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पुलिस ने अगर अरेस्ट करने की वजह नहीं बताई, तो गिरफ्तारी गैरकानूनी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को गिरफ्तार करने का कारण नहीं बताया गया, तो यह मूल अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा. गिरफ्तार किए गए शख्स को गिरफ्तारी की वजह बताना न केवल औपचारिकता है, बल्कि अनिवार्य है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कारण न बताए जाने पर ऐसी गिरफ्तारी गैरकानूनी मानी जाएगी.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी की वजह बताना संविधान के तहत जरूरी है. (Supreme Court)

अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें पुलिस किसी को भी गिरफ्तार कर लेती है, और कारण भी नहीं बताती. शुक्रवार, 07 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी ही एक गिरफ्तारी पर बड़ा आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार करने के तुरंत बाद अगर किसी को गिरफ्तारी की वजह नहीं बताई जाती, तो ऐसी गिरफ्तारी गैरकानूनी मानी जाएगी. संविधान लोगों को यह जानने का अधिकार देता है कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया है. अगर पुलिस यह बताने में असफल होती है तो यह मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा.

शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 22 (1) के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की वजह बताना न केवल औपचारिकता है, अनिवार्य संवैधानिक जरूरत भी है. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो ऐसी गिरफ्तारी को गैरकानूनी माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस ओका और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने हरियाणा के एक केस की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. दरअसल, हरियाणा पुलिस ने एक शख्स को गिरफ्तार किया, लेकिन तय नियमों का पालन न करने पर कोर्ट ने इस गिरफ्तारी को गैरकानूनी ठहराते हुए शख्स को रिहा कर दिया. फाइनेंशियल फ्रॉड के इस मामले में विहान कुमार नामक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था. सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एडवोकेट विशाल गोसाईं ने विहान की तरफ से जिरह की थी. 

बेंच ने कहा कि आर्टिकल 22 संविधान के तीसरे पार्ट में आता है, और इसे मूल अधिकारों के तहत शामिल किया गया है. इसलिए हर गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए शख्स का मूल अधिकार है कि उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने की वजह बताई जाए.

अगर गिरफ्तार करने के बाद गिरफ्तारी के कारण की जानकारी नहीं दी जाती है, तो इसे गिरफ्तार किए गए शख्स की आजादी छीनना माना जा सकता है. अगर एक बार किसी की गिरफ्तारी गैरकानूनी साबित होती है, तो उसे कस्टडी में नहीं रखा जा सकता है.

जस्टिस सिंह ने एक अलग फैसले में सहमति जताते हुए कहा कि गिरफ्तारी का आधार बताने की संवैधानिक जरूरत के पीछे एक मकसद है. न केवल जिसकी गिरफ्तार हुई है उसे, बल्कि उसके रिश्तेदारों और दोस्तों को भी गिरफ्तार करने की वजह बताना जरूरी है. इसके अलावा ऐसे लोगों को भी जानकारी देना जरूरी है, जिन्हें सीआरपीसी के सेक्शन 50A के तहत गिरफ्तार किए गए शख्स ने नामित किया हो.

कोर्ट ने कहा कि जब गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट की यह जिम्मेदारी है कि वो यह देखें कि कहीं आर्टिकल 21 और 22 (1) का उल्लंघन तो नहीं हुआ है. कोर्ट ने पंकज बंसल वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया केस का भी हवाला दिया. इस केस में कहा गया है कि गिरफ्तारी का आधार बताने का सबसे बढ़िया तरीका लिखित रूप में है. हालांकि, लिखित रूप में गिरफ्तारी की वजह बताना जरूरी नहीं है.

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