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देशभर की अदालतों में साढ़े पांच करोड़ केस पेंडिंग, कैसे नहीं मिलेगी 'तारीख पर तारीख'

केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, Supreme Court में 90 हजार 897, देश के 25 High Court में 63 लाख 63 हजार 406 मामले और निचली अदालतों में 4 करोड़, 84 लाख, 57 हजार 343 मामले लंबित हैं.

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देश भर की अदालतों में लंबित मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है. (इंडिया टुडे)

तारीख पर तारीख... तारीख पर तारीख... दामिनी फिल्म का यह डॉयलॉग भारतीय अदालतों के लिए बेहद मौजूं है. साल दर साल अदालतों पर मुकदमे का बोझ बढ़ता जाता है. कई बार तो लोगों की उम्र छोटी पड़ जाती है मुकदमा नहीं बीतता. बीते रोज यानी 11 दिसंबर को संसद में एक रिपोर्ट पेश हुई है जो भारतीय न्याय व्यवस्था की इस तल्ख सच्चाई की तस्दीक करती है. केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि देशभर की अदालतों में 5 करोड़ 49 लाख से ज्यादा केस लंबित हैं. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि सुप्रीम कोर्ट से निचली अदालतों तक लंबित मामलों का बोझ लगातार बढ़ रहा है.

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केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में 90 हजार 897, देश के 25 हाईकोर्ट में 63 लाख 63 हजार 406 मामले और निचली अदालतों में 4 करोड़, 84 लाख, 57 हजार 343 मामले लंबित हैं. ये आंकड़े 8 दिसंबर, 2025 तक के हैं.

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि अलग-अलग अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे में देरी की कई वजहे हैं. मामलों की जटिलता, सबूतों की प्रकृति, वकीलों, जांच एजेंसियों, गवाहों और वादियों का सहयोग और अदालतों में पर्याप्त ढांचे और स्टाफ की उपलब्धता जैसे कारण लंबित मामलों को बढ़ाते हैं.

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चीफ जस्टिस सूर्यकांत भी चिंता जता चुके हैं

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सूर्यकांत ने भी 22 नवंबर को शपथ लेने से दो दिन पहले देश की अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि देश में 5 करोड़ से ज्यादा लंबित केस न्यायपालिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. इन बैकलॉग से निपटना और विवाद सुलझाने के लिए मीडिएशन को बढ़ावा देना, उनकी दो प्रायोरिटी होंगी. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,

 सुप्रीम कोर्ट में लंबित केस की संख्या 90 हजार को पार कर चुकी है. मेरी पहली और सबसे बड़ी चुनौती ये लंबित केस हैं. मैं इस बात में नहीं जा रहा कि यह कैसे हुआ, कौन जिम्मेदार है. हो सकता है लिस्टिंग बढ़ गई हो.

उन्होंने एक उदाहरण देकर बताया कि दिल्ली के लैंड एक्विजिशन विवाद से जुड़े 1,200 मामले उनके एक फैसले से निपट गए थे. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि दूसरा मुद्दा मीडिएशन है. यह विवाद सुलझाने के सबसे आसान तरीकों में से एक है और यह सच में गेम चेंजर हो सकता है.

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जस्टिस सूर्यकांत ने आगे बताया कि वो हाईकोर्ट और देशभर की ट्रायल कोर्ट से पेंडेंसी की डिटेल रिपोर्ट मंगवाएंगे. हाईकोर्ट से उन पेंडिंग केस के बारे में जानकारी ली जाएगी जिन पर टॉप कोर्ट की कॉन्सिटट्यूशन बेंच फैसला सुनाएंगी.

इतने मुकदमे लंबित होने के क्या कारण हैं?

नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) के डेटा के मुताबिक जिला और तालुका अदालतों में मामले लंबित रहने की सबसे बड़ी वजह वकील का नहीं मिलना है. जिला अदालतों में 61 लाख 66 हजार से ज्यादा मामले इसलिए लंबित हैं क्योंकि उनके लिए कोई वकील उपलब्ध नहीं हैं. 

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इससे पहले साल 2016 में स्टडी दक्ष नाम की एक संस्था ने 40 लाख लंबित मुकदमों का विश्लेषण करके एक स्टडी तैयार की थी. इस स्टडी के मुताबिक, अगर कोई केस किसी हाईकोर्ट में चला गया तो उसका निपटारा होने में औसतन 3 साल और 1 महीना लग सकता है. वहीं मामला निचली अदालत में गया है तो 6 साल लग सकता है. और अगर मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है तो 13 साल का समय लग सकता है.

इतनी बड़ी संख्या में मुकदमों के लंबित होने की एक वजह जजों की कमी भी है. जुलाई 1987 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि हर 10 लाख आबादी पर 50 जज होने चाहिए. लेकिन भारतीय अदालतों में इसके आधे जज भी नहीं है. दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि हर 10 लाख आबादी पर अभी 21 जज हैं.

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