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3 साल की सजा के लिए 40 साल चला केस, अब कोर्ट ने दोषी की उम्र देखकर कहा- सजा माफ

मामला 1984 का है. साल 2002 में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए उन्हें दो साल और 15,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. इस फैसले के खिलाफ उन्होंने उसी साल हाईकोर्ट में अपील दायर की. लेकिन हाईकोर्ट में केस 22 सालों तक यह पेंडिंग रहा.

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करप्शन के केस में हाईकोर्ट ने दिया फैसला. (फाइल फोटो)

करप्शन के एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 90 साल के बुजुर्ग को राहत दी है. कोर्ट ने उनकी तीन साल की सजा माफ करके 1 दिन कर दी. कोर्ट ने यह फैसला बुजुर्ग की उम्र, स्वास्थ्य संबंधी परेशानी और लंबे समय से केस पेंडिंग रहने को ध्यान में रखते हुए दिया है. कोर्ट का कहना है कि इस तरह की कैद से बुजुर्ग को अपूर्णीय क्षति हो सकती है. ऐसे में उम्र और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए सजा कम कर का मकसद ही विफल हो जाएगा.

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लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुरेंद्र कुमार स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (STC) में चीफ मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्यरत थे. 1984 में उन पर एक व्यापारी से 15,000 रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगा था. गिरफ्तार होने के एक दिन बाद ही उन्हें जमानत मिल गई थी.

19 साल बाद मिली थी सजा   

पूरा मामला करीब 19 साल तक चला. साल 2002 में निचली अदालत ने उन्हें दो साल और 15,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. इस फैसले के खिलाफ उन्होंने उसी साल हाईकोर्ट में अपील दायर की. लेकिन हाईकोर्ट में केस 22 सालों तक पेंडिंग रहा.

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जस्टिस जसमीत सिंह ने 8 जुलाई को फैसला सुनाते हुए कहा, 

यह मामला संविधान में दिए गए ‘तुरंत न्याय’ के अधिकार के खिलाफ है. 40 साल तक एक व्यक्ति के सिर पर फैसले की तलवार लटकी रहे, यह अपने आप में एक बड़ी सजा है.

उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए मिली राहत

हाईकोर्ट में बेंच के सामने सुरेंद्र कुमार के वकील ने अपनी बात रखते हुए कहा, 

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वह अब 90 साल के हैं. कई बीमारियों से भी जूझ रहे हैं. ज्यादातर समय बिस्तर पर बिताते हैं. उन्होंने ट्रायल में पूरी तरह सहयोग किया. जमानत की सभी शर्तें भी पूरी कीं.

CBI ने भी यह माना कि कोर्ट के पास सजा कम करने का अधिकार है. उम्र, स्वास्थ्य और लंबी देरी जैसे कारणों को देखते हुए सजा में राहत दी जा सकती है. कोर्ट ने माना कि सुरेंद्र कुमार ने ट्रायल और अपील में कोई देरी नहीं की. यह उनका पहला और इकलौता अपराध था. उन्होंने जुर्माना पहले ही भर दिया था. 

इन परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने उनकी सजा घटाकर “जितना समय पहले जेल में काटा, उतना ही” कर दी.

क्या था मामला?

1984 में दर्ज FIR के मुताबिक, STC ने 140 टन ड्राई फिश सप्लाई के लिए कॉन्ट्रैक्ट निकाला था. मुंबई की एक कंपनी के पार्टनर अब्दुल करीम हमीद ने बोली लगाई. उसका आरोप था कि सुरेंद्र कुमार ने ऑर्डर दिलाने के एवज में 15,000 रुपये की रिश्वत मांगी. उन्होंने पहले 7,500 रुपये होटल में लाने को कहा. हमीद ने CBI को शिकायत दी. छापेमारी में सुरेंद्र कुमार रिश्वत लेते पकड़े गए.

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