बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में, लहठी और लाख की चूड़ियां बनाने वाले कारीगर गुज़ारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सामग्री की बढ़ती लागत, कम मांग और सरकारी मदद की कमी ने इन पारंपरिक कारीगरों को हाशिये पर ला दिया है. जिससे कई लोग अपने पुश्तैनी काम को छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं. मुज़फ़्फ़रपुर में लाख की चूड़ियों का कारोबार क्यों चौपट हो रहा है, कारीगर कैसे ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और यह संघर्ष भारत की लुप्त होती हस्तशिल्प परंपराओं के बारे में क्या कहता है? यह सब कुछ समझने के लिए देखिए लल्लनटॉप की यह ग्राउंड रिपोर्ट.
चुनाव यात्रा: '90 की लागत, 95 का बिकता है’, बिहार के मुजफ्फरपुर के लहठी और लाख कारीगरों की कहानी
लहठी और लाख की चूड़ियां बनाने वाले कारीगर गुज़ारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वे कहते हैं, "इसे बनाने में 90 रुपये लगते हैं, लेकिन यह सिर्फ़ 95 रुपये में बिकती है", और फिर भी चूड़ियों को खरीदार नहीं मिलते.
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