The Lallantop

अनजान चेहरा नहीं, संघ के पुराने सिपाही, NDA ने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन से जुड़ी हर जानकारी

CP Radhakrishnan Profile: महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु के अनुभवी BJP नेता सीपी राधाकृष्णन अब NDA के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. ओबीसी कार्ड से लेकर साउथ की राजनीति और RSS कनेक्शन तक- जानिए उनके राजनीतिक सफर की पूरी कहानी.

Advertisement
post-main-image
महाराष्ट्र के राज्यपाल और NDA के उपराष्ट्रपति पद प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन. (PTI)

बीते कुछ सालों से भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का एक खास ट्रैक रिकॉर्ड देखने को मिलता है. जब सबको लगता है कि अमुक नेता को बड़ा पद मिलेगा, तब पार्टी अचानक किसी अनजान या कम चर्चित चेहरे को सामने ला देती है. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल और यहां तक कि मुख्यमंत्री जैसे पदों पर नाम आते-आते जिस दिन एलान होता है, लोग नाम सुनकर अक्सर चौंक जाते हैं.

Advertisement

रविवार, 17 अगस्त 2025 को फिर वैसा ही हुआ. BJP ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन, यानी सीपी राधाकृष्णन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. राधाकृष्णन भाजपा के पुराने नेता रहे हैं और उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से गहरा नाता है.

सीपी राधाकृष्णन का जन्म 20 अक्टूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुप्पुर में हुआ. जातीय पृष्ठभूमि से देखें तो वे गाउंडर (कोंगु वेल्लालर) समुदाय से आते हैं, जो तमिलनाडु में एक मजबूत ओबीसी वर्ग है. यही समुदाय पश्चिमी तमिलनाडु की राजनीति में अच्छा-खासा असर रखता है.

Advertisement

राधाकृष्णन ने RSS स्वयंसेवक के तौर पर अपना सफर शुरू किया. पढ़ाई में भी बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (BBA) तक गए, लेकिन राजनीति में ही जम गए. वे खेलों के भी शौकीन रहे और कॉलेज लेवल पर टेबल टेनिस के चैंपियन और लंबी दूरी के धावक थे. उन्हें क्रिकेट और वॉलीबॉल भी काफी पसंद था.

पॉलिटिकल करियर

राजनीति में उनकी असली एंट्री 1974 में हुई, जब वे जनसंघ की तमिलनाडु स्टेट एग्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल किए गए. उसके बाद BJP के साथ जुड़े रहे और धीरे-धीरे संगठन में ऊपर आते गए. BJP के चेहरे के तौर पर वे तमिलनाडु की राजनीति में तेजी से चमकते गए.

Advertisement

1996 में उन्हें तमिलनाडु BJP का स्टेट सेक्रेटरी बनाया गया. फिर 1998 में पार्टी ने उन्हें कोयम्बटूर लोकसभा सीट से टिकट दिया. वे ना सिर्फ लड़े बल्कि जीत भी गए. 1999 में उसी सीट से फिर जीते और लगातार दूसरी बार सांसद बने.

CP Radhakrishnan Vice President Candidate
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीपी राधाकृष्णन. (PTI)

दो बार के सांसद रहते उन्होंने कई अहम कमेटियों में काम किया. इस दौरान सीपी राधाकृष्णन टेक्सटाइल्स कमेटी के चेयरमैन बने. PSU कमेटी के मेंबर रहे. फाइनेंस की कंसल्टेटिव कमेटी के भी मेंबर रहे. यहां तक कि वे स्टॉक एक्सचेंज स्कैम पर बनी स्पेशल कमेटी के सदस्य भी रहे.

2004 में सीपी राधाकृष्णन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. वे ताइवान के पहले संसदीय डेलीगेशन में भी शामिल हुए थे.

2003 से लेकर 2007 तक वे तमिलनाडु BJP के स्टेट प्रेसिडेंट रहे. इस दौरान उन्होंने 19,000 किलोमीटर लंबी 93 दिनों की रथयात्रा निकाली. मुद्दे थे- नदियों का लिंक, आतंकवाद का खात्मा, यूनिफॉर्म सिविल कोड, छुआछूत का खात्मा और नशे के खिलाफ मुहिम. राधाकृष्णन यहीं नहीं रुके. उन्होंने दो और पदयात्राएं भी कीं. उनकी पहचान ग्राउंड पर काम करने वाले नेता की यूं ही नहीं है.

CP Radhakrishnan Amit Shah
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ सीपी राधाकृष्णन. (PTI)

तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) नीत सरकार में भी उन्हें अहम जिम्मेदारी मिली. 2016 और 2020 तक उन्होंने कोयर बोर्ड, कोच्चि के चेयरमैन की जिम्मेदारी संभाली. उनके नेतृत्व में कोयर एक्सपोर्ट 2,532 करोड़ रुपये तक पहुंचा, जो उस समय एक बड़ा रिकॉर्ड था.

साउथ के बड़े BJP नेता के तौर पर पहचान रखने वाले सीपी राधाकृष्णन को पार्टी ने एक और बड़ी जिम्मेदारी दी. 2020 में उन्हें BJP का केरल प्रभारी बनाया गया. इस पद पर वे 2022 तक रहे.

इसके बाद तो उन्होंने राज्यपाल पोजिशन के लिए उड़ान भरी. 2023 में झारखंड के राज्यपाल बनाए गए. जमीन से जुड़ाव की बात को उन्होंने फिर साबित किया. महज चार महीने में उन्होंने राज्य के सभी 24 जिलों का दौरा कर लिया. उनके अनुभव में तेलंगाना के राज्यपाल और पुडुचेरी उपराज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी शामिल है.

2024 से सीपी राधाकृष्णन महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. यानी उनका सफर संघ से सांसद, सांसद से प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष से राज्यपाल और सबकुछ ठीक रहा तो अब उपराष्ट्रपति तक पहुंच रहा है.

2004 में AIADMK के साथ गठबंधन की कोशिश

2004 का लोकसभा चुनाव तमिलनाडु की राजनीति में बड़ा मोड़ था. उस वक्त राधाकृष्णन तमिलनाडु BJP अध्यक्ष थे. उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) की मजबूत होती दोस्ती का तोड़ निकालना.

उन्होंने खुले मंच से AIADMK को NDA में वापसी का न्योता दिया. याद रखिए, यही वो AIADMK थी, जिसने 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा दी थी. लेकिन राधाकृष्णन ने कहा था कि राजनीति में पुरानी बातें याद करके नहीं चला जाता. उन्होंने कहा कि 1998 में यही AIADMK थी, जिसने BJP से हाथ मिलाकर 'अछूत' होने का टैग हटाया. डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने आगे कहा, "हम इसके लिए AIADMK महासचिव जे जयललिता के आभारी हैं."

राधाकृष्णन खुले तौर पर DMK-कांग्रेस की ‘सांठगांठ’ के खिलाफ गठबंधन बनाने की कोशिश करते रहे. उन्हें कामयाबी भी मिली और 2004 लोकसभा चुनाव BJP और AIADMK ने मिलकर लड़ा. हालांकि नतीजा उनके पक्ष में नहीं रहा. 2004 चुनाव में BJP और AIADMK दोनों का सफाया हो गया. DMK ने 16, कांग्रेस ने 10, और BJP-AIADMK को 0 सीटें मिलीं. लेकिन इस एपिसोड से यह जरूर साबित हुआ कि राधाकृष्णन गठबंधन राजनीति को बखूबी समझते हैं.

खांटी संघी, केंद्र का भरोसा

राधाकृष्णन को 'खांटी संघी' कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा. उन्होंने राजनीतिक नजरिया ही RSS से सीखा है, क्योंकि यहीं से उनकी राजनीति की शुरुआत होती है. राधाकृष्णन उसी RSS की विचारधारा में गढ़े गए. वे तमिलनाडु में BJP के ऐसे गिने-चुने चेहरे रहे, जिन पर दिल्ली की केंद्रीय लीडरशिप को पूरा भरोसा रहा.

उनके व्यक्तित्व की बात करें तो उन्हें लोग बेहद सौम्य स्वभाव का बताते हैं. उनकी पहचान एक शांत और संतुलित नेता की रही है. यही वजह है कि जब उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया, तो उन्होंने मराठी-हिंदी भाषा विवाद जैसे मसलों पर भी संतुलित बयान दिए. अब क्योंकि वे खुद तमिल हैं, और तमिलनाडु में तो ‘जबरन हिंदी थोपने’ के आरोप लगते रहते हैं. इस लिहाज से भाषा विवाद पर उनका नजरिया उनकी शख्सियत को बयां करता है.

जुलाई 2025 में राधाकृष्णन ने भाषा विवाद पर बोलते हुए कहा था,

"अगर हम इस तरह की नफरत फैलाएंगे, तो कौन निवेश करने आएगा... आगे चलकर, हम महाराष्ट्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं... मैं हिंदी नहीं समझ पाता, और यही मेरे लिए एक बाधा है... हमें ज्यादा से ज्यादा भाषाएं सीखनी चाहिए, और हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए..."

इस तरह उन्होंने मातृभाषा और दूसरी भाषा दोनों मोर्चों पर सधी हुई बात कह दी.

राजनीतिक विरोधियों के लिए भी उनका मन सम्मान की भावना से भरा नजर आता है. 2011 में जब स्पेशल कोर्ट ने कोयम्बटूर ब्लास्ट केस (1998) के आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई, तो राधाकृष्णन ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उपलब्धि का जिक्र किया था. दी हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा था,

"मुझे आश्चर्य नहीं है कि कोयम्बटूर सीरियल ब्लास्ट केस के मुख्य आरोपियों को केवल उम्रकैद की सजा दी गई है... हम एक ऐसा देश हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ अदालती फैसले (मौत की सजा) पर अमल नहीं कर सका, जिन्होंने एक व्यक्ति के तौर पर नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री के तौर पर हिंद महासागर क्षेत्र में शांति बनाए रखने का फैसला लिया था."

तमिलनाडु और सीपी राधाकृष्ण ही क्यों?

अब सबसे बड़ा सवाल- BJP ने उपराष्ट्रपति पद के लिए तमिलनाडु से ही अपना प्रत्याशी क्यों चुना? दरअसल, इसकी कई परतें है, जिनपर सीपी राधाकृष्णन एकदम फिट बैठते हैं.

ओबीसी फैक्टर: राधाकृष्णन गाउंडर (कोंगु वेल्लालर) जाति से आते हैं. BJP उन्हें बनाकर ओबीसी कार्ड खेल रही है. ये दूसरा मौका होगा जब कोई ओबीसी शख्स राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति बनेगा.

साउथ का विस्तार: BJP अभी भी दक्षिण भारत (खासकर तमिलनाडु और केरल) में कमजोर है. लेकिन 2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में एक बड़े ओबीसी नेता को उपराष्ट्रपति बनाना वो भी सीपी राधाकृष्णन जैसे साउथ के पुराने और पॉपुलर चेहरे को, वहां के मतदाताओं को पार्टी का बड़ा संदेश है.

संगठन पर पकड़: राधाकृष्णन संघ के पुराने आदमी हैं. ऐसे नेता को उपराष्ट्रपति बनाकर BJP संदेश देना चाहती है कि पार्टी अभी भी अपने 'मूल' (RSS) के प्रति वफादार है.

DMK को बैकफुट पर लाना: जैसा पब्लिक पॉलिसी एडवाइजर बानुचंद्र नागराजन ने कहा, "DMK को एक तमिल व्यक्ति को वोट देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, वो भी ओबीसी गाउंडर को. इससे गठबंधन सहयोगी कांग्रेस नाराज हो सकती है." यानी BJP ने ऐसी चाल चल दी है, जिससे पार पाना DMK के लिए आसान नहीं होगा.

कुल मिलाकर ये विपक्ष के भीतर दरार की संभावना बढ़ाने वाला कदम है, जिसका नतीजा तो आने वाले दिनों में ही दिखेगा. लेकिन DMK के लिए ‘तमिल अस्मिता’ को नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल होगा.

अचानक उम्मीदवारी कैसे बनी?

यही असली खेल है. राधाकृष्णन की उम्मीदवारी की कहीं कोई चर्चा नहीं थी. मीडिया और पॉलिटिकल सर्कल में उनका कोई नाम नहीं था. वो भी एक साउथ इंडियन फेस, जिसका शायद ही किसी ने अनुमान लगाया हो.

लेकिन अचानक सीपी राधाकृष्णन का नाम आने के पीछे कुछ मजबूत वजह हैं. सबसे पहले, वे एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं. दूसरा, संघ का भरोसा है. तीसरा, ओबीसी प्लस साउथ का डबल फायदा. चौथा, गवर्नर रहते हुए प्रशासनिक अनुभव. पांचवा, BJP का पुराना पैटर्न यानी चौंकाकर सबको गलत साबित करना.

सीपी राधाकृष्णन की कहानी वही है जो BJP की राजनीति की असल ताकत है- जमीन से उठे, संघ की शाखा में तपे और धीरे-धीरे सत्ता की ऊंचाइयों तक पहुंचे, दो बार सांसद बने, राज्यपाल बने और अब उपराष्ट्रपति पद की रेस में हैं.

उनकी उम्मीदवारी ने ना सिर्फ DMK-कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों को चौंकाया है बल्कि तमिलनाडु समेत पूरे दक्षिण भारत में BJP का बड़ा संदेश दे दिया है. मतलब पार्टी सिर्फ हिंदी पट्टी की नहीं रही, बल्कि पूरे देश की राजनीति साधने का इरादा रखती है.

राधाकृष्णन का सधा हुआ, विनम्र और संघनिष्ठ व्यक्तित्व उन्हें NDA में उपराष्ट्रपति पद का 'मजबूत उम्मीदवार' बनाता है. सबसे अहम बात, वो BJP की उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें हमेशा वही तीर चलता है जिसकी आवाज किसी को सुनाई ही नहीं देती.

वीडियो: पीएम मोदी ने लाल किले से की RSS तारीफ की, अखिलेश यादव ने क्या याद दिलाया?

Advertisement