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पत्नी की हत्या के दोषी कमांडो ने 'ऑपरेशन सिंदूर' का सहारा लिया, सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगा दी

मामला 20 साल पुराना है. सेना के ब्लैक कैट कमांडो बलजिंदर सिंह पर आरोप लगा था कि उन्होंने ‘दहेज के लालच’ में पत्नी की ‘हत्या’ कर दी थी. निचली अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा था. इससे छूट पाने के लिए वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

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सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर की सरेंडर में छूट देने की याचिका.

राष्ट्र की सेवा और सैन्य अभियानों का हिस्सा होने का मतलब अपराध करने का लाइसेंस नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक दोषी की याचिका पर फैसला देते हुए इसी तरह का संदेश दिया है. सेना का ये जवान अपनी पत्नी की हत्या का दोषी ठहराया जा चुका है. लेकिन फिलहाल स्पेशल पिटीशन लीव (SPL) पर है. सजा से राहत पाने के लिए उसने कोर्ट में दलील दी कि वो राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो है और ऑपरेशन सिंदूर का भी हिस्सा रहा है. लेकिन शीर्ष अदालत ने उसकी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया.

मामला 20 साल पुराना है. सेना के ब्लैक कैट कमांडो बलजिंदर सिंह पर आरोप लगा था कि उन्होंने ‘दहेज के लालच’ में पत्नी की ‘हत्या’ कर दी थी. निचली अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा था. इससे छूट पाने के लिए वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

लाइव लॉ में छपी खबर के मुताबिक, मंगलवार 24 जून को जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने बलजिंदर के केस की सुनवाई की. जब बेंच ने बलजिंदर को राहत देने से इनकार किया तो उनकी तरफ से वकील ने कहा, “मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि मैं ऑपरेशन सिंदूर का हिस्सा था. साथ ही पिछले 20 सालों से मैं राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो के रूप में तैनात हूं.”

इस दलील पर जस्टिस उज्जल भुइयां ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “इससे आपको घर में हिंसा करने की छूट नहीं मिल जाती. बल्कि यह दर्शाता है कि आप शारीरिक रूप से कितने सक्षम हैं और अकेले ही अपनी पत्नी की गला घोटकर हत्या कर सकते थे."

उन्होंने आगे कहा, "यह छूट देने का मामला नहीं है. यह एक भयावह अपराध है, आपने अपनी पत्नी की बेरहमी से हत्या की है. छूट केवल 3 महीने, 6 महीने, 1 साल के मामलों में दी जाती है." 

वहीं जस्टिस विनोद चंद्रन ने भी जोड़ा, “आपकी अपील हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी, अब आप केवल स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) पर हैं.”

कोर्ट ने तमाम दलीलों को सुनकर कहा कि वो स्पेशल लीव पिटीशन पर नोटिस तो जारी कर सकता है, लेकिन सरेंडर से छूट नहीं दे सकता.

क्या है मामला?

जुलाई 2004 में, अमृतसर की एक ट्रायल कोर्ट ने बलजिंदर सिंह को IPC की धारा 304B (दहेज हत्या) के तहत पत्नी की हत्या का दोषी माना था. शादी के दो साल के भीतर ही उन्होंने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी. तब महिला के घरवालों ने बलजिंदर के परिवार पर उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करने के आरोप लगाये थे.

महिला का भाई और उसकी पत्नी इस मामले में चश्मदीद गवाह थे. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि 18 जुलाई 2002 की सुबह करीब 9 बजे वे अपनी बहन के घर पहुंचे थे. उन्होंने देखा कि उसके पति (बलजिंदर सिंह) और ससुर ने उसका चुन्नी से गला घोट दिया, जबकि सास और ननद ने उसके हाथ-पैर पकड़े हुए थे.

जब महिला के भाई-भाभी ने शोर मचाया तो सभी आरोपी मौके से फरार हो गए. महिला की मौके पर ही मौत हो गई. सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट ने बलजिंदर को दोषी ठहराया, लेकिन बाकी आरोपियों को रिहा कर दिया था.

बलजिंदर को 10 साल के कठोर कारावास की सजा हुई. लेकिन तीन साल की सजा काटने के बाद उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की. हाई कोर्ट ने उनकी सजा पर अंतरिम रोक लगा दी. इस तरह बलजिंदर बरी हो गए, हालांकि उनकी याचिका पेंडिंग रही. लेकिन मई 2025 में हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और सजा को बरकरार रखा. इसी सजा को रद्द करने के लिए बलजिंदर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे.

अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पिटीशन को स्वीकार करते हुए सरेंडर करने के लिए 2 हफ्ते की मोहलत दी है.

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