चलती हैं स्पोर्ट्स फिल्में
मैरीकॉम और मिल्खा सिंह के बाद ये वो फिल्म है, जो हाल में आई एक स्पोर्ट्स बॉयोपिक है. पर ये उनसे बहुत अलग है क्योंकि बाकी सारी फिल्में सक्सेस स्टोरी थीं. पर ये एक ऐसे बच्चे की कहानी है, जिसने सिस्टम की वजह से हार मान ली. एक ऐसे बच्चे की कहानी, जो 5 साल की उम्र में लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम लिखा लेता है. पर हम उसे ऐसी सुख-सुविधाएं नहीं दे पाते और साथ ही हम उसके दौड़ने तक पर बैन लगा देते हैं. ये फिल्म उन सारे पहलुओं को उजागर करती है. ये अपने आप में पहली फिल्म होगी, जो अचीवर के बारे में नहीं है, बल्कि अपनी जिंदगी के शुरुआती दौर में एक स्पोर्ट्स पर्सन क्या-क्या स्ट्रगल करता है, उसके बारे में है.परफेक्ट फिल्म है, इसमें कुछ ऐड करने की गुंजाइश ही नहीं
फिल्म की स्क्रिप्ट एकदम सटीक और सधी हुई थी, तो एक एक्टर के तौर पर इसमें कुछ भी ऐड करने की गुंजाइश नहीं थी. बुधिया और बिरंची डायरेक्टर सौमेंद्र पधी के लिए पर्सनल आइकन जैसे हैं इसलिए स्क्रिप्ट लिखने में उन्होंने बहुत मेहनत की थी.स्कूल से ही खेलें बच्चे, तो इंडिया स्पोर्ट्स में आगे बढ़ेगा
इंडिया में खेलों का स्ट्रक्चर सुधारने के लिए जरूरी है कि गांवों और कस्बों से टैलंट स्पॉट करके उनको नर्चर करने और आगे बढ़ाने की जरूरत है. बल्कि स्कूल लेवल पर ही ये सारे काम कर लिए जाने चाहिए. उनको एक दिशा देने की जरूरत होती है. हमें भी चीन और अमेरिका की तरह से ये काम करना होगा.अनुराग कश्यप एक्सपीरियंस एक्टर की बहुत रिस्पेक्ट करते हैं
अनुराग कश्यप ने मेरे लिए जो स्क्रिप्ट लिखी हैं सत्या, शूल और कौन जैसी फिल्मोंं की, उनमें भी मुझे वो बहुत सारी सहूलियत देते थे कि मैं कई चीजें खुद से ही डिसाइड करूं. क्योंकि जो एक्टर एक्सपीरियंस रखते हैं बॉलीवुड में, उनके लिए अनुराग के दिल में बहुत रिस्पेक्ट है. और वो उन पर भरोसा भी रखते हैं. वहां तो लुक और डायलॉग तक डिसाइड करने में मुझे कई तरह की छूट थी. सरदार खान की मौत वाले सीन को बढ़ाने का आइडिया भी मेरा ही था. हां ये है कि वो डायरेक्टर है. और आखिरी फैसला उसी का होता है.भारत ही नहीं, अमेरिका-यूरोप में भी LGBTQ को लेकर पिछड़ी है सोच
मुझे बहुत से लोग ऐसे मिले, जिन्होंने कहा कि अलीगढ़ देखने से पहले वो भी ऐसा ही सोचते थे. पर फिल्म देखने के बाद उनकी सोच में बदलाव आया है. वैसे ऐसा नहीं है कि LGBTQ लोगों के लिए हमारे ही देश में ऐसी सोच हो. अमेरिकी और कई पश्चिमी देशों में भी लोगों की सोच पिछड़ी है.बॉलीवुड में काम करना है तो ये फिल्में देखनी ही पड़ेंगी
अब तो स्क्रिप्ट ही पढ़ पाता हूं क्योंकि हर दिन पढ़नी पड़ती है. फिल्में दुनिया भर की देखिए पर अगर हिंदी सिनेमा में काम करना है, तो दिलीप साहब की देवदास, नसीर साहब की स्पर्श, पेस्टनजी देखिए, बैंडिट क्वीन देखिए, अनुराग की जो भी फिल्म मिलती है जरूर देखिए.देखिए वीडियो: https://www.youtube.com/watch?v=b9naP_byHoU
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