
असम में एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी हो गई है, जिसमें 19 लाख 6 हजार 657 लोगों का नाम शामिल नहीं है.
अब जिनका नाम इस लिस्ट में नहीं है, वो तो डर रहे हैं कि कहीं उन्हें गिरफ्तार न होना पड़े. या फिर कहीं उन्हें भारत से भगा न दिया जाए. इनमें से अधिकतर वो लोग हैं, जो बांग्लादेश से भारत में आए हैं. लेकिन इस एनआरसी की कहानी की शुरुआत कई साल पुरानी है. और इस कहानी को समझने से पहले ये समझना ज़रूरी है कि एनआरसी आखिर है क्या.
क्या है नैशनल रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटिजन्स (NRC)
भारत में आजादी के बाद जो पहली जनगणना हुई थी, वो 1951 में हुई थी. इस जनगणना के आंकड़ों को एक साथ इकट्ठा करके आगे की योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाना था. इसके लिए नैशनल रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटिजन्स (NRC) बनाया गया, जिसमें सारे आंकड़े दर्ज किए गए. योजना पूरे देश के लिए थी, लेकिन असम इकलौता ऐसा राज्य था, जिसने NRC को मान्यता दी और अपने प्रदेश में लागू किया. छात्र संगठन आसू ने असम आंदोलन के दौरान ही 18 जनवरी 1980 को केंद्र सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा और कहा कि एनआरसी को फिर से अपडेट किए जाने की ज़रूरत है. हालांकि आंदोलन हिंसक हुआ, जिसके बाद केंद्र सरकार ने असम में किसी तरह से हिंसा शांत करने की कोशिश शुरू की. 1985 में असम में राजीव गांधी के साथ जो समझौता लागू हुआ था, 1999 में केंद्र की वाजपेयी सरकार ने उसका रिव्यू शुरू किया. बांग्लादेशियों को भारत से बाहर करने का मुद्दा हमेशा से बीजेपी के एजेंडे में था, लिहाजा 17 नवंबर 1999 को तय किया गया कि असम समझौते के तहत NRC को अपडेट करना चाहिए. इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से 20 लाख रुपये का फंड रखा गया और पांच लाख रुपये जारी भी कर दिए गए. आखिर में 2004 में एनडीए की सरकार चली गई और यूपीए की सरकार आई.

पूर्व प्रधानमंंत्री मनमोहन सिंह और उनसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने भी NRC को अपडेट करने की पहल की थी, लेकिन वो ठंडे बस्ते में चली गई.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, 3 साल में 40 सुनवाइयां हुईं
5 मई 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फैसला लिया कि एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए. इसके लिए असम के बारपेटा और चायगांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया. असम के कुछ संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया और वहां हिंसा हो गई. इसके बाद राज्य की गोगोई सरकार ने मंत्रियों के एक समूह का गठन किया. उसके जिम्मे था कि वो असम के कई संगठनों से बातचीत करके NRC को अपडेट करने में मदद करें. हालांकि इसका कोई फायदा नहीं हुआ और प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई. तब बीजेपी नेता सर्वानंद सोनोवाल ने 2013 में बांग्लादेश के घुसपैठ के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया. इसके बाद कोर्ट ने एनआरसी, 1951 को अपडेट करने का आदेश दिया था. इसके तहत 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत में आने वाले लोगों को स्थानीय नागरिक माना जाना है. उसके बाद असम में पहुंचने वालों को बांग्लादेश वापस भेजने का प्रावधान है.

NRC को अपडेट करने का काम मई 2015 से शुरू हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी के अपडेशन का काम शुरू हुआ. प्रक्रिया की शुरुआत मई 2015 में हुई. इस अपडेशन के लिए साल 1951 की जनगणना में शामिल अल्पसंख्यकों को तो राज्य का नागरिक मान लिया गया, 1951 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम में आने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के पास वैध कागजात नहीं थे. एनआरसी को अपडेट करने के दौरान पंचायतों की ओर से जारी नागरिकता प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं दी जा रही थी. इसके बाद मामला असम हाईकोर्ट में पहुंच गया. हाई कोर्ट ने लगभग 26 लाख लोगों के पहचान के दस्तावेज अवैध करार दे दिए, जिनकी जांच पंचायत अधिकारियों और राज्य सरकार के सर्किल अफसरों ने की थी. इसके बाद मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट ने सारे मामलों को एक साथ जोड़ दिया और अपनी निगरानी में एनआरसी की लिस्ट अपडेट करने का आदेश दिया. 2013 से 2017 तक के चार साल के दौरान असम के नागरिकों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कुल 40 सुनवाइयां हुईं, जिसके बाद नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 31 दिसंबर 2017 तक वो एनआरसी को अपडेट कर देंगे.

31 दिसंबर, 2017 की रात को NRC की तरफ से पहला ड्राफ्ट जारी किया गया था.
साल के आखिरी दिन आया पहला ड्राफ्ट
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 31 दिसंबर 2017 को नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट जारी कर दिया. इस ड्राफ्ट में असम के कुल 3.29 करोड़ लोगों में से 1.9 करोड़ लोगों को जगह दी गई और उन्हें कानूनी तौर पर भारत का नागरिक माना लिया गया. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया शैलेष ने ड्राफ्ट को जारी करते हुए कहा-
'यह पहला ड्राफ्ट है. इसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम हैं, जिनका वेरिफिकेशन हो गया है. अब भी 1.39 करोड़ लोगों के वेरिफिकेशन होने बाकी हैं. जैसे ही उनका भी वेरिफिकेशन हो जाएगा, हम दूसरा और फिर तीसरा ड्राफ्ट भी लाएंगे. नामों का वेरिफिकेशन एक लंबी प्रक्रिया है. ऐसे में हो सकता है कि कई नाम छूट गए हों. ऐसे लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है.'अपडेशन के बाद 30 जुलाई, 2018 को एनआरसी का दूसरा ड्राफ्ट जारी हुआ. एनआरसी में शामिल होने के लिए असम के 3.29 करोड़ लोगों ने अप्लाई किया था. इनमें से 2.89 करोड़ लोगों को तो भारत का नागरिक माना गया, लेकिन करीब 40 लाख लोग इस लिस्ट से बाहर थे. इसके बाद 26 जून, 2019 को एनआरसी का एक और ड्राफ्ट आया. इस ड्राफ्ट में 1 लाख 2 हजार 462 लोगों के नाम थे, जिन्हें 30 जुलाई, 2018 को जारी हुए एनआरसी के ड्राफ्ट से बाहर कर दिया गया. ऐसे में एनआरसी से बाहर होने वालों की संख्या 41 लाख से भी ज्यादा पहुंच गई. 26 जून, 2019 को कुल 41 लाख 10 हजार 169 लोग एनआरसी की लिस्ट से बाहर हो गए.

जिनके नाम एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में नहीं थे, उन्होंने फिर से अप्लाई किया. करीब 22 लाख लोगों के नाम एनआरसी की फाइनल लिस्ट में जोड़ लिया गया, लेकिन 19 लाख से ज्यादा लोगों को इस लिस्ट से बाहर कर दिया गया.
एक महीने देर से जारी हुई एनआरसी की फाइनल लिस्ट
सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 31 जुलाई, 2019 को एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी करनी थी. सरकार ने कोर्ट से वक्त मांगा और कोर्ट ने एक महीने का वक्त दे दिया. फिर 31 अगस्त, 2019 को सरकार ने असम में एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी कर दी, जिसमें 19 लाख से ज्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया. अब इन लोगों के पास अपील करने का अधिकार है. जब तक ऐसे लोगों को कोर्ट अंतिम रूप से विदेशी करार नहीं देता, इन्हें न तो गिरफ्तार किया जाएगा और न ही देश से बाहर किया जाएगा.
NRC के बारे में सभी वो बातें जो हमें समझ लेनी चाहिए | दी लल्लनटॉप शो | Episode 13