दिल्ली लोक निर्माण विभाग (PWD) ने मंगलवार, 3 जून को एक्स पर कुछ तस्वीरें शेयर की थीं, जिनमें कुछ सफाई कर्मचारी गाद से भरे नालों की सफाई करते दिख रहे थे. सोशल मीडिया पर ये पोस्ट वायरल हो गया. लोग दिल्ली PWD की आलोचना में रिएक्ट करने लगे. बॉलीवुड के मशहूर लेखक और गीतकार वरुण ग्रोवर ने भी इस पोस्ट पर तंज कसते हुए रिएक्ट किया.
PWD ने कीचड़ में सने सफाईकर्मियों की तस्वीरें डालीं, वरुण ग्रोवर ने जाति व्यवस्था याद दिला दी
बॉलीवुड के मशहूर लेखक और गीतकार Varun Grover ने Delhi PWD के एक पोस्ट पर तंज कसते हुए रिएक्ट किया. इस पोस्ट में PWD ने कुछ सफाई कर्मचारियों की तस्वीरें पोस्ट की थीं.

दिल्ली PWD ने जो तस्वीर शेयर की उनमें सफाई कर्मचारी नाली से गाद निकालते नजर आ रहे हैं. उनका शरीर कीचड़ में सना हुआ था. उनके पास कोई सेफ्टी एक्विपमेंट्स भी नहीं थे. दिल्ली PWD ने तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा,
"दिल्ली PWD ने रोहिणी रोड नंबर 41A पर गाद निकालने का काम किया."
इस पर वरुण ग्रोवर ने तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने लिखा,
"हमारे सपने विश्वगुरु बनने के हैं - और होने भी चाहिए. हम एक अद्भुत सभ्यता हैं, अनेकों भाषाओं, मिथकों, और आकांक्षाओं को समेटे हुए. लेकिन देश की राजधानी तक में वो अमानवीय काम जो मशीनों से होना चाहिए इंसानों से ना सिर्फ कराया जा रहा है, बल्कि उसकी शेखी भी बघारी जा रही है."
उन्होंने जाति व्यवस्था पर चोट करते हुए आगे लिखा,
"ये सब जानते हैं कि ये अमानवीय काम केवल उसी जाति के लोगों से कराया जाता है जिन्हें अब तक पूर्ण मनुष्य का दर्जा हमारा समाज नहीं दे पाया है. घोड़ी चढ़ने या मूंछें रखने तक के लिए दलित वर्ग के लोगों पर हमला हो जाता है. और शहरी सवर्ण खुद ही अपनी आंख पर पट्टी बांध कर पूछते हैं जाति व्यवस्था कहां है, हमें तो दिख नहीं रही, पता नहीं क्या बक रहे हैं ये कुछ लोग. विश्वगुरु का मतलब आक्रामक भाषण देना नहीं अपने देश के हर नागरिक को गरिमा और सम्मान देना होता है. वो सुबह कभी तो आएगी."
वरुण ने दिल्ली PWD के पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए अपना पोस्ट किया. दरअसल, दिल्ली PWD ने अपना ओरिजनल पोस्ट डिलीट कर दिया है.
अब इंसानों से नाली वगैरह साफ कराने पर बात करते हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, तकनीकी तौर पर 'स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स' को इंसानों से साफ करवाया जाता है. इनमें केवल बारिश का पानी होना चाहिए, लेकिन हकीकत इससे अलग है. दिल्ली जैसे शहरों में ये नाले अक्सर सीवर, औद्योगिक कचरे और गंदगी से भर जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक ने इस पर चिंता जताई है.
मैला ढोने का काम प्रतिबंधित है और इसके लिए 'प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट, 2013' लागू है. इसके तहत मानव मल को हाथ से साफ करवाना गैरकानूनी है. लेकिन, जमीनी सच्चाई कुछ और है. इसलिए 'स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स' के नाम पर सफाई कर्मचारी अपने हाथों से ‘बारिश के पानी’ को साफ करते हैं. इसे सरकारी भाषा में ‘हाथ से मैला ढोना’ नहीं माना जाता है.
दिल्ली में हजारों ऐसे सफाईकर्मी हर साल मानसून से पहले बिना मास्क, दस्ताने या बूट के इन नालों में उतरकर सफाई करते हैं. ज्यादातर को ठेकेदारों के जरिए रोज के हिसाब से 500 से 700 रुपये की दिहाड़ी मिलती है. जबकि दिल्ली सरकार के मुताबिक, अकुशल मजूदरों के लिए मौजूदा न्यूनतम मजदूरी 18,456 रुपये महीना या लगभग 700 रुपये प्रति दिन है.
इनका कोई स्थायी रोजगार नहीं है, ना ही कोई बीमा है. कुछ सफाईकर्मियों ने बताया कि बदबू से बचने के लिए उन्हें शराब पीकर काम करना पड़ता है. अक्सर दम घुटने से सफाईकर्मियों की मौत की खबरें भी सामने आती रहती हैं.
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