सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले में हुए कथित धर्म परिवर्तन मामले में दर्ज की गई 5 FIR को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने इन FIR को निराधार और बिना किसी ठोस सबूत के पाया. कोर्ट ने कहा कि कानून का इस्तेमाल निर्दोष लोगों को परेशान करने के लिए नहीं करना चाहिए.
'कानून लोगों को परेशान करने का जरिया नहीं,' SC ने यूपी में दर्ज अवैध धर्मांतरण की 5 FIR रद्द कीं
Uttar Pradesh Illegal Conversion: सुप्रीम कोर्ट ने जिन FIR को खारिज किया, उनमें कुछ गड़बड़ियां पाई गईं. उदाहरण के तौर पर कुछ गवाहों के बयान एक जैसे थे, जिनमें ना केवल नामों में गलती थी, बल्कि बयान भी एक जैसे थे.


लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की सैम हिगिनबॉटम एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज यूनिवर्सिटी (SHUATS) के कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल और अन्य के खिलाफ ईसाई धर्म में कथित धर्मांतरण के लिए दर्ज FIR को खारिज कर दिया.
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम (यूपी का अवैध धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून) के तहत धार्मिक कार्यक्रमों या धर्म के नाम पर दान को अपराध नहीं माना जा सकता. इन FIR में अवैध धर्म परिवर्तन के आरोप थे, लेकिन कोर्ट ने कहा कि इन आरोपों को साबित करने के लिए ठोस सबूत नहीं थे.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने शुक्रवार, 17 अक्टूबर को यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने यह भी माना कि जो FIR तीसरे व्यक्ति ने दर्ज कराई थीं, वे कानूनी रूप से गलत थीं. 2022 में ये FIR दर्ज की गई थी. उस समय यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत केवल पीड़ित या उनके रिश्तेदार ही FIR दर्ज कर सकते थे, ना कि कोई बाहरी व्यक्ति.
FIR में पाई गईं खामियां
सुप्रीम कोर्ट ने जिन FIR को खारिज किया, उनमें कुछ गड़बड़ियां पाई गईं. उदाहरण के तौर पर कुछ गवाहों के बयान एक जैसे थे, जिनमें ना केवल नामों में गलती थी, बल्कि बयान भी एक जैसे थे. कोर्ट ने यह पाया कि गवाहों के बयान मेकैनिकली तैयार किए गए थे और उनमें कोई असलियत नजर नहीं आई.
इसके अलावा, कई FIR में आरोप था कि चर्च में धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे थे. लेकिन कोर्ट ने कहा कि धार्मिक सभा आयोजित करना या धर्म के नाम पर चैरिटी करना कोई अपराध नहीं है.
कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा,
“हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इस तरह के धार्मिक आयोजन को कानून के प्रावधानों का उल्लंघन कैसे पाया जा सकता है, जबकि धर्म परिवर्तन के लिए लुभाने या लालच देने की कोई सीधी कोशिश नहीं की गई.”
कोर्ट ने यह भी कहा कि इन FIR में जो आरोप लगाए गए थे, वे एक ही घटना पर आधारित थे और समय के साथ अलग-अलग शिकायतकर्ता आकर आरोप लगा रहे थे. कोर्ट ने कहा कि उनके बयानों में गंभीर विरोधाभास था.
कोर्ट ने कहा,
"आपराधिक कानून को निर्दोष व्यक्तियों को परेशान करने का जरिया नहीं बनाया जा सकता, जिससे अभियोजन एजेंसियों को पूरी तरह से गैरभरोसेमंद सबूतों के आधार पर अपनी मर्जी से अभियोजन शुरू करने की इजाजत मिल सके."
सुप्रीम कोर्ट ने छठी FIR 538/2023 पर कहा कि यहां भी, अवैध धर्मांतरण के आरोपों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि ये आरोप किसी पीड़ित ने नहीं लगाए थे. इसी FIR में धमकी, जबरन वसूली आदि आरोप थे.
सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों पर कहा कि इस मामले पर और विचार की जरूरत है. इसलिए, यूपी अवैध धर्मांतरण कानून में दर्ज आरोपों तक FIR रद्द कर दी गई. बाकी आरोपों के लिए मामले की अगली सुनवाई स्थगित कर दी गई.
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