The Lallantop

थैलेसीमिया पीड़ित छह बच्चों को HIV हुआ, MP के सरकारी अस्पताल से कैसे हुई इतनी बड़ी गड़बड़?

Madhya Pradesh में छह बच्चे HIV पॉजिटिव निकले जो पहले से थैलेसीमिया बीमारी से जूझ रहे थे. आशंका है कि बच्चों को दूषित खून चढ़ाया गया था. इसकी जांच के लिए सरकार ने छह सदस्यीय कमिटी के गठन का आदेश दिया है.

Advertisement
post-main-image
बच्चों को अगर दूषित खून चढ़ा दिया जाए तो उन्हें HIV हो सकता है.

मध्य प्रदेश में छह बच्चे HIV पॉजिटिव पाए गए हैं. ये बच्चे पहले से ही थैलेसीमिया से जूझ रहे थे. इनमें चार केस सतना ज़िले के सरकारी अस्पताल से आए हैं. एक केस जबलपुर और एक किसी अन्य जिले में मिला है. मध्य प्रदेश सरकार ने अब इस मामले पर एक्शन लिया है.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

शुरुआती जांच में पाया गया कि बच्चों को दूषित रक्त चढ़ाया गया था जिससे उनमें संक्रमण फैला. इसी की जांच के लिए लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के आयुक्त तरुण राठी ने 6 सदस्यीय जांच कमिटी के गठन का आदेश दिया है. इसे ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि मामले की गंभीरता से जांच करे और 7 दिन के अंदर रिपोर्ट जमा करे. इस कमिटी की अध्यक्षता डॉक्टर सत्य अवधिया करेंगे. कमिटी में रक्त संक्रमण, दवा नियंत्रण और चिकित्सा विशेषज्ञ अधिकारी भी शामिल किए गए हैं. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक़, सभी संक्रमित बच्चों की उम्र 12 से 15 साल के बीच है. अभी तक इनके संक्रमण के स्रोत का पता नहीं चल पाया है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सतना के सिविल सर्जन और जिला अस्पताल के प्रभारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी मनोज शुक्ला ने बताया कि जो बच्चे थैलेसीमिया बीमारी से गुज़रते हैं, उनमें HIV संक्रमण की संभावना भी बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि खून चढ़ाते वक़्त सभी प्रोटोकॉल का ध्यान रखा गया था. लेकिन खतरा फिर भी रहता है. उन्होंने बताया कि रक्तदान के बाद खून को एलिसा (ELISA) टेस्ट के लिए भेजा जाता है. ये टेस्ट HIV का पता लगाने के लिए किया जाता है. लेकिन इसकी रिपोर्ट आने में कम से कम 45 दिन का समय लगता है. उससे पहले अगर खून चढ़ा दिया जाए तो बीमारी फ़ैल सकती है. 

Advertisement
थैलेसीमिया क्या बला है?

थैलेसीमिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. मतलब ये हमें विरासत में मिलता है. अगर हमारे मम्मी या पापा में से किसी एक को भी ये बीमारी है तो वो हम तक पहुंच जाएगी. ये तब होता है जब हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन्स में कुछ दिक़्क़त आ जाती है. हीमोग्लोबिन हमारे शरीर के रेड ब्लड सेल्स में मौजूद है. काम है शरीर में ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना. 

थैलेसीमिया के दो प्रकार हैं. अगर हमारे मम्मी-पापा में से किसी एक को थैलेसीमिया है, तो हमें थैलेसीमिया माइनर (thalassemia minor) होता है. ये बहुत सीरियस नहीं है. वहीं अगर दोनों को थैलेसीमिया माइनर हो तो 25 पर्सेंट चांस है कि बच्चों को थैलेसीमिया मेजर (thalassemia major) होगा. इसमें रेड ब्लड सेल्स खत्म होने लगते हैं. नतीजा? खून की कमी यानी एनीमिया. 

थैलेसीमिया के लक्षण

- हड्डियां नॉर्मल तरीके से नहीं बढ़तीं. खासतौर पर चेहरे की.

Advertisement

- पेशाब का रंग गाढ़ा होता है.

- बच्चों का विकास बहुत धीमा होता है.

-हमेशा थकान लगती है.

- स्किन का रंग पीला पड़ जाता है.

HIV POSITIVE MADHYA PRADESH KIDS
बच्चों में माता-पिता से आती है बीमारी. (तस्वीर-सांकेतिक)

ये भी पढ़ें: क्या है थैलेसीमिया जिसकी वजह से 'तारक मेहता...' वाले पोपटलाल की शादी होते-होते नहीं हुई?

ये बीमारी कैसे फैलती है?

जैसा कि ऊपर बताया ये बीमारी माता-पिता से ही बच्चों में आती है. अगर परिवार में किसी और को कभी ये बीमारी रही हो तब भी संक्रमण का डर बना रहता है. ये बीमारी ‘जीन में म्युटेशन’ (mutation in genes) यानी बदलाव के कारण होती है. चूंकि बच्चे में माता-पिता के बराबर जीन्स आते हैं इसलिए उसमें बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है. चूंकि ये जेनेटिक है इसलिए ये बीमारी हमसे हमारे बच्चों तक भी जा सकती है. थैलेसीमिया मेजर में हर तीन हफ्ते में खून चढ़ाया जाता है. यदि गलती से दूषित खून चढ़ा दिया जाए तो HIV की संभावना भी बढ़ जाती है. इसलिए मध्य प्रदेश में बच्चों को चढ़ाए गए खून की जांच की जा रही है.

कैसे रोका जा सकता है?

चूंकि ये जेनेटिक बीमारी है इसलिए इसे रोका नहीं जा सकता है. लेकिन आप इसे आगे अपने बच्चों को संक्रमित होने से रोक सकते हैं. अगर कोई महिला गर्भवती है और उसे शक है कि उसकी ससुराल में ये बीमारी है तो टेस्ट के जरिए पता लगाया जा सकता है. बच्चा जब गर्भ में हो तभी इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. ‘एमनीओटिक फ्लूइड’ भ्रूण के आसपास लिक्विड होता है जिसकी जांच से पता लगाया जा सकता है कि होने वाले बच्चे में ये बीमारी है या नहीं. CBC (complete blood count) टेस्ट में अगर हीमोग्लोबिन काउंट कम नज़र आ रहा हो तो थैलेसीमिया की शिकायत हो सकती है. 

वीडियो: सेहत: फर्टिलिटी कम है या नहीं, पता करने के लिए ये टेस्ट करा सकते हैं

Advertisement