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सनातन को लेकर क्यों आक्रामक रहते हैं DMK नेताओं के तेवर? द्रविड़ राजनीति का इतिहास और ए राजा का बयान

Periyar से लेकर Udhayanidhi Stalin और A Raja तक, सनातन विरोध कैसे रहा है द्रविड़ राजनीति का अहम हिस्सा? 1965 से लेकर 2024 तक, दक्षिण की सियासत में कितनी समानता है?

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ए राजा ने हिंदू धर्म को लेकर जो बयान दिया, उसपर विवाद हो रहा है (PTI)

"अपने लोगों को जाकर कह दीजिए कि हम राम के दुश्मन हैं..." ये बयान दिया DMK नेता अंदिमुथु राजा (A Raja) ने. जिन्हें हम और आप ए राजा के नाम से जानते हैं. 3 मार्च को ये बयान दिया गया और तब से इसको लेकर बवाल मचा हुआ है. BJP और हिंदुत्ववादी विचारधारा वालेे नेताओं को तो छोड़िए, DMK की सहयोगी पार्टी कांग्रेस भी इस बयान की निंदा कर रही है. कड़े शब्दों में. लेकिन क्या राजा ने पहली बार सनातन धर्म (Raja on Sanatan Dharma) को लेकर कुछ विवादित बयान दिया है? तो इसका जवाब है नहीं. वो भी एकदम बोल्ड लेटर में.

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थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं. सितंबर 2023 में एमके स्टालिन (MK Stalin) के बेटे और मंत्री उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) ने अपने भाषण में सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना महामारी से की थी. पूरे देशभर में इस बयान को लेकर खूब बवाल मचा था. उनके खिलाफ तब केस भी दर्ज किया गया था. और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बयान को लेकर फटकार भी लगाई थी. लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों के कई नेताओं ने उदयनिधि स्टालिन के बयान का समर्थन भी किया था. जिसमें एक नाम था ए राजा का. राजा ने स्टालिन से एक कदम आगे बढ़कर बयान दिया. उन्होंने सनातन धर्म की तुलना HIV बीमारी से कर दी.

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अब आपके मन में भी सवाल आया होगा कि ए राजा के सनातन धर्म को लेकर इतने विरोधी तेवर क्यों है? इसका सीधा सा जवाब है कि ये विचारधारा सिर्फ ए राजा कि नहीं बल्कि पूरी DMK पार्टी की है. वो कैसे, इसका पूरा इतिहास हम आगे बताएंगे. पहले कुछ बयान देख लीजिए.
 
उदयनिधि स्टालिन, सितंबर 2023

“सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है. कुछ चीजों का विरोध नहीं किया जा सकता, उन्हें खत्म ही कर देना चाहिए. हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते. हमें इसे मिटाना है. इसी तरह हमें सनातन को भी मिटाना है.”

ए राजा- सितंबर 2023

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“सनातन पर उदयनिधि का रुख नरम था. सनातन धर्म की तुलना सामाजिक कलंक वाली बीमारियों से की जानी चाहिए. सनातन की तुलना HIV और कुष्ठ रोग जैसे सामाजिक कलंक वाली बीमारियों से की जानी चाहिए. जबकि उदयनिधि ने सनातन की तुलना मलेरिया से ही की है.” 

एम करुणानिधि- सितंबर 2007

“लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले एक आदमी हुआ था. उसका नाम राम था. उसके बनाए पुल (रामसेतु) को हाथ ना लगायें. कौन था ये राम? किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट हुआ था? कहां है इसका सबूत?”

ऐसे और भी कई सारे बयान हैं, जो DMK नेताओं की तरफ से दिए गए हैं. लेकिन इन बयानों के जरिए हम सिर्फ आपको ये बताना चाह रहे हैं कि किस तरह DMK नेताओं के तेवर सनातन धर्म को लेकर गर्म रहे हैं. इसकी शुरुआत कहां से और कब हुई, आज इसी पर बात करेंगे.

द्रविड़ आंदोलन

19वीं सदी में मद्रास रियासत में ब्राह्मणों का वर्चस्व था. केवल समाज में नहीं, शासन-प्रशासन में भी. वहीं 20वीं सदी की शुरुआत में ब्राह्मणों और ग़ैर-ब्राह्मणों के बीच राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक फ़र्क़ काफी ज्यादा हो गया. और ऐसे में जन्म हुआ जस्टिस पार्टी का. एक गैर-ब्राह्मण - ख़ास तौर पर पिछड़े समुदायों - के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाला पहला राजनीतिक दल.

जस्टिस पार्टी ने सरकारी नौकरियों और सत्ता के बड़े पदों पर ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती दी. 1920 और 30 के दशक में इस आंदोलन ने गति पकड़ी. ई.वी. रामासामी पेरियार और सी.एन. अन्नादुरई जैसे नेताओं ने सेंटर स्टेज लिया. आंदोलन के साथ, स्वदेशी और स्वाभिमान की भावना बढ़ी. मसलन, संस्कृत की जगह तमिल भाषा के इस्तेमाल की वकालत की जाने लगी.

ये भी पढ़ें: जानिए कौन थे भारत से अलग देश द्रविड़नाडु की मांग करने वाले सीएन अन्नादुरै?

1938 में जस्टिस पार्टी और पेरियार का आत्मसम्मान आंदोलन साथ में नत्थी हो गए. 1944 में एक नया संगठन बनाया गया, द्रविड़ कड़गम. एक ब्राह्मण-विरोधी, कांग्रेस-विरोधी और आर्य-विरोधी (उत्तर भारतीय) दल. द्रविड़ कड़गम ने एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र के लिए आंदोलन चलाया. फिर बनी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम. इसके गठन की घोषणा 1949 में हुई थी. इसका निर्माण अन्नादुरई और पेरियार के बीच वैचारिक मतभेद के कारण हुआ था. 

सी.एन. अन्नादुरई DMK संस्थापक थे. 1967 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी सत्ता में आ गई. अन्नादुरई ने 1967 से 1969 तक मद्रास राज्य के चौथे और आखिरी मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य का बीड़ा उठाया. और जब मद्रास, तमिलनाडु बना, तो उसके पहले मुख्यमंत्री भी बने. साल 1969 में अन्नादुराई की कैंसर से मौत हो गई. उसके बाद उनकी पार्टी और सरकार की कमान एम. करुणानिधि के पास आ गई थी. जो अलग-अलग कार्यकाल में पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने. ये तो रहा पार्टी बनने का इतिहास.

ईवी रामास्वामी पेरियार और सी.एन. अन्नादुरई (Wikimedia Commons)
जस्टिस पेरियार के विचार

अब जस्टिस पेरियार का इतना जिक्र हुआ तो उनके विचार के बारे में भी थोड़ा जान लीजिए. ईवी रामास्वामी पेरियार धर्म के धुर-विरोधी थे, ख़ासकर हिंदू पंथ के. उनका मानना था कि धर्म अंधविश्वास है, जिसका इस्तेमाल लोगों पर अत्याचार करने और असमानता को सही ठहराने के लिए किया जाता है. इसके लिए उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू धर्म ‘विशेष रूप से महिलाओं और दलितों के लिए घातक’ है. पेरियार का मानना था कि जाति व्यवस्था हिंदू धर्म का अभिन्न हिस्सा है और ये दमनकारी है. उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू देवी-देवता लोगों की कल्पनाओं से ज़्यादा कुछ नहीं हैं. मूर्ति पूजा की भी आलोचना की.

सनातन धर्म की परिभाषा अलग!

वापस लौटते हैं DMK नेताओं के सनातन धर्म को लेकर दिए गए विवादित बयानों पर. अब चाहे वो राजा हो या फिर स्टालिन, उनके बयानों की तो नॉर्थ इंडिया में काफी आलोचना हो रही है. लेकिन तमिलनाडु में उनके बयान का इतना विरोध नहीं हो रहा है. इसके पीछे की बड़ी वजह है राज्य का सांस्कृतिक स्वभाव.  तमिलनाडु के लोग सनातन धर्म को उस तरह नहीं देखते जैसा कि हिंदी भाषी राज्यों में देखा जाता है. दरअसल द्रविड़ लोग खुद को वर्ण व्यवस्था, मनुस्मृति से अलग रखते हैं. इस बारे में इंडिया टुडे की पत्रकार अक्षिता नंदगोपाल ने हमें बताया था,

“सनातन तमिल लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से बहुत नया है. द्रविड़ नेताओं ने हमेशा सनातन को एक ऐसे रूप में पेश किया कि ये ब्राह्मणों का धर्म है. उन्होंने ही उत्तर बनाम दक्षिण की लकीर खींची.”

और शायद यही वजह रही है कि DMK नेताओं की तरफ से बार-बार ऐसे बयान दिए जाते हैं. जिसकी आलोचना केंद्र में शासन कर रही बीजेपी और सनातन धर्म को मानने वाले लोगों की तरफ से लगातार की जाती है . चाहे वो करुणानिधि हों या स्टालिन या फिर ए राजा, सनातन को लेकर लगातार उनका तेवर आक्रामक रहा है. और ऐसा माना जाता है कि ये उन्हें अपने राजनैतिक गुरु सी एन अन्नादुराई और वैचारिक आदर्श 'पेरियार' से विरासत में मिला है. 

वीडियो: सनातन को गाली देने के मामले में उदयनिधि स्टालिन को सुप्रीम कोर्ट ने डांट लगा दी

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