The Lallantop

आसाराम के खिलाफ गवाही देने वालों के साथ क्या-क्या हुआ

सोचकर ही आपको डर लग सकता है.

Advertisement
post-main-image
बाईं तरफ अमृत प्रजापति (जो पहले ऐसे गवाह थे, जिन्हें मार डाला गया) और दाईं तरफ आसाराम.

21 अगस्त, 2013 को जब 16 साल की एक साधिका ने आध्यात्मिक गुरु आसाराम के खिलाफ जोधपुर में बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाया, तो उसी के साथ सियासी दंगल शुरू हो गया. शाम होने तक बीजेपी के दो बड़े नेता उमा भारती और प्रभात झा आसाराम पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता रहे थे. इस मामले का सियासी तूल पकड़ना स्वाभाविक था. आसाराम के खिलाफ राजस्थान के जोधपुर में मामला दर्ज हुआ था. यह राजस्थान में विधानसभा चुनाव का साल था और अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में थी. कुछ ही महीनों के बाद तमाम राजनेता उस अभागे क्षण को कोसते हुए पाए गए, जब उन्होंने आसाराम के साथ मंच साझा किया था.

Advertisement

SUSHMA SWARAJ, ASHA RAM BAPU AND DR HARSH VARDHAN ALONG WITH OTHERS AT BJP DHARNA AGAINST KANCHI SHANKARACHARYA JAYENDRA SARASWATI'S ARREST IN NEW DELHI
बीजेपी के नेताओं के साथ कांची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी का विरोध करते आसाराम

1972 में अहमदाबाद के मोटेरा की एक कुटिया से शुरू हुआ आसाराम का तथाकथित आध्यात्मिक अभियान 2013 आते-आते 10,000 करोड़ के बड़े साम्राज्य में तब्दील हो चुका था. उनके भक्तों की संख्या लाखों की तादाद में पहुंच चुकी थी. भक्तों के दिमाग में आसाराम की छवि किसी भगवान से कम नहीं थी. 31 अगस्त, 2013 को इंदौर से नाटकीय गिरफ्तारी के कुछ ही महीनों बाद आसाराम का आपराधिक चेहरा सबके सामने आने लगा. खुद को केस में फंसता देख आसाराम ने किसी माफिया की तरह बड़ी बेशर्मी के साथ गवाहों पर हमले करवाना शुरू कर दिया.

उसकी पीठ में छुरा घोंपा गया

Advertisement

इन खूनी हमलों की शुरुआत हुई सूरत से. तारीख थी 10 मार्च, 2014. यह सोमवार का दिन था. शादियों का सीजन शुरू हो चुका था और फोटोग्राफी का काम करने वाले राकेश पटेल काफी व्यस्त थे. 10 तारीख की रात वो सूरत के पाल इलाके में अपने घर लौट रहे थे. अचानक दो बाइक सवारों ने उन्हें उनके घर के पास ही घेर लिया. राकेश कुछ समझ पाते, इससे पहले ही उनकी पीठ में खंजर घोंपा जा चुका था.


आसाराम की गिरफ्तारी के बाद अहमदाबाद में शुरू हुआ हिंसक प्रदर्शन
आसाराम की गिरफ्तारी के बाद अहमदाबाद में शुरू हुआ हिंसक प्रदर्शन

राकेश किसी दौर में आसाराम के भक्त थे. वो आसाराम के सूरत और अहमदाबाद के आश्रम में होने वाले हर कार्यक्रम की फिल्म उतारा करते थे. राकेश सूरत में आसाराम के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मुकदमे में मुख्य गवाह थे. इससे 10 दिन पहले 28 फरवरी के दिन आसाराम के बेटे नारायण साईं पर बलात्कार का केस दर्ज करवाने वाली महिला के पति पर भी इसी तरह से चाकू से हमला किया गया था. दोनों वारदातें गुजरात के सूरत में हुई थीं.

राकेश पटेल पर हमले के बाद सूरत के डिप्टी कमिश्नर शोभा भूतड़ा ने मीडिया से कहा था कि वो खुद इन हमलों से हतप्रभ हैं. उन्होंने वायदा किया कि वो नारायण साईं और आसाराम केस के सभी गवाहों को उनकी रजामंदी से पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करवाएंगी.

Advertisement

एक तेजाबी हमला

सूरत की डिप्टी कमिश्नर शोभा भूतड़ा अपने वायदे पर खरी नहीं उतर पाईं. राकेश पटेल पर हमले के एक सप्ताह के भीतर सूरत एक और हमले का गवाह बना. आसाराम पर सूरत में चल रहे बलात्कार केस से जुड़े दिनेश भागचंदानी 16 मार्च, 2014 को सूरत के वेसु रॉयल रेजीडेंसी स्थित अपने घर की तरफ लौट रहे थे. पेशे से कपड़ा व्यवसायी दिनेश दोपहर के खाने के लिए घर लौट रहे थे. उन्हें उनके घर के पास ही पीछे से आ रही दो मोटरसाइकिलों पर सवार चार लोगों ने उन्हें घेर लिया. दिनेश कुछ समझ पाते इससे पहले तेज़ाब उनके मुंह की तरफ उछाला जा चुका था.


सलाखों के पीछे आसाराम
सलाखों के पीछे जाने से बचने के लिए आसाराम ने मध्यप्रदेश का रास्ता पकड़ लिया था.

मौके पर मौजूद लोग चार में से एक हमलावर को पकड़ने में कामयाब रहे थे. बाद में इस आरोपी को पुणे के रहने वाले किशोर बोडके के तौर पर पहचाना गया. किशोर ने पुलिस के सामने दिए बयान में कहा कि कर्नाटक के बीजापुर के रहने वाले आसाराम के एक भक्त वसवराज बसु के कहने पर उसने इस हमले को अंजाम दिया था. दिनेश और आसाराम की अदावत पुरानी थी. 2008 में दिनेश ने जमीन पर जबरन कब्जे के मामले में आसाराम के खिलाफ सूरत के चांदखेडा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई थी. बाद में यह मामला अदालत में आपसी रजामंदी से सुलझा लिया गया था. भागचंदानी इस मामले में गवाह नहीं थे. उनका गुनाह सिर्फ यह था कि वो पीड़िता को कानूनी मदद उपलब्ध करवा रहे थे.

गवाहों में पहली हत्या

किशोर बोडके को जब मौक़ा-ए-वारदात से गिरफ्तार किया गया तो उसके जेब में एक पर्ची बरामद हुई थी. इस पर्ची में आसाराम केस से जुड़े हुए 6 गवाहों के नाम थे. आसाराम के गुर्गो की बनाई गई इस हिटलिस्ट में सबसे पहला नाम अमृत प्रजापति का था. प्रजापति पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर थे और किसी समय में आसाराम के करीबी हुआ करते थे. प्रजापति ही वो आदमी थे, जिन्होंने आसाराम के खिलाफ आवाज उठाने में पहल की थी.

अमृत प्रजापति आसाराम के भक्त नहीं थे. वो नौकरी की गरज से आसाराम से जुड़े थे. 1989 में आसाराम के अहमदाबाद आश्रम की तरफ से एक विज्ञापन निकला था. इसके मुताबिक आश्रम को अपने आयुर्वेद विभाग के लिए एक BAMS डॉक्टर की तलाश थी. 28 साल के अमृत प्रजापति को भी नौकरी की तलाश थी. उन्होंने 15,000 रुपए माहवार में आश्रम की नौकरी ज्वाइन कर ली.


अमृत प्रजापति जिन्होंने आसाराम के काले कारनामें खोलने के एवज में अपनी जिंदगी गवां दी
अमृत प्रजापति, जिन्होंने आसाराम के काले कारनामे खोलने की एवज में अपनी जिंदगी गंवा दी

1999 में अमृत को पहले-पहल आसाराम की काली करतूतों के बारे में जानकारी मिली. तब तक अमृत प्रजापति आसाराम के काफी करीब आ चुके थे. वो उनके पर्सनल फिजिशियन थे और किसी भी समय उनके कमरे में दाखिल हो सकते थे. 1999 में दिल्ली दौरे के दौरान आसाराम अपने जतिकारा फार्महाउस पर था. दोपहर के वक़्त अमृत प्रजापति उनसे मिलने के लिए उनके कमरे में गए. उस समय आसाराम एक महिला के साथ उस स्थिति में लेटे हुए थे, जो उन्हें असहज करने वाला था. उन्होंने अमृत को दरवाजा बंद करके चले जाने के लिए कहा. बाद में इस घटना को याद करते हुए अमृत ने कहा था, "मुझे वो सब नहीं देखना चाहिए था."

अमृत उस समय आसाराम का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाए. आखिरकार 2005 में 15 साल का लंबा वक़्त बिताने के बाद उन्होंने आश्रम छोड़ दिया. आश्रम छोड़ने के तुरंत बाद उनके ऊपर हमले होने शुरू हो गए. सितम्बर 2005 में आसाराम के समर्थकों ने उनका अपहरण करके उनको पीटा. इसके बाद तो जैसे यह सिलसिला चल निकला. करीब 7 दफे उनके ऊपर हमले किए गए. दर्जनों बार धमकाया गया. 6 बार उनके क्लिनिक को तहस-नहस किया गया. इसके बावजूद अमृत आसाराम और नारायण साईं के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे. लगातार हो रहे हमलों के चलते उन्होंने लाइसेंसी रिवॉल्वर ले ली थी. गले में स्टेथोस्कोप और बगल में रिवॉल्वर टांगे वो इस लड़ाई को बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे.

वो आसाराम के खिलाफ कई मामलों में गवाह थे. इसमें अहमदाबाद आश्रम के पास मृत पाए गए आश्रम में रह रहे दो छात्रों अभिषेक और दीपेश की हत्या के मामले के अलावा सूरत रेप केस में दी गई गवाही शामिल थी. दरअसल वो अमृत ही थे, जिन्होंने सबसे पहले आसाराम के खिलाफ आवाज उठाई. उनके साहस के चलते ही आसाराम के काले कारनामे लोगों के सामने आ पाए. वो आसाराम की राह में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहे थे.


अमृत प्रजापति जिन्होंने 7 बार आसाराम के गुर्गों के हमले को झेला
अमृत प्रजापति, जिन्होंने 7 बार आसाराम के गुर्गों के हमले को झेला

अमृत प्रजापति ने आश्रम से निकलने के बाद अहमदाबाद के ओढाव रिंग रोड पर अपना क्लिनिक खोला. इसके अलावा वो महीने में दो बार राजकोट के पेडर रोड पर स्थित आरोग्यधाम पर भी मरीजों का इलाज किया करते थे. यहां वो पिछले तीन साल से आ रहे थे. एक महीने पहले तक वो हर शुक्रवार राजकोट आया करते थे, लेकिन बाद में व्यस्तताओं के चलते वो महीने में दो दौरे करने लगे.

22 मई, 2014. लोकसभा चुनाव के नतीजों में गुजरात के नरेंद्र मोदी ने कमाल करके दिखा दिया था. 1984 में राजीव गांधी को मिली 404 सीटों के बाद वो पिछले 30 साल में दूसरे प्रधानमंत्री थे, जो पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रहे थे. 20 मई को एक भव्य समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने शपथ ली थी. इसके ठीक दो दिन बाद अमृत मई महीने के दूसरे राजकोट दौरे पर थे.

उस रोज सुबह अमृत प्रजापति के पास एक फोन आया था. फोन के दूसरी तरफ बोल रहे शख्स ने खुद का नाम राजू पटेल बताया. वो अमृत से हिंदी में बात कर रहा था. गुजरात में एक गुजराती का दूसरे गुजराती से हिंदी में बात करना थोड़ा असामान्य था, लेकिन अमृत ने ख़ास ध्यान नहीं दिया. राजू पटेल ने अमृत से आग्रह किया कि वो कुछ ही देर में आरोग्यधाम आ रहा है ताकि अपना चेकअप करवा सके.

किशोर बोडके के पास मिली चिट में अमृत का नाम होने की वजह से उन्हें पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करवाई गई थी. उनकी सुरक्षा में तैनात कॉन्स्टेबल नरसिंह यादव दोपहर का खाना खाने के लिए पास ही के एक ढाबे पर चला गया था. ठीक उसी समय खुद को राजू पटेल कहने वाला वो शख्स अमृत प्रजापति के क्लिनिक पहुंचा.

खुद का चेकअप करवाने के बाद राजू पटेल अमृत के चैम्बर से बाहर निकल गया. कुछ और मरीजों को देखने के बाद अमृत प्रजापति अपने चैंबर से बाहर निकले. चैंबर के बाहर कुछ कुर्सियां और बेंच पड़ी हुई थीं. मरीज यहीं बैठकर अपनी बारी का इंतजार किया करते थे. चैंबर से बाहर आए अमृत प्रजापति ने देखा कि खुद को राजू पटेल बताने वाला वो शख्स अब भी वहीं बैठा हुआ था. अमृत को दरवाजे की तरफ जाता देख वो भी उनके साथ चलने लगा. जैसे ही अमृत ने क्लिनिक का दरवाजा खोला, उसने तीन गोलियां अमृत के शरीर पर दाग दी. इसमें से एक गोली उनके गले में लगी. इसके बाद हत्यारा भागते हुए बाहर गया और बाइक पर इंतजार कर रहे एक शख्स साथ फरार हो गया.

अमृत को पहले राजकोट और बाद में अहमदाबाद के अस्पताल में ले जाया गया. गोली लगने के दो दिन बाद उनकी हालत ज्यादा गंभीर हो गई. करीब 15 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद उनकी मौत हो गई. यह आसाराम मामले में चौथा बड़ा हमला और पहली हत्या थी.

और कलम भी तोड़ दी गई

जोधपुर में आसाराम के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली नाबालिग पीड़िता मूलतः उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली थी. लगातार मिल रही धमकियों और तरह-तरह के दबाव के बीच एक पत्रकार था, जो पूरी शिद्दत के साथ पीड़िता के पक्ष में खड़ा था. इस पत्रकार का नाम था, नरेंद्र यादव.


हमले में घायल हुए पत्रकार नरेंद्र यादव
हमले में घायल हुए पत्रकार नरेंद्र यादव

नरेंद्र शाहजहांपुर में एक राष्ट्रीय अखबार के पत्रकार थे. वो लगातार आसाराम के खिलाफ खबरें लिख रहे थे. तब तक वो इस मामले में 187 खबरें लिख चुके थे. यह बात आसाराम के समर्थकों को नागवार गुजरी. 17 सितंबर, 2014 की रात के 10.30 बजे थे. नरेंद्र रोज की तरह दफ्तर का काम खत्म करके घर के लिए निकल रहे थे. जैसे ही दफ्तर से बाहर निकले, उन्हें चार लोगों ने घेर लिया. उनकी गर्दन पर हंसुए से वार किया गया. हमलावर उन्हें मरा समझकर, वहीं फेंककर चले गए.

हल्ले की आवाज सुनकर उनके कुछ सहकर्मी दफ्तर से बाहर आए. नरेंद्र को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. उनकी गर्दन को बड़ी बेरहमी से काटा गया था. अस्पताल में इलाज के दौरान उनके सिर पर 28 और गले पर 42 टांके लगाए गए. किसी तरह से नरेंद्र की जान बच पाई.

वो आसाराम की बेगुनाही की कसमें खा रहा था

31 अगस्त, 2013 के रोज आसाराम की गिरफ्तारी के साथ ही देशभर में उनके समर्थकों के प्रदर्शन शुरू हो गए. कभी आसाराम के खानसामा रहे अखिल गुप्ता ने उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में ऐसे प्रदर्शनों की कमान संभाल रखी थी. वो आसाराम की बेगुनाही की कसमें खा रहा था. मुज़फ्फरनगर के छोटे से गांव अबूनगर का रहने वाला अखिल किसी दौर में आसाराम का भरोसेमंद चेला हुआ करता था.

अखिल और उसका परिवार 1996 में पहली बार आसाराम के संपर्क में आया था. तब तक अखिल का भाई रोहित अपनी इंजीनिरिंग की पढ़ाई पूरी करके पैसे कमाने के लिए खाड़ी देशों की तरफ रुख कर चुका था. अखिल और उनका परिवार आसाराम का एक कैंप अटेंड करने के लिए दिल्ली आए थे. यह सिलसिला अगले दो साल चलता रहा.

1998 में अखिल अपने परिवार के साथ आसाराम के अहमदाबाद स्थित आश्रम में रहने के लिए चला गया. यहां उसे रसोई की जिम्मेदारी सौंप दी गई. अखिल के पिता अहमदाबाद जाने से पहले मुजफ्फरनगर में 'अलंकार प्रेस' नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस चलाया करते थे. लिहाजा उन्हें आश्रम से छपने वाली मासिक पत्रिका 'ऋषि प्रसाद' को छापने की जिम्मेदारी सौंप दी गई.


अखिल के लिए इंसाफ मंगाते उनके माता-पिता
अखिल के लिए इंसाफ मंगाते उनके माता-पिता

आश्रम में रहने के दौरान अखिल को रायपुर से आश्रम में आई वर्षा नाम की एक लड़की से प्यार हो गया. उसने आसाराम के सामने वर्षा से शादी करने का प्रस्ताव रखा. आसाराम ने इस प्रस्ताव से असहमति जताई. इसके बाद अखिल ने 10 साल के लंबे साथ के बाद आश्रम छोड़ दिया. अखिल और वर्षा ने 2008 में दिल्ली आकर शादी कर ली. रिजक चलाने के लिए अखिल ने मुज़फ्फरनगर में डेयरी खोल ली.

अखिल और आसाराम के बीच की करीबी इस बात से समझी जा सकती है कि 2013 में बलात्कार के आरोप में आसाराम की गिरफ्तारी के बाद अहमदाबाद पुलिस अखिल से पूछताछ के लिए मुज़फ्फरनगर आई थी. इस पूछताछ में अखिल ने आसाराम के खिलाफ कई सबूत पुलिस के सामने रखे थे. जाते-जाते अहमदाबाद पुलिस ने मुज़फ्फरनगर पुलिस को अखिल की सुरक्षा के बारे में आगाह भी किया था.

11 जनवरी, 2015. अखिल मुज़फ्फरनगर स्थित अपनी 'अनंदा डेयरी' से घर की तरफ लौट रहे थे. उन्हें जानसठ रोड पर दो बाइक सवारों ने घेर लिया. पीछे से आ रहे हमलावरों ने उनकी पीठ में गोली मारी. नतीजतन उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. वो अपने स्कूटर से लड़खड़ाकर गिर गए. यहां से उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. यह आसाराम के मामले में हुई दूसरी हत्या थी.

वो अब भी लापता है

कानपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है निमढा. यहां रहने वाले राम कुमार सचान का दुख आसाराम को उम्रकैद की सजा मिलने पर भी कम नहीं होने वाला. उनके बेटे को लापता हुए दो साल का वक़्त होने को आया है. किसी दौर में आसाराम के निजी सचिव रहे राहुल सचान नवंबर 2015 से लापता हैं.

राहुल 2003 से 2009 के बीच आसाराम के निजी सचिव थे. इस वजह से उन्हें इस केस में सबसे महत्वपूर्ण गवाह माना जा रहा था. 13 फरवरी, 2015 को सचान एक पेशी के दौरान अपना बयान दर्ज करवाने के लिए जोधपुर की अदालत में पहुंचे हुए थे. गवाही दर्ज करवाने के बाद जैसे ही वो कोर्ट से बाहर निकले सत्य नारायण ग्वाला नाम के एक शख्स ने उन पर छुरे से हमला कर दिया. ग्वाला आसाराम का अनुयायी था और जोधपुर में उसके आश्रम का काम देखता था. इस हमले ने सचान को बुरी तरह से डरा दिया. घटना के तुरंत बाद दिए गए बयान में राहुल सचान ने दावा किया था कि कोर्टरूम में आसाराम की तरफ से ग्वाला को हमला करने के लिए इशारा किया गया था.


राहुल सचान: आसाराम के निजी सहायक जो आज भी लापता हैं
राहुल सचान: आसाराम के निजी सहायक जो आज भी लापता हैं

राहुल सचान के मामले में पुलिस का रवैया भी बहुत दोस्ताना नहीं रहा. खुद पर हुए जानलेवा हमले के बाद सचान लखनऊ में रहने लगे थे. उन्होंने लखनऊ पुलिस से 24 घंटे की सुरक्षा मांगी थी. पुलिस की तरफ से दिन में 8 घंटे की सुरक्षा ही उपलब्ध करवाई गई. गायब होने से पहले सचान काफी परेशान थे. खौफ बुरी तरह से उनके मन में घर कर गया था. उन्हें हर वक़्त इस बात का डर लगा रहता था कि कोई उनका पीछा कर रहा है. अपने वकील बेनेट कैस्टेलिनो से बातचीत के दौरान सचान लगातार यह बात कह रहे थे कि उनकी हत्या होनी तय है. यहां तक कि वो पूरी रात डर के साये में जागते हुए बिता रहे थे. सुबह पुलिस कॉन्स्टेबल के आने के बाद ही उन्हें नींद आ पाती थी.

जुलाई 2015 में हुई कृपाल सिंह की हत्या ने सचान को और भी ज्यादा डरा दिया था. 25 नंबर, 2015 को वो लखनऊ में बालजंग के अपने किराए के कमरे से गायब हो गए. पुलिस के पास आज भी सचान के बारे में कोई ठोस सुराग नहीं है. सरकार की तरफ से सचान के बारे में जानकारी देने वाले को दो लाख का इनाम देने की घोषणा की जा चुकी है.

बलात्कार के तीनों मामलों में गवाह पर हमला

आसाराम के निजी सचिव रहे राहुल सचान पर हुए हमले के कुछ ही महीनों बाद नारायण साईं के निजी सचिव का नाम भी इस फ़ेहरिस्त में जुड़ गया. महेंद्र चावला आसाराम और नारायण साईं के खिलाफ चल रहे बलात्कार के तीनों मुकदमों में गवाह थे. पानीपत के सोनाली गांव के रहने वाले चावला गवाही देने के बाद सुरक्षा के मद्देनजर अपने गांव लौट आए थे. लेकिन वो यहां भी आसाराम के खूनी पंजों से बच नहीं पाए. 23 मई, 2015 के रोज आसाराम के दो गुर्गे उनके पैतृक घर पर आ धमके. चावला याद करते हैं-


"सुबह के 9 बज रहे थे. मुझे दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी. जब मैंने देखने के लिए दरवाजा खोला तो 20 साल के दो युवक हाथ में देसी कट्टा लिए मेरे सामने खड़े थे. मुझे समझ आ गया कि ये लोग मुझे खत्म करने के लिए आए हैं."

हमले के बाद आईसीयू में भर्ती महेंद्र
हमले के बाद आईसीयू में भर्ती महेंद्र

मौत को सामने देख चावला के साहस ने एक बार के लिए जवाब दे दिया. फिर उन्हें समझ में आया कि मुकाबला करने के अलावा उनके पास कोई ख़ास विकल्प नहीं बचा है. उन्होंने कट्टे की नली को आगे से पकड़ लिया. इतने में हमलावर ने पहला फायर कर दिया. वो गोली चावला को लगने की बजाए बगल की दीवार में धंस गई. जब तक हमलवार नई गोली लोड करता चावला के पास भाग निकलने का मौक़ा था. उन्होंने ऐसा ही किया. वो सामने की मुंडेर तक पहुंचे ही थे कि दूसरा फायर हो गया. सचान कहते हैं-


"मैं मुंडेर लांघ के भाग जाने की फिराक में था. इतने में मैंने पीछे गोली चलने का धमाका सुना. अगले ही पल मुझे मेरे कंधे से खून रिसता हुआ महसूस हुआ. मैं समझ गया कि मुझे गोली लग चुकी है. हमलावर लगातार एक वाक्य बोले जा रहे थे - नारायण साईं के खिलाफ गवाही देता है. इसके बाद मैं वहीं निढाल होकर गिर गया."

महेंद्र चावला की गवाही आसाराम के केस में सबसे असरदार गवाहियों में से एक है. फिलहाल वो पुलिस सुरक्षा के साए में जिंदगी जी रहे हैं. उनके कंधे में धंसी गोली ने कभी न मिटने वाला निशान छोड़ा है. गोली लगने के बाद उनके कंधे को लकवा मार गया था. वो आज आंशिक विकलांगता के साथ जिंदगी जी रहे हैं.

वो समझौता नहीं करवा सका 35 साल के कृपाल सिंह शाहजहांपुर के रहने वाले थे और पीड़िता के पिता की तरह ही आसाराम के भक्त थे. वो पीड़िता के पिता की ट्रांसपोर्ट कंपनी के कर्मचारी हुआ करते थे. साथ ही साथ वो एलआईसी एजेंट के तौर पर काम कर रहे थे. कृपाल पर हमला होने के कुछ महीनों पहले उनकी बात आसाराम से हुई थी. आसाराम के दो चेले संजय और राघव इस बातचीत का जरिया बने थे. पीड़िता के पिता ने बाद में इस इस फोन की रिकॉर्डिंग जारी की थी. इस बातचीत के बारे में दावा किया गया था कि आसाराम ने जेल में रहते हुए यह बात की थी. 11 मिनट के इस ऑडियो टेप में आसाराम कृपाल पर पीड़िता के पिता के साथ समझौता करवाने पर जोर दे रहा था.


कृपाल सिंह
कृपाल सिंह

पीड़िता के पिता ने जब यह साफ़ कर दिया वो आसाराम के लिए सजा के अलावा कुछ और नहीं चाहते तो कृपाल ने इस नाजुक मौके पर पीड़िता और उनके परिवार का साथ देने का फैसला किया. अप्रैल के महीने में उन्होंने कोर्ट के सामने अपना बयान दर्ज करवाया था, जो कि आसाराम के खिलाफ था.

10 जुलाई 2015 को कृपाल सदर बाजार से लौट रहा था. शाहजहांपुर के ग्वालाटोली चौराहे के पास उन्हें हमलावरों ने घेर लिया. हमलावर उनके पीछे से आ रहे थे. चौराहे के करीब पहुंचते ही उन्होंने कृपाल पर गोली दाग दी. यह गोली अजय यादव नाम के एक शख्स की बांह को छूते हुए कृपाल की रीढ़ की हड्डी में धंस गई.

गोली लगने के आधे घंटे तक वो सड़क पर पड़े कराहते रहे. मौके पर आधे घंटे बाद पहुंची पुलिस कृपाल को नजदीकी हॉस्पिटल ले गई. यहां से उन्हें बरेली के मिशन अस्पताल रेफर कर दिया गया. बरेली में उनकी पीठ में धंसी गोली निकाल ली गई लेकिन उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. 24 घंटे तक मौत से संघर्ष करने के बाद कृपाल ने दम तोड़ दिया. यह आसाराम बलात्कार प्रकरण में 9वां और अब तक का आखिरी हमला था. कृपाल सिंह ऐसे तीसरे शख्स थे ,जिन्हें गवाह होने की वजह से जान गंवानी पड़ी.


यह भी पढ़ें
आसाराम और राम रहीम के केस में क्या कनेक्शन है?

आसाराम को है ये खतरनाक बीमारी, जेल से बाहर आते ही दिखाएगी असर!

आसाराम के वो कांड जिन पर दुनिया की नजर नहीं पड़ी!

Advertisement