सीधा आए एकनाथ शिंदे. और ऐसा टिकट बंटवारा कर दिया कि नेपोटिज्म के सारे रिकॉर्ड पानी भरने लगे. राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे पर उंगलियां उठाते-उठाते अचानक खुद का हाथ अपने ही घरवालों की तरफ घूम गया. बदलापुर में चुनाव तो हो रहा है, मगर मुकाबला लगता है कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं और एक फैमिली के बीच है.
बदलापुर में एक ही फैमिली के 6 लोगों को टिकट, एकनाथ शिंदे के इस कदम ने परिवारवाद पर नई बहस छेड़ दी
49 सीटों वाली नगर परिषद. और एक ही परिवार को छह टिकट. मतलब Eknath Shinde साहिब की पार्टी के वामन म्हात्रे खुद भी खड़े. पत्नी भी. बेटा भी. भाई भी. भाभी भी. भतीजा भी. परिवार पूरा मंच पर.


बात महाराष्ट्र की. जहां शिंदे गुट की शिवसेना ने टिकट बांटे तो देश देखता रह गया. विपक्ष को तो मौका मिलना ही था. पर चौंकाने वाली बात ये कि अब तो बीजेपी भी कह रही है, भाई ये क्या कर दिया.
म्हात्रे परिवार: टिकट भी अपने और ताल भी अपना49 सीटों वाली नगर परिषद. और एक ही परिवार को छह टिकट. मतलब वामन म्हात्रे साहब खुद भी खड़े. पत्नी भी. बेटा भी. भाई भी. भाभी भी. भतीजा भी. परिवार पूरा मंच पर. नगर परिषद या पारिवारिक सम्मेलन. फैसला जनता करे.
स्थानीय नेताओं का चेहरा देखिए. मुस्कान गायब और सवाल बढ़ते हुए. कार्यकर्ताओं ने सोचा था जनता के बीच जाएंगे. लेकिन नेताजी बोले. पहले घर की लाइन क्लियर कर लेते हैं.
बीजेपी की भौहें तनींबीजेपी बोली. शिंदे सेना में योग्य उम्मीदवारों की इतनी कमी कैसे. आपस में असंतोष भी बढ़ रहा है. अंदर ही अंदर लोग पूछ रहे हैं. टिकट के लिए मेहनत करनी चाहिए या खून का रिश्ता काफी है.
पुराना इतिहास भी मजेदार2015 में भी चार सदस्य जीत चुके थे इस परिवार से. तब किसी ने शोर नहीं मचाया. लेकिन इस बार तो हद ही हो गई. आधा घर परिषद में भेजने की तैयारी.
शिंदे सेना ने सोचा. जब शुरू किया है तो पूरा करो. इसलिए एक और परिवार. प्रवीण राउत एंड कंपनी. खुद के साथ पत्नी और भाभी भी मैदान में. पार्टी कार्यकर्ता बोले. हमारी भी कोई भाभी हो तो लाएं.
और दूसरों की तरफ भी नजर डालिएबीजेपी में घोरपड़े परिवार भी खेल में. पति चुनाव लड़ रहे हैं. पत्नी अध्यक्ष पद की दावेदार. उधर उद्धव गुट में पलांडे दंपती एक ही वार्ड में दो अलग पैनल. घर में ही प्रतिद्वंद्विता. अलग-अलग बैनर. एक ही खाना.
लोग पूछ रहे हैं चुनाव होगा या परिवारों का टैलेंट शोनेता मंच से भाषण देते हैं कि परिवारवाद ने देश को पीछे किया. और पोस्टर लगाते लगाते भूल जाते हैं कि जिस कार में बैठकर भाषण देने आए हैं. उसमें ड्राइवर, PA और खाना बनाने वाली आंटी तक सब घर से भेजी लिस्ट में शामिल हैं.
बदलापुर की जनता बस यह पूछना चाहती है. टिकट मांगे तो बोला गया. मेहनत करो. अब दिख रहा है मेहनत सिर्फ एक ही चीज की चलती है. खून के रिश्ते की.
बाकी पार्टी की लाइन वही पुरानी. परिवारवाद का विरोध करो. लेकिन पहले घर की बारी आए तो हर रिश्तेदार को नेता बनाओ.
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