साल था 1911. दिल्ली में गजब की चहल-पहल थी. समुंदर के रास्ते पानी वाले जहाज पर सवार होकर इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम ताज पहनने के बाद पहली बार भारत आ रहे थे. शिप से बंबई में उतरने के बाद ट्रेन में सवार होकर राजा और रानी मैरी 7 दिसंबर 1911 को दिल्ली पहुंचे. यहां दिल्ली दरबार लगना था. यह पहली बार नहीं था जब यमुना किनारे वाले इस शहर में यह दरबार लगा हो. लेकिन इस बार जो दरबार लग रहा था वो दो वजहों से खास था. पहला तो ये कि पहली बार खुद राजा इस दरबार में मौजूद थे. दूसरा था हिंदुस्तान की तारीख का एक सबसे बड़ा ऐलान, जिसने इस देश की सत्ता का केंद्र ही बदल दिया. भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा इसी दरबार में की गई. कलकत्ता को उस समय व्यापार का केंद्र माना जाता था, जबकि दिल्ली शक्ति और गौरव का प्रतीक थी.
दिल्ली के अलावा इन शहरों में भी हैं राष्ट्रपति के घर, शिमला वाला गजब खूबसूरत है
भारत के राष्ट्रपति का आवास दिल्ली में है, ये तो सभी जानते हैं. लेकिन क्या आपको पता है, दिल्ली के अलावा देश के तीन अन्य शहरों में भी उनके आवास हैं?
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1911 के दिल्ली दरबार के बाद भारत की राजधानी तो दिल्ली आ गई. अब चिंता सिर्फ इस बात की थी कि ब्रिटिश भारत के सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी यानी वायसराय कहां रहेंगे? वो ब्रिटिश क्राउन के प्रतिनिधि थे. राजा के नाम पर भारत पर शासन वही करते थे. ऐसे शासक के लिए जगह भी तो शाही चाहिए. ऐसे में लाल किले वाली दिल्ली में ब्रिटिश सरकार के लिए एक शाही निवास (राजभवन) की तलाश जरूरी हो गई. सिर्फ निवास नहीं, भारत के हृदयस्थल पर बसे इस पुराने बूढ़े शहर में एक ‘नए शहर’ को बसाने की कवायद शुरू हो गई.

ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियन्स को भारत की नई राजधानी की रूपरेखा तैयार करने का काम सौंपा गया. 4 साल में काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन पूरा हुआ 17 साल में. अप्रैल 1929 में वायसराय इरविन ने इसका अंतिम पत्थर रखा और वे ही इस नए बने वायसराय हाउस के पहले निवासी बने. इस निर्माण में करीब 23 हजार मजदूरों ने काम किया था और इसकी कुल लागत लगभग 1 करोड़ 40 लाख (14 मिलियन) रुपये आई थी.
आज जो भव्य राष्ट्रपति भवन हम देखते हैं, वो उसी लुटियन्स की कलाकारी है. दिल्ली का यह राष्ट्रपति भवन सिर्फ एक सरकारी इमारत नहीं, बल्कि स्थापत्य कला और भारतीय आत्मा का संगम है. 4 मंजिल ऊंचा यह भवन अपने आकार में किसी शहर से कम नहीं है. इसके अंदर करीब 340 कमरे हैं. कैंपस इतना बड़ा है कि अगर कोई पैदल चलकर इसके हर कमरे, गलियारे, बरामदे, सीढ़ियों और आंगनों को देखना चाहे तो उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे. यहां रसोईघर, पेंट्री, प्रिंटिंग प्रेस और थिएटर तक हैं. यानी राष्ट्रपति का घर अपने आप में एक चलता-फिरता संसार है.
पूरा राष्ट्रपति भवन करीब दो लाख वर्ग फुट (लगभग 18,580 वर्ग मीटर) क्षेत्र में फैला है. इसके निर्माण में 70 करोड़ ईंटें और 30 लाख घन फीट पत्थर लगे हैं. उस समय, यानी 1920 के दशक में जब यह बन रहा था तब रोजाना 23 हजार मजदूर यहां काम करते थे. इनमें 3 हजार तो सिर्फ पत्थर तराशने वाले कारीगर थे.
इतिहास और राष्ट्रीय भावना के ईंट-गारे से खड़ा यह भवन देश के गौरव और स्वाभिमान का भी प्रतीक है. वायसराय के जमाने में तो आम आदमी का यहां पहुंचना मुश्किल था, लेकिन लोकतांत्रिक भारत में आम जनता के लिए यह अहम दर्शनीय स्थल बन गया है. तभी तो साल 2024 में सिर्फ साल भर में साढ़े 20 लाख से ज्यादा लोग राष्ट्रपति भवन देखने आए.

पहले तो सिर्फ दिल्ली का राष्ट्रपति भवन ही जनता की पहुंच में होता था, लेकिन द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद शिमला और देहरादून के राष्ट्रपति आवास भी जनता के लिए खोल दिए गए हैं. यहां भी सैलानियों का जमावड़ा लगने लगा है.
एक मिनट, शिमला और देहरादून में राष्ट्रपति आवास? राष्ट्रपति तो दिल्ली में रहती हैं. उनका भवन भी तो दिल्ली में है. फिर ये शिमला और देहरादून में कैसा राष्ट्रपति आवास?
चलिए आपकी शंका का शमन करते हैं. शिमला और देहरादून में ही नहीं. देश के दक्षिण में भी राष्ट्रपति का एक आधिकारिक घर है. हैदराबाद में. यानी दिल्ली वाले भवन को लेकर भारत के राष्ट्रपति के पास देशभर में 4 घर हैं. इनमें से एक राष्ट्रपति का गर्मियों वाला घर है और एक दक्षिणी हिस्से की उनकी ‘राजधानी’. दिल्ली वाले के बारे में तो जान लिया. बाकी सबके बारे में भी विस्तार से जानना है तो लेख में आगे बढ़ते रहिएः
सबसे पहले शिमला चलते हैंहिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के मशोबरा में भी राष्ट्रपति का एक घर है, जिसे आमतौर पर ‘राष्ट्रपति निवास’ के नाम से जाना जाता है. पहले इसे ‘द रिट्रीट’ कहा जाता था. इसका इतिहास 19वीं शताब्दी का है, जब ब्रिटिश प्रशासन ने इसे कोटी के राजा से पट्टे पर लेकर वायसराय के लिए ‘विश्राम-स्थल’ की तरह बनवाया था. ये जगह शिमला से लगभग 13 किलोमीटर दूर स्थित है. शिमला को 1864 में ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन (गर्मी के मौसम वाली) राजधानी घोषित किया गया था.
ओक, देवदार, चीड़ और दुर्लभ कॉपर बर्च के पेड़ों से भरे इस एस्टेट के विशाल जंगल, आराम से सैर करने और शांत चिंतन के लिए गजब की जगह हैं. इसी शांतिपूर्ण वातावरण में ब्रिटिश प्रशासन के कुछ सबसे महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते थे. आजादी मिलने के बाद 1965 में राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे राष्ट्रपति का आधिकारिक ग्रीष्मकालीन रिट्रीट घोषित कर दिया.

यह क्षेत्र तकरीबन 50 प्रकार की तितलियों और कई दुर्लभ प्रजातियों का घर है. राष्ट्रपति निवास के मुख्य भवन, सुंदर लॉन, कल्याणी हेलीपैड और सेब के बाग यहां के प्रमुख आकर्षण हैं. इसके लॉन में ट्यूलिप और गुलाब समेत 40 से ज्यादा किस्मों के फूलों की क्यारियां लगी हैं. जबकि हेलीपैड से हिमालय की बर्फीली चोटियों और आसपास की वादियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है. सेब के बागों से होकर जाने वाली पगडंडियां प्रकृति प्रेमियों को अलौकिक आनंद देती हैं.
देहरादून आइएउत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित राष्ट्रपति के घर को ‘राष्ट्रपति निकेतन’ कहते हैं. इसका इतिहास 186 साल पुराना है. 1838 में इसे ब्रिटिश गवर्नर जनरल के अंगरक्षक दल के घोड़ों के लिए एक ग्रीष्मकालीन शिविर के रूप में बनाया गया था. इस परिसर का सेंट्रल बंगला साल 1920 में यूनिट के कमांडेंट के लिए बनाया गया था. बाद में इसे राष्ट्रपति के निवास के रूप में डेवलप कर दिया गया. यहां भारत के कई राष्ट्रपति आकर ठहरे हैं.

यहां लिली तालाब, रॉकरी तालाब, रोज गार्डन और पेर्गोला देखने वाली शानदार जगहें हैं. अपने 100 सालों से ज्यादा के इतिहास में जून 2024 में यह पहली बार आम जनता के लिए खोला गया है. लंबे समय तक यहां के शांत बगीचे, पुराने अस्तबल और जंगलों के रास्ते आम जनता के लिए बंद रहे, लेकिन अब राष्ट्रपति निकेतन राष्ट्रपति तपोवन और राष्ट्रपति उद्यान के रूप में जनता के लिए खोल दिया गया है. राष्ट्रपति निकेतन 21 एकड़ में फैला है. यहां 200 सीटों वाला एक एम्फीथिएटर है. भवन की दीवारों पर चुनिंदा ऐतिहासिक तस्वीरें लगी हैं, जो भारत के इतिहास और राष्ट्रपति पद के बदलते स्वरूप को दर्शाती हैं. कमरों को उत्तराखंड की पारंपरिक कला जैसे- पहाड़ी मिनिएचर पेंटिंग, ऐपन डिजाइन और स्थानीय हस्तशिल्प से सजाया गया है.
सुदूर दक्षिण के हैदराबाद में है राष्ट्रपति निलयमतेलंगाना की राजधानी हैदराबाद शहर में भी भारत के राष्ट्रपति का एक आवास है, जिसे ‘राष्ट्रपति निलयम’ कहते हैं. तकरीबन 92 एकड़ में फैली यह इमारत 1850 में निजाम नजीर-उद-दौला ने बनवाई थी. यह पहले निजाम की सेना के सेनापति (Chief military officer) का घर थी. लेकिन जब ब्रिटिशों ने निजाम के साथ समझौता कर सिकंदराबाद में कैंटोनमेंट बनाया तो यह बड़ी सी इमारत हैदराबाद के ब्रिटिश रेजिडेंट का घर बन गई और इसे 'रेजिडेंसी' कहा जाने लगा.

आजादी के बाद साल 1948 में हैदराबाद के भारत में विलय के बाद सिकंदराबाद कैंटोनमेंट भारतीय सेना को सौंपा गया और यह इमारत राष्ट्रपति निलयम कहलाने लगी. यह राष्ट्रपति का दक्षिणी निवास है, जिसकी मुख्य इमारत में 16 सुइट्स हैं. इनमें राष्ट्रपति, उनके परिवार और अधिकारियों के ठहरने की व्यवस्था होती है. इसके अलावा यहां दो डाइनिंग हॉल, एक सिनेमा हॉल, दरबार हॉल, मॉर्निंग रूम और स्टडी रूम हैं. मुख्य रसोई एक अलग इमारत में है, जिसे भूमिगत सुरंग के जरिए पेंट्री से जोड़ा गया है. चारों ओर फैले सुंदर बगीचे इस परिसर की शोभा बढ़ाते हैं.
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