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Border 2 में दिलजीत जिन निर्मलजीत सिंह सेखों का रोल कर रहे, उनका कारनामा जानते हैं?

16 दिसंबर माने विजय दिवस के दिन फिल्म Border 2 का टीज़र आया. फिल्म में परमवीर चक्र से सम्मानित फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों की बहादुरी को दिखाया गया है. फिल्म में फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का किरदार, दिलजीत दोसांझ निभा रहे हैं. लेकिन अभी बात करेंगे फ्लाइंग ऑफिसर सेखों की. 17 जुलाई 1945 में पंजाब के लुधियाना में जन्म हुआ. साल 1964 में 97th General Duty Pilots course में दाखिला लिया.

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ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों. (फोटो- AFP)

आज आपको कहानी सुनाएंगे एक 26 साल के परमवीर की. साल 1971. बांग्लादेश की आज़ादी का साल. और साल भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरी जंग का भी. वैसे जंग तो पाकिस्तान के राजनीतिक संकट के चलते हुई थी. पर पाकिस्तान की गलती की वजह से भारत को जंग में उतरना पड़ा. नतीजा हुआ कि 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुई जंग, 16 दिसंबर को खत्म हुई. पाकिस्तान को भारत के सामने सरेंडर करना पड़ा. और इस दिन को 'विजय दिवस' लिखा गया. और जन्म हुआ बांग्लादेश का. और इसके साथ एक ऐसा नाम भी नत्थी हुआ, जो भारतीय वायुसेना की 93 (तिरानबे) साल के अब तक के इतिहास में इकलौता 'परमवीर' बना. फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों.

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16 दिसंबर माने विजय दिवस के दिन फिल्म Border 2 का टीज़र आया. फिल्म में परमवीर चक्र से सम्मानित फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों की बहादुरी को दिखाया गया है. फिल्म में फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का किरदार, दिलजीत दोसांझ निभा रहे हैं. लेकिन अभी बात करेंगे फ्लाइंग ऑफिसर सेखों की. 17 जुलाई 1945 में पंजाब के लुधियाना में जन्म हुआ. साल 1964 में 97th General Duty Pilots course में दाखिला लिया.

और 4 जून, 1967 को भारतीय वायुसेना में कमीशन हुए. सर्विस नंबर - 10877 F(P) एडवांस कोर्सेज के बाद उनकी तैनाती हुई श्रीनगर एयरबेस पर. सभी बैचमेट्स को वे 'ब्रदर' कहकर बुलाते थे. स्वभाव से शर्मीले. सर्विस में आए, तो एक ही ख्वाब था - Folland Gnat फाइटर जेट को उसकी अधिकतम क्षमता तक उड़ाना. जबकि खुद बड़ी दिक्कत में थे. दिक्कत ये कि जब भी अपने ख्वाबों के फाइटर जेट में बैठते, तो उनका सिर कॉकपिट की छत से छूता. इतनी तो हाइट थी फ्लाइंग ऑफिसर सेखों की. लेकिन 14 दिसंबर 1971 को इसी Gnat में बैठकर 4 पाकिस्तानी जेट्स का शिकार किया, और फिर देश के नाम शहादत दी.

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उनकी इस आखिरी डॉगफाइट की कहानी सुनने के लिए, आपको घटनाक्रम थोड़ा समझना होगा. इसके लिए चलते हैं दिसंबर 1970 में. दिसंबर 1970 में पाकिस्तान की संसद के चुनाव हुए थे. आजादी के 23 साल बाद पहली बार पाकिस्तान में संसद के चुनाव कराए गए थे. उस समय वहां की संसद में 300 सीटें हुआ करती थीं. पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) में 138 सीटें, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में 162 सीटें थीं. और संख्या से साफ है. जिस पार्टी को 150 सीटें मिल गईं, उसके हाथ में बहुमत. तो साल 1970 के इस चुनाव में अवामी लीग ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया. अवामी लीग पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से यानी बंगाली बहुल इलाकों में प्रभाव रखती थी. शेख मुजीबुर्रहमान इस पार्टी के नेता थे. उनके अवामी लीग को कुल 160 सीटें मिली थीं. और ये सभी सीटें पूर्वी पाकिस्तान में ही थीं.

लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने अवामी लीग को सरकार बनाने का न्योता नही दिया. याह्या खान अपने लगाए मार्शल लॉ को जारी रखना चाहते थे. अवामी लीग के नेता मुजीबुर्रहमान ने सरकार गठन की अपनी दावेदारी ठुकराए जाने के बाद आंदोलन शुरू कर दिया. उन्हें जेल में डाल दिया गया.

लेकिन ये पाकिस्तान की सबसे बड़ी भूल थी. क्यों? मुजीबुर्रहमान को जेल में डालने के बाद पूर्वी पाकिस्तान में जगह-जगह आंदोलन शुरू हो गए. और एक नए सवाल ने जन्म लिया. बांग्लाभाषियों की अस्मिता का.

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पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवाद उभर रहा था. इस राष्ट्रवाद को एक और घटनाक्रम ने हवा दी थी. दरअसल साल 1970 में ही एक चक्रवाती तूफ़ान ‘भोला’ आया था. इस तूफ़ान ने पूर्वी पाकिस्तान में हज़ारों लोगों की जान ले ली थी. और पाक सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को तब लगा कि ये उनके नागरिक अधिकारों का हनन है. आज़ादी और बँटवारे के समय से ही वो शिकायत करते रहते थे कि पश्चिमी पाकिस्तान में बैठी हुई सरकार धर्म, भाषा और संस्कृति के आधार पर पूर्वी पाकिस्तान की अवाम के साथ भेदभाव कर रही. पूर्वी पाकिस्तान के लोग ये बैठकर देखते रहते थे कि पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को संसाधन सबसे पहले मुहैया कराए जा रहे हैं. साल 1970 में तूफ़ान के बाद इस्लामाबाद में बैठी सरकार ने कुछ काम नहीं किया, और मुजीबुर्रहमान को जेल में डाल दिया तो पूर्वी पाकिस्तान में रोष और बढ़ गया. विरोध शुरू हुआ, जो सड़कों और सरकारी संस्थानों तक चला आया.
देखते-देखते बंगाली लोगों की एक सशत्र मिलिशिया खड़ी हो गई. नाम - मुक्ति वाहिनी. माँग - बांग्लादेश की आज़ादी.

जनरल याह्या खान टेंशन में आ गए. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में एक ऑपरेशन को हरी झंडी दी. Operation Searchlight. इसके तहत पूर्वी पाकिस्तान वाले हिस्से में बांग्लाभाषियों के विद्रोह को ख़त्म किया जाना था. 25 मार्च 1971 को इस ऑपरेशन की शुरुआत हुई. जनरल याह्या ने इस ऑपरेशन की आड़ में क़त्ल-ए-आम शुरू कर दिया. पूरे देशभर में बांग्ला समुदाय के लोगों की हत्या की गई.पाकिस्तानी फ़ौज के लोग गाँव-गाँव घूमते. वहाँ रहने वाले बंगाली और हिंदू परिवारों की निशानदेही करते. फिर उस गाँव में छापा मारकर उन परिवारों की महिलाओं का सामूहिक बलात्कार शुरू किया जाता, और फिर पूरे परिवार की हत्या कर दी जाती. एक अनुमान के मुताबिक़ 8 महीने और 20 दिन तक चले इस हत्याकांड में पाकिस्तानी आर्मी ने 30 लाख के आसपास लोगों का क़त्ल किया.

लेकिन ये सब करके भी याह्या ख़ान की चिंता बनी ही हुई थी. वो अमरीका को चिट्ठी लिख रहे थे कि भारत की इंदिरा गांधी सरकार, मुक्ति वाहिनी के साथ खड़ी है. मदद कीजिए. ये बात कुछ हद तक सही भी थी. कहा जाता है कि भारत सरकार के निर्देश पर R&AW ने मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों को ट्रेन किया और हथियार दिये थे. इसी ख़ब्त में याह्या ख़ान ने इंडिया पर अटैक करने का प्लान बनाया.अनुशा नंदकुमार और संदीप साकेत की किताब ‘The War That Made R&AW’ के मुताबिक, R&AW को पहले ही पता चल गया था कि पाकिस्तान हमला करेगा. कराची से आए एक कोडेड संदेश को पढ़कर R&AW चीफ RN काओ समझ गए कि 1 दिसंबर को एयर स्ट्राइक होगी. भारत अलर्ट पर आ गया, लेकिन हमला नहीं हुआ. असल हमला 3 दिसंबर की शाम 5:40 बजे हुआ.

तब पाकिस्तान की एयरफ़ोर्स ने ऑपरेशन चंगेज़ ख़ान शुरू किया. प्लान था कि भारत के हवाई बेड़े को तबाह कर दिया जाए. ताकि जब पूर्वी पाकिस्तान में फौज अपना offensive शुरू करे, तो भारत के पास काउंटर करने के लिए हवाई बेड़ा न मौजूद रहे. और भारत का ध्यान पश्चिमी सीमा पर बना रहे.टारगेट चुने गए - अमृतसर, अंबाला, अवंतिपुर, आगरा, बीकानेर, हलवाड़ा, जोधपुर, जैसलमेर, पठानकोट, भुज, उत्तरलाई और श्रीनगर में मौजूद भारतीय एयरफ़ोर्स के बेस. पाकिस्तानी जेट्स ने बॉम्ब गिराने शुरू किए.

इंडिया का इंटेलिजेंस पाकिस्तान की तरह ढीला नहीं था. गेम स्ट्रॉंग था. लिहाजा, पहले ही भारत ने अपने एयरबेसेज़ को बचाने का प्लान तैयार कर रखा था.पाकिस्तान का प्लान फेल हुआ. इसी शाम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के नाम संदेश जारी किया, “जो लड़ाई बांग्लादेश में थी, वह अब भारत पर भी आ गई है.” वो कह रही थीं कि ये जंग का एलान है. कुछ ही घंटों में खबर आई कि भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के ठिकानों पर हमले शुरू कर दिये. 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग शुरू हो चुकी थी.

4 दिसंबर को हमारी एयरफोर्स ने सैकड़ों sorties उड़ाईं.इसी दिन पाकिस्तान ने राजस्थान के लोंगेवाला पर टैंकों से हमला किया. ये एक हवा में किया गया अटैक था. क्योंकि पाकिस्तानी सेना का प्लान जैसलमेर पहुँचने तक का था.

लेकिन लॉंगेवला पोस्ट पर पंजाब रेजीमेंट की 23वें बटालियन की A कंपनी मौजूद थी. कंपनी को लीड कर रहे थे मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी. उनके पास थे 120 फौजी. और दुश्मन के पास टैंक का बेड़ा मौजूद था. सेना ने मेजर चांदपुरी को दो ऑप्शन दिए. पहला - या तो reinforcement आने तक वो पोस्ट सम्हालें, दूसरा - या तो वो पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाएं. मेजर चांदपुरी ने पहला रास्ता चुना. और 120 जवानों, और एयरफोर्स की HF-24 मारुत और Hawker Hunter की फ्लीट को पाकिस्तान की पूरी टैंक बटालियन को रेत में लिटा दिया. अगर आपको ध्यान हो तो यही कहानी Border मूवी के पहले हिस्से में दिखाई गई है. और मेजर चाँदपुरी का किरदार खुद सनी देओल ने निभाया है.

तो जब भारत ने पाक के टैंक्स को खत्म किया, तो अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा. अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने युद्धपोत भेजे, लेकिन सोवियत संघ पहले ही बंगाल की खाड़ी में पहुंच चुका था. पूर्वी पाकिस्तान पूरी तरह कट चुका था. 8 दिसंबर को जनरल सैम मानेकशॉ ने पाकिस्तान क सरेंडर की चेतावनी दी. पाकिस्तान ने इग्नोर किया.

फिर 14 दिसंबर को ढाका में पाकिस्तानी हाई कमांड की मीटिंग होनी थी. भारतीय वायुसेना ने वहीं रॉकेट दाग दिए. दरअसल, 14 दिसंबर को 12:55 पर ढाका में हाई कमांड की मीटिंग पर इंटेलिजेंस इनपुट आ चुका था. भारतीय वायुसेना के MiG-21 और Hunters ने वहीं रॉकेट दाग दिए. ईस्ट पाकिस्तान की सरकार और कैबिनेट ने तुरंत इस्तीफा दे दिया.

दूसरी ओर पश्चिमी मोर्चे पर, भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सेना की हर तरह की आवाजाही पर लगाम लगा दी थी. भारतीय फाइटर जेट्स दुश्मन के ठिकानों को ढूंढ-ढूंढ कर तबाह करने के लिए 'ऑफेंसिव स्वीप' (Offensive Sweeps) पर थे. वहीं, HF-24 मारुत, कैनबरा और An-12 जैसे विमानों ने भारी बमबारी करके दुश्मन की सड़कों, रेल लाइनों और ज़मीनी ठिकानों को मटियामेट कर दिया था.

और इसी दिन यानी 14 दिसंबर को 26 साल के युवा फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों शहीद हुए थे. 14 दिसंबर की सुबह, पाकिस्तानी वायुसेना के 6 F-86 सैबर' (Sabre) जेट्स ने श्रीनगर के एयरबेस पर हमला कर दिया. ये वो जहाज थे जो अमरीका से खरीदे गए थे. इसी बेस पर अकेले तैनात थे फ्लाइंग ऑफिसर, निर्मलजीत सिंह सेखों. वो 'स्क्वाड्रन नंबर 18 -The Flying Bullets का हिस्सा थे और Folland Gnat फाइटर प्लेन पर रेडिनेस ड्यूटी पर थे. ये वो एयरक्राफ्ट था, जो हमें ब्रिटिश कंपनी folland एयरक्राफ्ट से खरीदा था. जैसे ही पहले पाकिस्तानी सेबर जेट ने बम गिराए, फ्लाइंग ऑफिसर सेखों और फ्लाइट लेफ्टिनेंट जगजीत सिंह घुमन अपने-अपने Gnat जेट्स की ओर भागे. सबसे पहले फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुमन ने उड़ान भरी, फिर फ्लाइंग ऑफिसर सेखों ने.
कुछ तकनीकी खामी के बाद फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुमन को डायवर्ट होना पड़ा. आसमान में फ्लाइंग ऑफिसर सेखों अकेले बचे. सेखों ने अकेले इंगेज किया.

उन्होंने सेबर एयरक्राफ्ट के पहले पेयर को निशाना बनाया. दोनों एयरक्राफ्ट बॉम्ब गिराने के बाद फिर से रीग्रुप हो रहे थे. सेखों ने सबसे पहले एक एयरक्राफ्ट को हवा में खाक किया, फिर दूसरे को हिट किया. दूसरे सेबर में आग लग गई. वो पीर पंजाल की रेंज को क्रॉस करते हुए रजौरी की ओर भागा.अब फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों के निशाने पर बाकी बचे 4 जेट्स भी थे. एयरबेस से धूल और धुएं के बादल उड़ रहे थे. ATC पर बैठे हुए स्क्वाड्रन लीडर पठानिया लगातार आदेश दे रहे थे. सेखों ने एक और सेबर जेट को निशाने पर लिया. रेडियो पर आवाज गूंजी, "मैं इनको छोड़ूँगा नहीं." श्रीनगर के आसमान में डॉगफाइट चल रही थी.

सेखों ने एक और जेट का शिकार कर लिया. लेकिन तभी एक अन्य जेट ने सेखों के विमान पर गोलियां बरसा दीं. लेकिन इसके बाद भी सेखों एक और जेट का शिकार कर चुके थे. कुल 4 जेट्स. लेकिन सेखों के विमान को भारी नुकसान हो चुका था. उन्होंने ATC को संदेश पास कर दिया, "I am hit".खबरें बताती हैं कि ATC के आदेशों का पालन करते हुए वो धीरे-धीरे बेस की ओर लौटने लगे. उन्होंने प्लेन को लेवल किया हुआ था. लेकिन अचानक से उनका विमान ऊंचाई खोने लगा. वो नाक की सीध में नीचे आने लागा. फ्लाइंग ऑफिसर सेखों ने इजेक्ट करने की कोशिश की. उनके जेट की कैनोपी तो खुल गई, लेकिन वो इजेक्ट नहीं कर पाए. और इस तरह फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का विमान क्रैश हो गया. उनके प्लेन का मलबा श्रीनगर में ही मिला, लेकिन अवशेष नहीं मिल सके.

उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. निर्मलजीत सिंह सेखों, भारतीय वायुसेना के इतिहास में अब तक के एकमात्र ऑफिसर हैं जिन्हें वीरता का यह सर्वोच्च सम्मान मिला है.

उनके सम्मान में साल 1985 में बने एक समुद्री टैंकर का नाम भी 'फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों, PVC' रखा गया था. फ्लाइंग ऑफिसर सेखों को उनकी बहादुरी के लिए आज भी याद किया जाता है और पंजाब के कई शहरों में उनकी मूर्तियाँ लगाई गई हैं. लुधियाना की जिला अदालत में ध्वज स्तंभ के पास भी उनकी एक मूर्ति लगाई गई है. इस स्मारक की खास बात यह है कि यहाँ एक पुराना 'फोलैंड नैट' (Folland Gnat) लड़ाकू विमान भी रखा गया है, जो गेट पर एक रक्षक की तरह तैनात दिखता है. और इंडियन एयरफोर्स हर साल फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों की याद में एक मैराथन का आयोजन करता है.

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