साल 2016 में जब रतन टाटा और टाटा ग्रुप के चेयरमैन साइरस पलोनजी मिस्त्री के बीच विवाद हुआ, तब सबसे अधिक धर्म-संकट में मेहली मिस्त्री थे. मेहली, रतन टाटा के ऐसे भरोसेमंद दोस्त और सहयोगी थे, जिन पर टाटा सबसे ज्यादा विश्वास करते थे. मेहली मिस्त्री भी रतन टाटा को अपना मेंटर मानते थे. दूसरी तरफ वह उस शापूरजी पलोनजी परिवार से भी संबंधित थे, जिसके साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप की कमान संभाल रहे थे. वह उनके चचेरे भाई थे.
मेहली मिस्त्री की कहानी, जो रतन टाटा के लिए फैमिली के खिलाफ गए, अब टाटा ट्रस्ट से निकाले जा रहे हैं
मेहली मिस्त्री को टाटा ग्रुप से बाहर करने की तैयारी चल रही है. खुद नोएल टाटा ने उनके कार्यकाल को विस्तार देने को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है. मिस्त्री रतन टाटा के करीबी रहे हैं और साइरस मिस्त्री विवाद में भी उन्होंने रतन टाटा का ही साथ दिया था.
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साइरस का रतन टाटा के साथ विवाद ऐसा था कि मेहली मिस्त्री को भी कोई न कोई पक्ष लेना ही था. वह करें भी तो क्या? एक ओर परिवार था, दूसरी ओर दोस्त और मेंटर. मेहली ने तब रतन टाटा का साथ दिया. उनके साथ मजबूती से खड़े रहे. साइरस पी मिस्त्री को टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाने के फैसले में भी वह उनके मजबूत हाथ बने. भले ही उन पर यह आरोप लगे कि रतन टाटा ने उनकी कंपनी को फायदा पहुंचाया, फिर भी उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला. रतन टाटा से उनकी दोस्ती और गहरी हुई, जब टाटा ने मेहली को ग्रुप के दो निर्णायक ट्रस्टों में शामिल करने की सिफारिश की.
रतन टाटा अब दुनिया में नहीं हैं. उनके निधन के ठीक एक साल बाद मेहली की दोनों ही ट्रस्ट से विदाई की तैयारी पूरी कर ली गई है. सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) के ‘बोर्डरूम’ से उनको निकालने के लिए खुद टाटा ग्रुप के चेयरमैन नोएल टाटा ने मिस्त्री के खिलाफ वोट किया है. उनके साथ दो और बोर्ड मेंबर्स टीवीएस समूह के प्रमुख वेणु श्रीनिवासन और पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह ने भी वोट किया है.
हालांकि, इसकी लड़ाई लंबी है जो कानूनी रास्तों पर फैल सकती है लेकिन मेहली मिस्त्री के लिए यह बड़ा झटका इसलिए माना जा रहा है कि रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ग्रुप के चेयरमैन की दावेदारी की पंक्ति में होने के बावजूद उन्होंने नोएल टाटा का इस पद के लिए समर्थन किया था. आज वही नोएल टाटा का वोट उन्हें ग्रुप पर अंकुश रखने वाले दो बड़े ग्रुपों से बाहर करने के लिए तैयार है.
कौन हैं मेहली मिस्त्रीजैसा नाम से जाहिर है, मेहली मिस्त्री शापूरजी पलोनजी परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वही परिवार जिसे दशकों तक टाटा समूह में एक बड़े शेयरधारक के रूप में जाना जाता है. यह देश के बड़े व्यापारिक घरानों में से एक है, जिसकी स्थापना पलोनजी मिस्त्री ने साल 1865 में की थी. फिलहाल इस ग्रुप का नेतृत्व शापूरजी मिस्त्री कर रहे हैं, जो टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन दिवंगत साइरस मिस्त्री के बड़े भाई हैं. यह परिवार अपने कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट कारोबार के साथ-साथ टाटा संस में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी के लिए जाना जाता है.
मेहली मिस्त्री का संबंध भी इस परिवार से है. वह शापूरजी और दिवंगत साइरस मिस्त्री के कजिन यानी चचेरे भाई हैं. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मेहली मिस्त्री का परिवार साइरस और शापूरजी के परिवार से मां और पिता दोनों तरफ से गहराई से जुड़ा हुआ है. मेहली और साइरस मिस्त्री की मां सगी बहनें हैं. इसके अलावा, साइरस के दादा और मेहली के दादा भी भाई थे. उनमें से एक सिविल कॉन्ट्रैक्टर थे और दूसरे पेंटिंग कॉन्ट्रैक्टर. बाद में परिवारों ने अपने-अपने कारोबार अलग दिशा में आगे बढ़ाए. एक तरफ शापूरजी पलोनजी ग्रुप बना, जिसका कारोबार निर्माण, रियल एस्टेट, टेक्सटाइल और शिपिंग जैसे कई क्षेत्रों में फैला हुआ है. दूसरी तरफ तुलनात्मक रूप से छोटा एम. पलोनजी ग्रुप विकसित हुआ.
मेहली मिस्त्री इस छोटे लेकिन स्टेबल कारोबारी समूह एम. पलोनजी ग्रुप ऑफ कंपनीज से जुड़े हैं, जो कई तरह के कारोबार करता है. जैसे- पेंटिंग, ड्रेजिंग, स्टेवडोरिंग (पोर्ट पर जहाजों से माल लादने-उतारने का काम), लॉजिस्टिक्स सॉल्यूशंस, शिपिंग, फाइनेंस, निवेश, जीवन बीमा, ऑटोमोबाइल डीलरशिप और स्पेशलिटी कोटिंग्स बनाना आदि. इस समूह की प्रमुख कंपनी एम. पलोनजी एंड कंपनी (M Pallonji & Co) है, जिसमें मेहली मिस्त्री डायरेक्टर हैं.
रतन टाटा से गहरे संबंधET की रिपोर्ट के मुताबिक, मेहली के रतन टाटा के साथ संबंध काफी मजबूत थे. दोनों के बीच रिश्ता तब शुरू हुआ था जब रतन टाटा मेहली के परिवार वाले अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में रहते थे. मेहली के एक दोस्त के मुताबिक,
टाटा के लिए परिवार के खिलाफ गएमेहली की पहली मुलाकात रतन टाटा से तब हुई थी जब वह सिर्फ 10 साल के थे. यहीं से दोनों के बीच एक गहरी दोस्ती शुरू हुई और बाद में उन्हें अक्सर साथ ट्रैवेल करते भी देखा जाता था.
साल 2016 में टाटा कंपनी के इतिहास ने एक विवादित मोड़ ले लिया. रतन टाटा के रिटायर होने के बाद मिस्त्री परिवार के साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने थे. रतन टाटा ने व्यक्तिगत तौर पर उनकी नियुक्ति का समर्थन किया था. लेकिन बाद में ‘निवेशकों का विश्वास खो देने’ के आरोप में उन्हें अचानक अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया. रतन टाटा के इस फैसले पर मेहली मिस्त्री ने उनका भरपूर साथ दिया. इस घटना के बाद रतन टाटा 2024 में निधन तक ग्रुप के आजीवन चेयरमैन बने रहे.
इसी बीच साल 2022 में मेहली मिस्त्री को टाटा सन्स कंपनी में अहम जिम्मेदारी दी गई.
दरअसल, टाटा ट्रस्ट्स के अंतर्गत कई फाउंडेशन हैं, लेकिन इनमें दो सबसे प्रमुख ट्रस्ट हैं. सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT). ये दोनों ट्रस्ट, Tata Trusts के बुनियादी ट्रस्ट हैं, जो टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में 66 प्रतिशत हिस्सेदारी को कंट्रोल करते हैं.
साल 2022 में पहली बार दोनों ही ट्रस्टों में मेहली मिस्त्री को शामिल किया गया. इस ट्रस्ट में फिलहाल 13 ट्रस्टी हैं, जिनमें से 5 लोग दोनों कॉमन ट्रस्टी (साझा सदस्य) हैं. इन पांच में पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह, उद्योगपति वीनू श्रीनिवासन, रतन टाटा के सौतेले भाई और ट्रेंट के चेयरमैन नोएल टाटा और वकील डेरियस खंबाटा के साथ मेहली मिस्त्री भी शामिल हैं.
बाकी ट्रस्टीज़ में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट में सिटी इंडिया के पूर्व सीईओ प्रमित झवेरी, और सर रतन टाटा ट्रस्ट में रतन टाटा के छोटे भाई जिम्मी टाटा तथा जहांगीर अस्पताल के सीईओ जहांगीर एचसी जहांगीर हैं.
कहा जाता है कि टाटा संस के अहम ट्रस्टी होने के नाते रतन टाटा के निधन के बाद कंपनी के अध्यक्ष के तौर पर मेहली मिस्त्री का नाम भी चल रहा था. लेकिन उन्होंने इस पद के लिए नोएल टाटा का समर्थन किया था.
मेहली मिस्त्री टाटा समूह में और बड़ी भूमिका निभाना चाहते थे लेकिन तभी विवाद की शुरुआत हो गई. इसी साल सितंबर में मेहली मिस्त्री के नेतृत्व में 4 ट्रस्टीज के समूह ने टाटा संस के बोर्ड में विजय सिंह की दोबारा नियुक्ति का विरोध किया था. इस फैसले ने टाटा ट्रस्ट्स के भीतर पहली बार बड़ा मतभेद उजागर किया. इस घटना के बाद विजय सिंह ने सितंबर के दूसरे हफ्ते में टाटा संस बोर्ड से इस्तीफा दे दिया.
हालांकि ट्रस्टीज में वीनू श्रीनिवासन और नोएल टाटा ने विजय सिंह का समर्थन किया था लेकिन टाटा ट्रस्ट्स के नियमों के मुताबिक, किसी भी निर्णय के लिए सभी ट्रस्टीज की सर्वसम्मति जरूरी होती है. इसलिए उनका समर्थन काफी नहीं था.
अब इसके एक महीने बाद मेहली के ही ट्रस्टीशिप पर खतरा मंडराने लगा है. उनके कार्यकाल को विस्तार देने से तीन प्रमुख ट्रस्टियों नोएल टाटा, श्रीनिवासन और विजय सिंह ने इनकार कर दिया है. वहीं ट्रस्ट एक और सदस्य और रतन टाटा के भाई जिमी टाटा ने वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया. ऐसे में मेहली की ट्रस्ट से विदाई लगभग तय मानी जा रही है. विडंबना यह है कि अक्टूबर 2016 में ही मेहली के भाई साइरस मिस्त्री को भी टाटा सन्स से बाहर कर दिया गया था.
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