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अब तक किन जजों के खिलाफ लाया जा चुका महाभियोग, और उसका नतीजा पता है क्या रहा?

Justice Yashwant Varma के खिलाफ जल्द ही महाभियोग लाया जा सकता है. ये पहला मौका नहीं है, जब किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा रहा है. इससे पहले भी देश के कई जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा चुका है. आइए जानते हैं, इनके बारे में.

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बाएं से दाएं- जस्टिस यशवंत वर्मा, पूर्व जस्टिस पीडी दिनाकरण और जस्टिस जेबी पर्दीवाला | फोटो: आजतक

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के सरकारी बंगले के एक कमरे में आग लगी. आग बुझाने अग्निशमन की टीम पहुंची. आग बुझ गई, लेकिन नोट जल गए. राख में दिख रहे नोट इतने थे कि वो सारे मिलकर कई करोड़ रुपये हो जाते. जज साहब उस समय घर पर नहीं थे. जले हुए नोटों के फोटो खिंच गए, वीडियो बन गए. देखते ही देखते वायरल हो गए. बात हाईकोर्ट के जस्टिस की थी, तो इसलिए सीधे कोई मुंह ना खोले. लेकिन चर्चाएं हर तरफ थीं. सवाल उठ रहे थे न्यायपालिका पर, इसलिए सुप्रीम के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने एक्शन लिया और आंतरिक जांच का आदेश दे दिया. इसके बाद यशवंत वर्मा को भेज दिया गया इलाहाबाद हाईकोर्ट. कहा गया जब तक जांच चल रही है और मामले का निपटारा न हो, तब तक इन्हें कोई काम ना दिया जाए. इधर तीन वरिष्ठ जजों की एक टीम ने मामले की जांच की. और फिर बताया कि हां आरोप सही हैं. 

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कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके बाद जस्टिस यशवंत वर्मा से देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने कहा कि अपने पद से इस्तीफा दे दीजिये. लेकिन जस्टिस वर्मा ने साफ़ मना कर दिया. इसके बाद चीफ जस्टिस ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक रिपोर्ट भेजी और एक सिफारिश की. कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ देश की संसद में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जाए. और ऐसा करके इन्हें पद से हटाया जाए. बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति ने इस सिफारिश को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को भेज दिया है. बताया ये भी जा रहा है कि आने वाले मानसून सत्र में संसद में इस मामले पर कार्यवाही शुरू होगी.      

हालांकि, ये पहला मौका नहीं है, जब किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा रहा है. इससे पहले भी देश के कई जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा चुका है. आइए जानते हैं, इनके बारे में. 

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जस्टिस वी रामास्वामी

जस्टिस वी रामास्वामी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे. 1991 में उनपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. इसके अलावा उनकी नियुक्ति में भी गड़बड़ी की बात सामने आई थी. इसके बाद 1993 में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया. जब प्रस्ताव को पास करवाने की बारी आई, तो कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया. इसकी वजह से महाभियोग के पक्ष में बहुमत साबित नहीं हो पाया. हालांकि बाद में जस्टिस वी रामास्वामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

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जस्टिस वी रामास्वामी
जस्टिस पीडी दिनाकरण

जस्टिस पीडी दिनाकरण सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. 2009 में राज्यसभा के 75 सांसदों ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को एक पत्र लिखकर जस्टिस दिनाकरण को हटाने की सिफारिश की गई थी. उनके खिलाफ सांसदों ने कुल 12 आरोप लगाए थे. हामिद अंसारी ने जस्टिस दिनाकरण के खिलाफ 2010 में जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति भी बना दी थी. जब तक समिति की रिपोर्ट आती, जस्टिस दिनाकरण ने खुद ही इस्तीफा दे दिया था.

जस्टिस सौमित्र सेन

जस्टिस सौमित्र सेन कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस रहे हैं. 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ 24 लाख रुपये की वित्तीय गड़बड़ी का आरोप लगा था. इसके बाद राज्यसभा में जस्टिस सेन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. राज्यसभा से प्रस्ताव पास हो गया तो जस्टिस सौमित्र सेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

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जस्टिस सौमित्र सेन
जस्टिस जेबी पर्दीवाला

जस्टिस जेबी पर्दीवाला गुजरात हाई कोर्ट में जस्टिस थे. 2015 में आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने टिप्पणी की थी. ये टिप्पणी पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के एक मामले में की गई थी. इसके बाद राज्यसभा के 58 सांसदों ने महाभियोग का नोटिस भेजा था. जब तक उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी इस मुद्दे पर कोई फैसला करते, जस्टिस पर्दीवाला ने अपनी टिप्पणी वापस ले ली. इसके बाद महाभियोग का नोटिस भी वापस ले लिया गया.

जस्टिस एसके गंगेले

साल 2015 में ही राज्यसभा के 58 सदस्यों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ महाभियोग के लिए नोटिस दिया. जस्टिस गंगेले पर ग्वालियर की एक अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश का यौन शोषण करने के आरोप लगे. तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी ने नोटिस को स्वीकार करते हुए यौन उत्पीड़न के आरोप में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की. आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया. जिसने अपनी जांच में जस्टिस एसके गंगेले को दोषमुक्त कर दिया.

जस्टिस नागार्जुन रेड्डी

जस्टिस नागार्जुन रेड्डी आंध्रप्रदेश और तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस थे. 2016 में उनके खिलाफ महाभियोग लाने के लिए याचिका दाखिल की गई थी. आरोप था कि जस्टिस रेड्डी ने एक जस्टिस को इसलिए प्रताड़ित किया था, क्योंकि वो दलित थे. इसके बाद राज्यसभा के 61 सदस्यों ने महाभियोग चलाने के लिए हस्ताक्षर किया था. प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही राज्यसभा के 9 सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर वापस ले लिए, जिसके बाद महाभियोग की प्रक्रिया रोक दी गई.

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जस्टिस नागार्जुन रेड्डी
कैसे होता महाभियोग?

भारतीय संविधान की धारा 124 में सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया बताई गई है. धारा 124 का भाग 4 कहता है कि सुप्रीम कोर्ट के जज को सिर्फ संसद ही हटा सकती है. इसके लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. इसके बाद आती है धारा 218. इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट से जुड़े कुछ प्रावधानों को हाईकोर्ट पर भी लागू किया जाएगा. खासकर वो प्रावधान जो सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और उन्हें हटाने से जुड़े हैं. यानी हाईकोर्ट के जजों को हटाने के लिए भी उनके खिलाफ महाभियोग लाना पड़ेगा.

महाभियोग के प्रस्ताव पर संसद में विचार किया जाए, इसके लिए लोकसभा के कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा के कम से कम 50 सांसदों का महाभियोग के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना जरूरी है.

किसी जस्टिस को केवल दो आधारों पर हटाया जा सकता है. उनके “दुर्व्यवहार” और “अक्षमता” साबित होने पर. जज को हटाने की प्रक्रिया क्या होगी, इसके बारे में जज इन्क्वायरी एक्ट- 1968 में विस्तार से बताया गया है. इस एक्ट के मुताबिक एक बार जब संसद के किसी सदन द्वारा महाभियोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को आगे की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करनी होती है. समिति का नेतृत्व भारत के चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के किसी जस्टिस द्वारा किया जाता है, साथ ही इसमें किसी भी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानून के जानकार को रखा जाता है.

अगर ये तीन सदस्यीय समिति आरोपी जज को दोषी पाती है, तो समिति की रिपोर्ट को संसद के उस सदन द्वारा स्वीकार किया जाता है, जिसमें उसे पेश किया गया था. इसके बाद सदन में आरोपी जज को हटाने पर बहस की जाती है.

संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए, लोकसभा और राज्यसभा दोनों में वोटिंग करने वाले सांसदों में से कम से कम दो-तिहाई को जज को हटाने के पक्ष में वोट करना होता है. साथ ही जज को हटाने के पक्ष में पड़े कुल वोटों की संख्या प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों की संख्या के आधे से ज्यादा होनी जरूरी है. अगर ऐसा होता है, तो फिर राष्ट्रपति द्वारा जज को हटाने का आदेश दिया जाता है. 

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ क्या महाभियोग चलाया जा सकता है?

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