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'महिलाएं रफाल उड़ सकती हैं तो सेना में वकील क्यों नहीं हो सकतीं', JAG भर्ती पर SC का केंद्र से सवाल

दो महिलाओं द्वारा दाखिल की गई याचिका में कहा गया कि फौज में लिंग के आधार पर बने मेरिट के कारण JAG में उनका चयन नहीं हो पाया, जबकि 3rd रैंक पर रहे पुरुष उम्मीदवार ने महिला मेरिट सूची में 10वीं रैंक पर रखी गई महिला उम्मीदवार से कम अंक प्राप्त किए थे.

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सुप्रीम कोर्ट ने दो में से एक अभ्यर्थी को तुरंत भर्ती करने का आदेश दिया है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

सेना में जज एडवोकेट जनरल (JAG) के पद पर होने वाली भर्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने उस नीति को रद्द करने का आदेश दिया है जिसके तहत JAG भर्ती में महिलाओं की संख्या पर लिमिट लगाई गई थी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इसे 'समानता के अधिकार' का उल्लंघन बताया है. कोर्ट का कहना है कि अभ्यर्थियों का चयन सिर्फ और सिर्फ मेरिट के आधार पर होना चाहिए.

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क्या है JAG भर्ती?

JAG यानी जज एडवोकेट जनरल इंडियन मिलिट्री की लीगल ब्रांच का नाम है. आपने राहुल बोस और केके मेनन की मशहूर फिल्म 'शौर्य' देखी होगी. इस मूवी में राहुल बोस एक आर्मी लॉयर के किरदार में थे. ये वही पोस्ट थी जिनकी भर्ती JAG के द्वारा की जाती है. इनका काम फौज को हर तरह के लीगल मामले में सपोर्ट करना और सलाह देना होता है ताकि फौज में कानून बना रहे. इसमें सिलेक्ट होने वाले अभ्यर्थियों को पहले दूसरे अफसरों की तरह ही ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA Chennai) भेजा जाता है. इनकी ट्रेनिंग और पोस्टिंग भी आम फौज के साथ होती है ताकि इन्हें सेना की ऑन-फील्ड जानकारी भी हो.

सुप्रीम कोर्ट में JAG पर क्या हुआ?

11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने JAG से जुड़े एक मामले की सुनवाई की. दो महिलाओं द्वारा दाखिल की गई याचिका में कहा गया कि 2023 की भर्ती में इन उनका सिलेक्शन नहीं हुआ था. मेरिट के अनुसार इन महिलाओं की रैंक क्रमशः 5th और 6th थी. याचिका में कहा गया कि फौज में लिंग के आधार पर बने मेरिट के कारण JAG में उनका चयन नहीं हो पाया, जबकि 3rd रैंक पर रहे पुरुष उम्मीदवार ने महिला मेरिट सूची में 10वीं रैंक पर रखी गई महिला उम्मीदवार से कम अंक प्राप्त किए थे.

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मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा कि कम अंक पाने वाले पुरुष उम्मीदवार का चयन अधिक अंक पाने वाली महिला उम्मीदवार की तुलना में ‘इनडायरेक्ट भेदभाव’ है और इसलिए इस मामले में पुरुष उम्मीदवार किसी भी राहत का हकदार नहीं है. 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भर्ती के नोटिफिकेशन में भी महिला उम्मीदवारों के लिए केवल तीन पोस्ट्स थीं, जबकि पुरुष उम्मीदवारों के लिए छह. कोर्ट ने इसे ‘साफतौर पर असमानता’ माना है. वहीं केंद्र ने अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा कि ऑपरेशनल जरूरतों और युद्ध के समय की स्थितियों को देखते हुए ये नीति बनाई गई थी.

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा 

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कार्यपालिका पुरुषों के लिए पोस्ट्स को रिजर्व नहीं कर सकती. पुरुषों के लिए छह और महिलाओं के लिए तीन सीटें मनमाना है और भर्ती की आड़ में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. लैंगिक तटस्थता और 2023 के नियमों का सही अर्थ यह है कि यूनियन (संघ) सबसे योग्य उम्मीदवारों का चयन करेगा. महिलाओं की सीटों को सीमित करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

इसके बाद जस्टिस मनमोहन ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह दोनों याचिकाकर्ताओं में से एक को JAG डिपार्टमट में नियुक्त करे. 

कोर्ट ने एयरफोर्स में फाइटर पायलट्स का जिक्र करते हुए कहा,

यदि महिलाएं रफाल उड़ा सकती हैं, तो सेना की कानूनी शाखा में उन पर लिमिट क्यों लगाई गई है?

कोर्ट ने केंद्र से कहा कि यदि ऐसी नीतियों का पालन किया गया जिनमें कोई समानता न हो तो कोई भी राष्ट्र सुरक्षित नहीं रह सकता. कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह बराबर तरीके से भर्ती करे और सभी उम्मीदवारों की एक जॉइंट मेरिट लिस्ट प्रकाशित करे, जिसमें पुरुष और महिला, दोनों उम्मीदवार शामिल हों. 

 

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