महाराष्ट्र सरकार ने रविवार, 29 जून को तीन-भाषा पॉलिसी (Three Language Policy) के संशोधित सरकारी आदेश (GR) को वापस ले लिया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पॉलिसी को फिर से लागू करने के लिए एक नई समिति के गठन का एलान किया है. CM फडणवीस ने बताया कि यह फैसला राज्य सरकार की कैबिनेट बैठक में लिया गया.
महाराष्ट्र सरकार ने तीन-भाषा पॉलिसी वापस ली, उद्धव-राज ठाकरे करने वाले थे प्रदर्शन
CM Devendra Fadnavis ने महाराष्ट्र में तीन-भाषा की नीति से जुड़े आदेशों को रद्द कर दिया है. शिवसेना (उद्धव गुट) के Uddhav Thackeray और मनसे प्रमुख Raj Thackeray तीन-भाषा के विरोध में 5 जुलाई को एक संयुक्त रैली करने वाले थे.

दरअसल, बीते काफी समय से महाराष्ट्र में तीन-भाषा की नीति को लेकर विवाद चल रहा था. पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के राज ठाकरे इस मुद्दे को लेकर काफी मुखर थे. 5 जुलाई को दोनों ठाकरे बंधु एक ही मंच पर तीन-भाषा पॉलिसी के खिलाफ संयुक्त रैली करने वाले थे.
हालांकि, उद्धव और राज ठाकरे की रैली से पहले ही महाराष्ट्र सरकार ने तीन-भाषा पॉलिसी को लागू करने से हाथ खींच लिए. इंडिया टुडे से जुड़े मुस्तफा शेख की रिपोर्ट के मुताबिक, मीडिया से बात करते हुए CM देवेंद्र फडणवीस ने कहा,
"हमने निर्णय लिया है कि हम लोग डॉ. नरेंद्र जाधव... इनकी कमेटी तैयार कर रहे हैं. ये कमेटी इसके ऊपर जो माशेलकर कमेटी की रिपोर्ट है. अलग-अलग लोगों का जो कहना है. उसके ऊपर निर्णय लेगी. उसके बाद हम त्रि-भाषा सूत्र को उसके अनुसार लागू करेंगे. तब तक जो दो निर्णय हमने लिए थे, उनको हमने खारिज किया है."
उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
"मुख्यमंत्री मराठी भाषा के विरोधी क्यों हैं? मुख्यमंत्री मराठी भाषा के विरोधी हैं, ये मेरा आरोप है. इतनी जोर-जबरदस्ती करने की आवश्यकता क्यों है? बाकी के विषयों पर बात करो ना. आप मराठी के पीछे क्यों पड़े हो? मराठी के लिए आपके मन में इतना जहर क्यों है? महाराष्ट्र के जो... शत्रु कहना थोड़ा शायद ज्यादा होगा, लेकिन उनके ये गुलाम हैं क्या? मराठी मानुष इकट्ठा आ रहा था, इसलिए इन्होंने आज का ये निर्णय लिया. कार्यक्रम जरूर होगा. 5 तारीख को सब इकट्ठा हों."
तीन-भाषा पॉलिसी को रद्द किए जाने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर राज ठाकरे ने भी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि इसे देर से लिया गया फैसला नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भाषा का थोपा जाना सिर्फ मराठी लोगों के दबाव के कारण वापस लिया गया है. उन्होंने सवाल किया कि सरकार हिंदी भाषा को लेकर इतनी अड़ियल क्यों थी और इसके लिए सरकार पर कौन दबाव बना रहा था, यह राज बना हुआ है.
राज ठाकरे ने नई कमेटी पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा,
“एक बात और... सरकार ने फिर से एक नई कमेटी का गठन किया है. मैं साफ शब्दों में कह रहा हूं कि चाहे कमेटी की रिपोर्ट आए या ना आए, लेकिन ऐसी बातें फिर से बर्दाश्त नहीं की जाएंगी, मतलब नहीं की जाएंगी! सरकार को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए! हम मान रहे हैं कि यह फैसला हमेशा के लिए रद्द कर दिया गया है और महाराष्ट्र के लोग भी यही मानते हैं. इसलिए एक बार फिर कमेटी की रिपोर्ट के बहाने उलझन पैदा ना करें, नहीं तो सरकार को यह ध्यान में रखना चाहिए कि इस कमेटी को महाराष्ट्र में काम नहीं करने दिया जाएगा.”
भाषा विवाद तब शुरू हुआ जब महायुति सरकार ने अप्रैल 2025 में एक सरकारी आदेश (GR) जारी किया. इसमें कहा गया कि हिंदी को कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया जाएगा. यह कदम केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के तहत प्राइमरी स्कूल लेवल पर लागू किया जा रहा था.
महाराष्ट्र में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलकों ने इस फैसले का तुरंत विरोध करना शुरू कर दिया. हालात को देखते हुए फडणवीस सरकार ने माना कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी और छात्र किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा को चुन सकते हैं. इस महीने की शुरुआत में आदेश को संधोधित कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि हिंदी 'सामान्य तौर पर' तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाएगी.
हालांकि, संशोधित आदेश में एक शर्त थी. अगर किसी कक्षा में कम से कम 20 छात्र हिंदी के बजाय कोई अन्य भारतीय भाषा चुनना चाहते हैं, तो स्कूल को शिक्षक नियुक्त करने या ऑनलाइन पढ़ाने का इंतजाम करना होगा.
संशोधित आदेश के खिलाफ विरोध जारी रहा. विपक्षी पार्टियां और साहित्यिक कार्यकर्ता राज्य सरकार पर आरोप लगाने लगे कि वो हिंदी को बढ़ावा दे रही है, जबकि क्षेत्रीय भाषाओं को नजरअंदाज कर रही है. अब महाराष्ट्र सरकार ने दोनों संधोधित आदेशों को ही खारिज कर दिया है.
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