किसी लड़की के लिए फुटबॉल खेलना कित्ता अच्छा करियर है? इससे अच्छा तो किसी कोचिंग सेंटर में साइंटिस्ट तैयार करने लग जाओ. कित्ते लोग हैं जो पुरुष टीम के 11 खिलाड़ियों का नाम गिना दें, महिला टीम के तो एक खिलाड़ी का भी न बता पाएं! फिर भी कोई लड़की फुटबॉल का करियर ऑप्शन टिक करे और यूरोप की धुरंधर टीमों में खेले तो बात कहने-सुनने की हो जाती है.
ये लड़की है 23 साल की अदिति चौहान. 
अदिति दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद इंग्लैंड गईं तो थीं सिर्फ पढ़ाई करने - लॉबोरो यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में एमएससी. पर कभी-कभी बोरियत दूर करने के लिए फुटबॉल मैचों को देखने पहुंच जाती. ऐसे ही एक दिन अदिति की दोस्त ने उन्हें ट्रायल देने को कह दिया. अदिति कहती हैं,
'मैं वीकेंड्स पर कभी-कभार ट्रायल दे देती थी. ऐसे ही एक ट्रायल के बाद मेरा सेलेक्शन हो गया.' सेलेक्शन हुआ वेस्ट हैम यूनाइटेड की लेडीज़ टीम में. वेस्ट हैम ने हिंदी में ट्वीट कर ये खबर सुनाई. और वो यूरोप में खेलने वाली पहली भारतीय महिला फुटबॉलर बन गईं. अपने पहले ही घरेलू मैच में शानदार खेल दिखाते हुए अदिति ने विपक्षी क्रिस्टल पैलेस को एक भी गोल नहीं करने दिया, वेस्ट हैम ने मैच 3-0 से जीत लिया.

मूल रूप से यूपी की रहने वाली अदिति का परिवार जब दिल्ली शिफ्ट हुआ तो अदिति 9 साल की थीं. स्कूल के दिनों में बास्केटबॉल और कराटे की अच्छी प्लेयर रहीं. फ़ौजी पापा चाहते थे कि बिटिया टेनिस खेले पर दिल बसता था फुटबॉल में. दिल्ली आने के बाद अदिति ने फुटबॉल खेलना शुरू किया और दिल्ली यूनिवर्सिटी टीम से इंडिया की जूनियर टीमों से होते हुए टीम इंडिया की गोलकीपर बन गईं. पिछले चार सालों से भारत की सीनियर टीम के साथ खेल रहीं अदिति ने इसी साल टीम इंडिया जर्सी में साउथ एशियन गेम्स जीता है.

शुरुआत में अदिति वेस्ट हैम की दूसरी गोलकीपर थीं. पर पहले ही साल में इंग्लिश फुटबॉल का वीमेन्स एशियन प्लेयर ऑफ द इयर खिताब अपने नाम कर लिया. इस अवॉर्ड के लिए अदिति के साथ दौड़ में भारतीय मूल की 3 ब्रिटिश खिलाड़ी भी थीं. फुलहम लेडीज टीम की
तन्वी हंस, मोनिका शर्मा और लंदन बरी फुटबॉल क्लब की कप्तान
सबा महमूद. अदिति ने इन तीनों पुरानी खिलाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए ये अवॉर्ड अपने नाम किया.

अगस्त 2015 में अदिति ने इंग्लिश फुटबॉल की दुनिया में कदम जमाना शुरू ही किया था कि जनवरी में अदिति का स्टूडेंट वीज़ा समाप्त हो गया और फिर घर वापसी के साथ ही टॉप क्वॉलिटी फुटबॉल से विदाई तय थी. अदिति का क्लब इंग्लिश फुटबॉल में तीसरे स्तर पर खेलता है. हार-जीत के हिसाब से टीमें पहली, दूसरी, तीसरी डिवीजन में ऊपर नीचे होती रहती हैं. कुल 5 डिवीजन हैं. कानून कहता है कि स्टूडेंट वीज़ा पर तीसरे डिवीज़न की टीम अपना खिलाड़ी नहीं खिला सकतीं.

अब चूंकि हमारे स्कूल-कॉलेज पढ़ाते ही नहीं बल्कि हमारे मित्र भी हो जाते हैं. लॉबोरो यूनिवर्सिटी ने ऐन टैम पर अदिति का साथ दिया. एक साल के लिए वीज़ा तो बढ़ाया ही, पार्ट टाइम काम की भी व्यवस्था की. फिलहाल अदिति दिन में काम करती हैं, शाम को ट्रेनिंग करती हैं और वीकेन्ड पर फुटबॉल खेलती हैं. अदिति ने अपने दूसरे सीज़न की शुरूआत भी धमाकेदार ढंग से की. वेस्ट हैम और स्विंडन टाउन का मैच 2-2 से बराबरी पर छूटा. मामला गया पेनल्टी शूट-आउट में और अदिति तीन पेनल्टी बचाकर मैच जिता ले गईं.

अदिति अपने घर-दोस्तों को बहुत मिस करती हैं. तीन साल से भी ज़्यादा हो गया अपने भाई से मिल भी नहीं पाई हैं. कहती हैं,
‘कई बार लगता है, सब कुछ छोड़कर घर वापिस चली जाऊं लेकिन फिर मैं खुद को समझाती हूं कि मैं एक मकसद लिए यहां हूं. अब कई लड़कियां फुटबॉल को एक कैरियर ऑप्शन के तौर पर लेने लगी हैं और मुझे खुशी है इस बदलाव में मेरी भी भूमिका है.’ 
अभी भी अदिति के लिए जीवन सैर-सपाटा नहीं है. एक बार लॉबोरो यूनिवर्सिटी ने व्यवस्था तो कर दी उसके बाद क्या, ये चिंता अभी भी टिकी हुई है. और फिर लंदन में रहना. एक हाफ गिलास जूस में ही हमारी रुपयों वाली आधी सैलरी चली जाए. लेकिन फिर भी वहां टैलेंट को परखने-तराशने की मुकम्मल व्यवस्था तो है. स्पोर्ट्स की डिग्री और यूरोपियन फुटबॉल का अनुभव, भारतीय फुटबॉल के अदिति को ज़ोरदार नगीना बना देगा. मीडिया के बारे में भी अदिति का मानना है कि अगर मीडिया वाले चाहें तो भारतीय फुटबॉल में काफी सुधार आ सकता है. शिलॉन्ग में खचाखच भरे स्टेडियम में अदिति ने नेपाल के खिलाफ साउथ एशियन गेम्स में शानदार खेल दिखाया. लेकिन आप तक ख़बर ही न पहुंची. ज़िम्मेदारी हमारी और आपकी भी बनती है.
वैसे भारत में फुटबॉल की दुर्गति है. पिच ऐसी होती है कि खिलाड़ी गिर जाए तो हाड़ टूट जाए. लेकिन पुरुषों के कई टूर्नामेंट होते हैं - छोटे-छोटे भी और बड़े-बड़े भी. इंडियन सुपर लीग के आने से पैसा भी आया है. महिला टीम के लिए एक ढंग का टूर्नामेंट तक नहीं होता. इसके बावजूद महिला टीम फीफा रैंकिंग में पुरुष टीम से काफी आगे है. 177 देशों की रैंकिंग में महिला टीम की रैंक 57वीं हैं और पुरुष टीम 209 देशों की रैंक में 148 पायदान पर है. इसका एक कारण ये कह सकते हैं कि पुरुष फुटबॉल में ज्यादा प्रतिस्पर्धा है. लेकिन अदिति जैसी अकेली कोशिशों के योगदान को आप नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते.