13 दिसंबर 2024 को विपक्षी सांसदों ने 55 हस्ताक्षरों के साथ राज्यसभा सचिवालय (Rajya Sabha Secretariat) को एक नोटिस सौंपा. ये नोटिस इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज, जस्टिस शेखर यादव (Justice Shekhar Yadav) के ख़िलाफ़ महाभियोग का था. ऐसे में सचिवालय ने इस नोटिस पर काम शुरू किया. सांसदों के हस्ताक्षरों का मिलान शुरू किया.
जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग नोटिस पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
Justice Shekhar Kumar विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में 'मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़' बयान देकर विवादों में घिर गए थे. बाद में राज्यसभा में उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया. अब क्या पता चला है?

लेकिन सचिवालय को इस नोटिस में कुछ ‘गड़बड़ियां’ मिलीं. उन्होंने नोटिस के नौ हस्ताक्षरों में विसंगतियां पाईं. उन्हें एक सांसद सरफराज अहमद के हस्ताक्षर दो जगहों पर दिखे. फिर सभी हस्ताक्षरों को वेरिफाई करने का फ़ैसला लिया गया. बाद में सरफराज ने राज्यसभा सचिवालय को बताया कि उन्होंने सिर्फ़ एक बार हस्ताक्षर किया था. जिससे हस्ताक्षरों की कुल संख्या 54 हो गई. ये सारी जानकारियां सामने आई हैं इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से.
इसके बाद राज्यसभा सचिवालय ने तीन मौक़ों पर इन सांसदों को ईमेल भेजे. ये तीन मौक़े थे- 7 मार्च, 13 मार्च और 1 मई. इस ईमेल में कहा गया कि सांसद नोटिस के बारे में चेयरमैन से मिलें. और संबंधित डॉक्यूमेंट्स की प्रमाणित प्रतियां साथ लेकर आएं.
54 में से 29 सांसदों ने सभापति से मिलकर अपने हस्ताक्षरों की पुष्टि की. फिर सचिवालय ने 23 मई को बाक़ी बचे सांसदों को बुलाया. इस दौरान उनमें से 14 ने भी अपने हस्ताक्षरों की पुष्टि कर दी. यानी अब पुष्टि करने वाले सांसदों की संख्या हो गई 43. रिपोर्ट में राज्यसभा सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि 23 मई को ग्यारह सांसदों से फोन पर संपर्क नहीं हो सका.
इन सांसदों के नाम हैं- कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, सुस्मिता देव, संजीव अरोड़ा, अजीत कुमार भुयान, जोश के मणि, फैयाज़ अहमद, बिकास रंजन भट्टाचार्य, जीसी चंद्रशेखर, राघव चड्डा और एनआर एलांगो.
बाद में इनमें से दो सांसदों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उन्होंने सचिवालय को फोन पर हस्ताक्षर की पुष्टि कर दी है. हालांकि, राज्यसभा के सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बाकी बचे सांसदों में से एक सांसद अजीत कुमार भुयान ने भी हस्ताक्षर की पुष्टि की है. यानी अब मामला कुल 10 सांसदों का फंसा हुआ है.
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, बाक़ी बचे 10 सांसदों में से 6 ने कहा है कि उन्होंने नोटिस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. वहीं, तीन सांसदों से उनके कॉमेंट के लिए संपर्क नहीं हो सका. बाक़ी बचे एक AAP के संजीव अरोड़ा. जिन्होंने अख़बार से कहा कि वो लुधियाना पश्चिम उपचुनाव में व्यस्त हैं. रिपोर्ट कहती है कि इस तरह से 50 सांसदों के हस्ताक्षर की पुष्टि हो गई है. इसका मतलब है कि ये संख्या आगे की कार्रवाई के लिए ज़रूरी (कम से कम 50) तक पहुंच गई है. लेकिन नोटिस पर क्या काम चल रहा है, ये जानकारी अब भी बाहर नहीं आई है.
विपक्षियों ने उठाए सवालजिन 6 सांसदों ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए नोटिस पर हस्ताक्षर की पुष्टि की, उनमें से एक कपिल सिब्बल भी थे. उन्होंने बताया,
मैं उनसे (चेयरमैन से) कई बार मिला. उन्होंने मुझसे हस्ताक्षर के बारे में कभी नहीं पूछा. मुझे नहीं पता कि उन्होंने किस ईमेल आईडी पर मेल भेजा है. मैंने ही हस्ताक्षर के साथ उन्हें नोटिस सौंपा था. अगर चेयरमैन हस्ताक्षरों की पुष्टि नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें इसे खारिज कर देना चाहिए. ताकि हम सुप्रीम कोर्ट जा सकें.
वहीं, सीपीआई-एम सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा,
नोटिस में मेरे हस्ताक्षर को लेकर किसी तरह के संदेह का सवाल ही नहीं उठता. मैं हस्ताक्षर की पुष्टि के लिए जल्द ही पत्र लिखूंगा.
सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नोटिस को खारिज नहीं किया है. क्योंकि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत दिए गए इस नोटिस पर फ़ैसला लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं है. अधिनियम के अनुसार, किसी जज पर महाभियोग लगाने के प्रस्ताव के लिए राज्यसभा में न्यूनतम 50 सांसदों या लोकसभा में न्यूनतम 100 सांसदों की ज़रूरत होती है.
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विवाद क्या था?दरअसल, ये महाभियोग प्रस्ताव जस्टिस शेखर यादव के एक ‘विवादित बयान’ के कारण लाया गया था. बीते साल 8 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस यादव ने कहा था,
मुझे ये कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि ये हिंदुस्तान है… और देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा.
जस्टिस शेखर यादव ने समान नागरिक संहिता (UCC) के बारे में अपने विचार रखे. सवाल किया कि अगर देश एक है और संविधान एक है, तो यहां का कानून एक क्यों नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि हिंदू कानून में भी सती और जोहर जैसी कुप्रथाएं थीं, लेकिन राजा राम मोहन रॉय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे लोगों ने इन बुराइयों को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई. हाई कोर्ट के जज शेखर यादव आगे बोले,
वहीं इस तथ्य के बावजूद कि मुस्लिम कानून में भी तलाक, भरण-पोषण और गोद लेने जैसी समस्याएं थीं. लेकिन उस समुदाय की तरफ से इसे बदलने के लिए कोई पहल नहीं की गई. ऐसी चिंताएं न केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ में, बल्कि ईसाई और पारसी पर्सनल लॉ में भी हो सकती हैं.
जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि अगर पर्सनल कानूनों से ऐसी खामियां दूर नहीं की गईं तो पूरे देश के लिए एक समान कानून लाया जाएगा.
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