कर्नल सोफिया कुरैशी (Sofia Qureshi) को ‘आतंकी की बहन’ कहने वाले मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह (Vijay Shah) के खिलाफ पुलिस ने ऐसी FIR लिखी कि हाई कोर्ट भी भड़क गया. पुलिस को फटकारते हुए हाई कोर्ट की पीठ ने कहा, “ये तो ऐसे तैयार की गई है, जैसे इसे रद्द करना हो.” कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि इस FIR में अपराध के तत्व (Ingredients of the offence) कहां हैं? इसे गंभीर अपराध के तौर पर दर्ज किया जाना चाहिए था.
BJP मंत्री विजय शाह के खिलाफ पुलिस ने ऐसी FIR लिखी, हाई कोर्ट ने सुनवाई शुरू होते ही रगड़ दिया
सोफिया कुरैशी को 'आतंकियों की बहन' कहने वाले विजय शाह के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई है. लेकिन कोर्ट FIR की भाषा से संतुष्ट नहीं है. उसने पुलिस को फटकार लगाई है और इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में दर्ज करने को कहा है.

विजय शाह मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार में मंत्री हैं. बीते दिनों उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था, “जिन्होंने पहलगाम में हमारी बेटियों को विधवा बनाया, हमने उन्हें सबक सिखाने के लिए उनकी ही बहन को भेजा.” आरोप लगा कि मंत्री का इशारा कर्नल सोफिया कुरैशी की ओर था, जो सेना की कार्रवाई की मीडिया ब्रीफिंग के लिए सामने आई थीं.
बयान का वीडियो वायरल हुआ तो बवाल मच गया. विजय शाह हर तरफ से घिरने लगे. बीजेपी मंत्री की जमकर आलोचना हुई. लेकिन मुसीबत तब और बढ़ गई जब हाई कोर्ट ने उनके बयान पर स्वतः संज्ञान लेते हुए FIR दर्ज करने का आदेश जारी कर दिया. 14 मई की रात तक खबर आई कि विजय शाह के खिलाफ पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है.
लेकिन 15 मई को कोर्ट ने सबसे पहले इसी मामले की सुनवाई की तो जस्टिस अतुल श्रीधरन FIR की भाषा देख नाराज हो गए. इंडिया टुडे से जुड़ीं नलिनी शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार, FIR देखने के बाद कोर्ट ने मध्यप्रदेश पुलिस से पूछा,
ये बस इतना ही है? क्या आपने FIR पढ़ी है? इसमें अपराध के तत्व कहां हैं?
कोर्ट का कहना था कि FIR में ऐसी बातें नहीं लिखी गई थीं, जिससे मामले को गंभीर अपराध की श्रेणी में दर्ज किया जा सके. हाई कोर्ट ने पुलिस को फटकारते हुए कहा,
इसे ऐसे तैयार किया गया है, जैसे बाद में इसे रद्द किया जा सके. FIR में कुछ भी नहीं है. इसे संज्ञेय अपराध होना चाहिए लेकिन उन अपराधों की बातें कहां हैं?
कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि 14 मई को उसने इस मामले में जो आदेश दिया था, वह अब से FIR का हिस्सा होगा. बेंच ने ये भी कहा कि पुलिस ने जिस तरह से FIR लिखी है, उससे न्यायालय के प्रति भरोसा नहीं होने की भावना पैदा होती है. इसे देखकर लगता है कि कोर्ट को जांच को प्रभावित किए बिना खुद को मामले की निगरानी करनी होगी.
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