संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है. गृह मंत्री अमित शाह पूरे समय संसद में रहते हैं. लोगों से भेंट भी करते हैं. इसी कड़ी में, संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अमित शाह के कमरे में पहुंचे. उनके पीछे-पीछे स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी थे. 5 मिनट बाद कमरे में एंट्री कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल की हुई. गोयल का जिक्र खासकर इसलिए क्योंकि, वे यूपी में बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव अधिकारी घोषित किए गए हैं. थोड़ी ही देर बाद यूपी से बीजेपी के दो सांसद भी कमरे में दाखिल हुए. नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर चर्चा शुरू हुई. पर शाह ने कहा, इसके लिए तो पहले यूपी के बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव कराना होगा.
यूपी में बीजेपी का नया बॉस योगी की पसंद का होगा?
'राजधानी' में जानिए यूपी में बीजेपी का नया बॉस योगी की पसंद का होगा या फिर उनके विरोधी गुट का? दिल्ली में किसने कह दिया है कि नाम फाइनल हो चुका है और अगले दो-चार दिनों में ऐलान हो जाएगा?


अमित शाह ने ऐसा क्यों कहा? बीजेपी में अध्यक्ष चुने जाने का अपना एक तौर-तरीका है, जो उनके संविधान के हिसाब से होता है. पीएम मोदी वाराणसी से सांसद हैं. यूपी बीजेपी का अध्यक्ष चुने जाने के बाद ही मोदी राष्ट्रीय परिषद के लिए चुने जाएंगे. और इसके बाद ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए पीएम मोदी नॉमिनेशन पेपर पर साइन कर सकेंगे.
अब लौटते हैं शाह की उस मीटिंग पर जिसका हम जिक्र कर रहे थे. कमरे में मौजूद दूसरे सांसद ने उनसे कहा, “लखनऊ में भी बहुत बैठकें हो रही हैं. आरएसएस के बड़े लोग भी वहां पहुंचे हुए हैं.” इस बात पर जेपी नड्डा मुस्कुराए. फिर अमित शाह बोले, “ऐसे थोड़े ही चुनाव होता है. यूपी के नए बीजेपी अध्यक्ष के नाम पर तो फैसला हो चुका है.”
शाह ये बोल ही रहे थे, तभी कुछ पत्रकार वहां पहुंच गए. उन्होंने अमित शाह को ये कहते हुए सुन लिया था. एक ने शाह से सवाल किया, जब फैसला हो ही गया है तो नाम भी बता दीजिए. दूसरे ने कहा, आपने तो जुलाई महीने में भी संसद सत्र के दौरान कहा था कि बस ऐलान होने ही वाला है. जवाब में अमित शाह ने कहा, “इस बार पीयष जी चुनाव अधिकारी हैं. जल्द ही लखनऊ जाएंगे. यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष का चुनाव कराएंगे."
इस बात पर पीयूष गोयल ने शाह की तरफ देखते हुए हाथ जोड़ लिया. लखनऊ में बीजेपी ऑफिस में लगे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की लिस्ट में अब किसका नाम जुड़ेगा, इसे लेकर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक कई नामों की चर्चा है. पर जिन्हें जो तय करना था, वो तय कर चुके हैं. ‘जिन्हें’ से हमारी मुराद प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से ही है.
योगी के करीबी बनेंगे क्या?यूपी बीजेपी के जो भी नए अध्यक्ष होने वाले हैं, उनका सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ कैसा रिलेशन रहने वाला है, ये सवाल भी अपने आप में काफी अहम है. क्योंकि इसी से बीजेपी के अंदर 'दिल्ली बनाम लखनऊ' वाली चर्चा पर या तो फुल स्टॉप लगेगा या फिर बात और बढ़ेगी. क्योंकि, चुनावों में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की केमेस्ट्री से नतीजों पर असर पड़ता है. दोनों को सेम पेज पर होना चाहिए.
पिछले विधानसभा चुनाव के समय यूपी के सिंचाई मंत्री स्वतंत्र देव सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे. ये चुनाव 2022 में हुआ था. स्वतंत्र देव को ‘बाबा का आदमी’ कहा जाता है. मतलब योगी आदित्यनाथ के करीबी. योगी जहां भी जाते हैं, स्वतंत्र देव सिंह उनके साथ होते हैं. उनका ताल्लुक कुर्मी जाति से है.
अब जब चर्चा सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के रिश्ते की हो रही है तो फिर केशव प्रसाद मौर्य का जिक्र भी जरूरी है. सीएम योगी और डिप्टी सीएम मौर्य के रिश्ते कैसे हैं, ये तो सभी जानते हैं. मौर्य को लखनऊ में ‘दिल्ली का आदमी’ माना जाता है. जब योगी पहली बार मुख्यमंत्री बने तब मौर्य ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे. 14 साल के ‘वनवास’ के बाद 2017 में बीजेपी की यूपी की सत्ता में वापसी हुई थी. ओबीसी बिरादरी के मौर्य को लगा कि बंपर जीत के बाद सीएम तो वही बनेंगे. लेकिन बन गए योगी. तब से ही दोनों नेताओं में कभी संगठन बनाम सरकार तो कभी कुछ और के बहाने खट्टी-मीठी बातें चलती रहती हैं.
जातीय समीकरण साधा जाएगा?यूपी में साल भर बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने पहाड़ सी चुनौती है. और वो चुनौती है अखिलेश यादव का पीडीए- यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वाला गठजोड़. जिसके चक्कर में लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी की बैंड बज गई थी. तो क्या पार्टी इस बार किसी ओबीसी या फिर दलित चेहरे पर बतौर प्रदेश अध्यक्ष दांव लगाएगी?
सीएम योगी ठाकुर बिरादरी से हैं. और पहले डिप्टी सीएम केशव मौर्य ओबीसी समाज के और दूसरे डिप्टी ब्रजेश पाठक ब्राह्मण. यानी, समीकरण के हिसाब से सामान्य वर्ग का पलड़ा भारी है.
वीडियो: संसद के पहले दिन ही मचा बवाल, मल्लिकार्जुन खड़गे की बहस का वीडियो












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