"जजों को बचाने के लिए कोई 'कवच’ और 'तलवार' नहीं है", कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट पर SC ने किसे सुनाया?
Supreme Court ने कहा कि जब कोर्ट के सामने मौजूद व्यक्ति उस काम के लिए सच्ची पछतावा और पश्चाताप दिखाए, तो न्यायिक विवेक के आधार पर माफी दे देनी चाहिए. कहा कि कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की शक्ति जजों के लिए निजी कवच नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट (Contempt of Court) यानी अदालत की अवमानना के मामलों में सजा देने पर तीखी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह संस्था की गरिमा बनाए रखने के लिए है, जजों को आलोचना से बचाने के लिए नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि जब माफी मांगने वाला पछतावा दिखा रहा है तो अदालत को उसकी सजा माफ कर देनी चाहिए. दया न्यायिक विवेक का अभिन्न अंग बने रहना चाहिए.
क्या है मामला?यह मामला नवी मुंबई की एक सोसायटी में जारी सर्कुलर से जुड़ा हुआ है. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2025 में सीवुड्स एस्टेट्स लिमिटेड की कल्चरल डायरेक्टर विनीता श्रीनंदन ने एक सर्कुलर जारी किया. सर्कुलर कुत्तों को खाना खिलाने के विवाद से जुड़ा था. इसमें उन्होंने कोर्ट को ऐसे लोगों की रक्षा करने का आरोप लगाया, जो स्ट्रीट डॉग्स को खाना खिलाते हैं. कथित तौर पर सर्कुलर में कोर्ट को "डॉग माफिया" का हिस्सा बताया था. उन्होंने आरोप लगाया कि शहरी हाउसिंग सोसायटी कुत्तों को खाना खिलाने वालों के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं, जिनकी ज्यूडिशियल सिस्टम यानी न्यायिक प्रणाली में गहरी पैठ है.
हाई कोर्ट ने लिया था खुद से संज्ञानरिपोर्ट के अनुसार यह सर्कुलर सोसायटी के 1500 से अधिक लोगों के बीच सर्कुलेट हुआ. इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया. कोर्ट ने विनीता को आपराधिक अवमानना का दोषी माना. कहा कि सर्कुलर ने अदालत को बदनाम किया और न्यायपालिका की छवि को खराब करने के लिए जारी किया गया था. इस पर विनीता ने कोर्ट से माफी भी मांगी, लेकिन कोर्ट ने माफी देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने उनकी माफी को बेमन से मांगी हुई और बनावटी बताया. हाई कोर्ट ने उन्हें एक हफ्ते की कैद और 2 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई.
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया आदेशइसके बाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ विनीता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अपनी सजा रद्द करवाने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि उनका सर्कुलर आपराधिक अवमानना के दायरे में आता है, लेकिन यह भी कहा कि हाई कोर्ट को माफी मांगने पर उन्हें माफ कर देना चाहिए था. SC ने कहा कि हाई कोर्ट ने माफ न करके गलती की है. कहा कि कोर्ट की अवमानना अधिनियम की धारा 12 के तहत, माफी को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह सशर्त या सीमित है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून खुद न्यायिक गरिमा को बनाए रखने और इंसानी गलतियों को पहचानने के बीच संतुलन बनाता है. जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा,
सजा देने की शक्ति में स्वाभाविक रूप से माफ करने की शक्ति भी शामिल है. खासकर तब, जब कोर्ट के सामने मौजूद व्यक्ति उस काम के लिए सच्ची पछतावा और पश्चाताप दिखाए. यह शक्ति (अवमानना का अपराध) जजों के लिए कोई निजी कवच नहीं है, न ही आलोचना को चुप कराने के लिए कोई तलवार है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने कहा कि दया न्यायिक विवेक का एक अभिन्न अंग बने रहना चाहिए. इसे तब दिखाया जाना चाहिए, जब अवमानना करने वाला ईमानदारी से अपनी गलती स्वीकार करे और उसके लिए प्रायश्चित करना चाहे.
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