डिग्री मिलने में 80 साल से ज़्यादा का समय लग गया था. इसकी वजह थी कि ये दोनों मास्टर सूर्य सेन की साथी थीं.
22 मार्च 1894 को पैदा हुए मास्टर सूर्य सेन चिटगांव विद्रोह के मास्टर माइंड थे. सूर्यसेन ने अपने कॉलेज के बच्चों और दूसरे क्रांतिकारियों के साथ एक सेना बनाई और 18 अप्रैल, 1930 को ब्रिटिश शस्त्रागार को लूट लिया. सूर्य ने कुछ दिनों तक चिटगांव को सिर्फ इन्हीं बच्चों के साथ मिलकर आज़ाद बनाए रखा. उनका ये विद्रोह अपने दुस्साह और प्लानिंग के कारण हिंदुस्तान के इतिहास में याद रखा जाता है.
प्रीतिलता वाद्देदार
प्रीतिलता वाद्देदार

सिर्फ हिंसा नहीं थी क्रांति

आज की तारीख में क्रांतिकारियों के बारे में कई लोग भ्रम पाले हुए हैं. उन्हें लगता है कि सभी क्रांतिकारी जेब में पिस्टल और झोले में बम लेकर चलते थे. जहां अंग्रेज़ दिखे, वहीं गोली चला दी. ये सबसे बड़ा भ्रम है. सशस्त्र क्रांति से जुड़े ज़्यादातर क्रांतिकारी दर्शन और राजनीति शास्त्र के अच्छे जानकार थे. साथ ही, इनका ज़्यादातर समय आंदोलनों, प्रदर्शनों में बीतता था. सूर्य सेन कांग्रेस से जुड़े रहे. अनुशीलन समिति की स्थापना की.

बेहतरीन स्ट्रैटजिस्ट

सूर्य सेन का विद्रोह प्लानिंग के स्तर पर बहुत अच्छा था. सेन ने 500 बच्चों की फौज बनाई. कुछ लोगों को ब्रिटिश अफसर बनाकर बैरकों में भेजा. इनके एक साथी लोकनाथ बल को ब्रिटिश सेना ने नया आया अफसर समझकर सलामी भी दी. इन लोगों ने शस्त्रागार पर कब्ज़ा किया और कम्युनिकेशन की सारी चीज़ें खत्म कर दीं. टेलीग्राम के तार, रेलवे लाइन, सब कुछ रोक दिया. सेन की मिलिट्री स्किल्स का एक और नमूना है कि एक तरफ सेना और एक तरफ कॉलेज के लड़के थे. फिर भी 80 सैनिक मारे गए, जबकि कुल 12 क्रांतिकारी शहीद हुए.
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मुठभेड़ के बाद मारे गए क्रांतिकारी

फरारी और धोखा

चिटगांव को आज़ाद कराने से बड़ी चुनौती से उसे आजाद बनाए रखना, इसलिए सूर्य सेन अपने साथियों के साथ भाग निकले. एक-एक करके कई लोग पकड़े गए या मारे गए. जिन प्रीति लता को कोलकाता यूनिवर्सिटी ने 80 साल बाद डिग्री दी, उन्होंने भी साइनाइड खाकर जान दे दी. सेन 3 साल तक बचते रहे. फिर 1933 में उनके दोस्त नेत्र सेन ने सूर्य सेन को पकड़वा दिया. इसके अगले ही दिन किसी क्रांतिकारी ने नेत्र सेन का गला उनकी पत्नी के सामने काट दिया. पुलिस नेत्र सेन की पत्नी से उस आदमी का नाम पूछती रही, मगर उन्होंने कभी वो नाम नहीं बताया.

बुरी तरह टॉर्चर

पकड़े जाने के बाद सूर्य सेन को बुरी तरह से टॉर्चर किया गया. हथौड़े से उनके सारे दांत तोड़ दिेए गए. नाखून निकाल दिए गए. सारे जोड़ तोड़ दिए गए. बेहोशी की हालत में घसीटते हुए ले जाकर फांसी पर लटका दिया गया. इसके बाद लाश को एक बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया.
इससे कुछ ही समय पहले सूर्य सेन ने एक दोस्त को खत में लिखा था:
'मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है... मैं खुश हूं... मैंने तुम लोगों के लिए पीछे क्या छोड़ा... एक सपना. आज़ादी का सपना... उम्मीद है कि 18 अप्रैल, 1930 की तारीख तुम लोग कभी नहीं भूलोगे.'



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