सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए (UAPA) मामले में एक शख्स को जमानत दे दी है, जिसे चार्जशीट दायर किए बिना लगभग दो साल तक हिरासत में रखा गया था. कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट दायर किए बिना याचिकाकर्ता को इतने लंबे समय तक हिरासत में रखना ‘पूरी तरह गलत’ है. अदालत ने आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.
UAPA मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शख्स को दी जमानत, क्योंकि पुलिस ने एक बड़ी 'गलती' कर दी
Supreme Court ने UAPA के एक केस में आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की मुताबिक, 2023 में एक शिकायत दर्ज हुई थी कि प्रतिबंधित संगठन ULFA-इंडिपेंडेंट के कुछ सदस्य अलग-अलग चाय बागानों से हर साल 1 लाख रुपये की जबरन वसूली मांग रहे थे.
इसी मामले में, 23 जुलाई 2023 को असम राइफल्स ने कथित तौर पर एक आरोपी को 3.25 लाख रुपये की वसूली करते हुए पकड़ लिया. गिरफ्तारी के बाद उसके खिलाफ IPC की धारा 384 (जबरन वसूली) और 107 (उकसाने) के अलावा ‘गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम’ यानी (UAPA) की धारा 10(A)(iii) और (iv) (गैरकानूनी संगठन की सदस्यता) के तहत केस दर्ज किया गया.
आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ दूसरे दस्तावेज पेश किए. इनमें बताया गया कि उसे इसी तरह के एक दूसरे मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत मिल चुकी है, क्योंकि पुलिस ने तय समय सीमा के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की थी.
डिफ़ॉल्ट जमानत का मतलब है कि जब पुलिस तय समय सीमा (आम तौर पर 60, 90 या UAPA जैसे मामलों में 180 दिन) के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी को कानून के तहत स्वतः जमानत पाने का अधिकार मिल जाता है.
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जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए, क्योंकि उसकी गिरफ्तारी की तारीख से लगभग दो साल तक चार्जशीट दाखिल नहीं की गई और मुकदमे के जल्द खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं है. इसलिए कोर्ट ने आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि चार्जशीट दाखिल किए बिना आरोपियों को लंबे समय तक हिरासत में रखना 'बिल्कुल गलत' है.
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