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बढ़ती गर्मी से पिघलकर गिरी बर्फ की चट्टानें, स्विट्जरलैंड का पूरा गांव तबाह

वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐसा बढ़ती गर्मी की वजह से हुआ. लगातार बढ़ रहे तापमान ने इलाके की जमीन के अंदर जमी हुई बर्फ को पिघला दिया. इस तरह की बर्फ को ‘परमाफ्रॉस्ट’ कहा जाता है. ये चट्टानों को बांधे रखती है. लेकिन बर्फ पिघलने की वजह से यह परत कमजोर हुई, और चट्टानें नीचे खिसकने लगीं. जिससे ग्लेशियर के ऊपर से बर्फ का मलबा नीचे आ गिरा.

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रविवार 18 मई को ब्लाटेन गांव की तस्वीर वहीं दूसरी ओर लैंडस्लाइट के बाद की तस्वीर. (तस्वीर : इंडिया टुडे)

स्विट्ज़रलैंड के एक गांव में लैंडस्लाइड की घटना ने क्लाइमेट चेंज के गंभीर नतीजों को सामने लाकर रख दिया है. BBC की रिपोर्ट के अनुसार, 28 मई की दोपहर साउथ लोट्सचेंटल घाटी के ब्लाटेन गांव के पास स्थित बिर्च ग्लेशियर के ऊपर की चट्टानें अचानक खिसक कर नीचे गिर आईं. बताया जा रहा है कि गांव का 90 पर्सेंट एरिया इसकी चपेट में आ गया. दर्जनों घर पूरी तरह से ढह गए हैं. हालांकि घटना का पहले से अंदेशा था, इसलिए गांव को पहले ही खाली करा लिया गया था. लेकिन एक व्यक्ति को लापता बताया गया है.

न्यूज एजेंसी AP की रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐसा बढ़ती गर्मी की वजह से हुआ. लगातार बढ़ रहे तापमान ने इलाके की जमीन के अंदर जमी हुई बर्फ को पिघला दिया. इस तरह की बर्फ को ‘परमाफ्रॉस्ट’ कहा जाता है. ये चट्टानों को बांधे रखती है. लेकिन बर्फ पिघलने की वजह से यह परत कमजोर हुई, और चट्टानें नीचे खिसकने लगीं. जिससे ग्लेशियर के ऊपर से बर्फ का मलबा नीचे आ गिरा.

जानकारी के मुताबिक, घटना से पहले ही सरकार ने 300 लोगों और जानवरों को गांव से विस्थापित कर लिया था. अलास्का यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर और साइंटिस्ट मार्टिन ट्रूफर ने बताया, “मलबे ने ग्लेशियर को ढककर रखा था. इससे बर्फ के पिघलने की गति को धीमी हो जाती है, लेकिन उसका भार इतना बढ़ गया कि बर्फ तेजी से खिसकने लगी.”

ग्लेशियर का पिघलना क्यों खतरनाक?

ग्लेशियर के पिघलने से उनके नीचे झीलें बनती जाती हैं जो अक्सर तबाही लाती हैं. जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघलते हैं, झीलों में पानी बढ़ता जाता है और एक समय ये आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बना देते हैं

स्विट्ज़रलैंड के अलावा ये घटनाएं पूरी दुनिया में हो रही हैं

 - साल 2022 में इटली के डोलोमाइट पहाड़ों पर ‘मार्मोलाडा ग्लेशियर’ से एक अपार्टमेंट जितना बड़ा हिस्सा गर्मी में टूटकर गिरा था. इससे 11 टूरिस्ट की मौत हो गई.
- साल 2016 में तिब्बत के अरू पहाड़ों (Aru mountain range) पर एक ग्लेशियर अचानक ढह गया जिससे 9 लोग और उनके कई पशुओं की मौत हो गई.  
- अप्रैल 2025 में एक ग्लेशियर झील के फटने से लैंडस्लाइड हुआ. जिसमें 2 लोगों की जान चली गई.

ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में ग्लेशियर्स पर शोध करने वाली लॉनी थॉम्पसन ने बताया कि ग्लेशियर्स के अचानक गिरने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और हजारों लोग इस खतरे के बीच रह रहे हैं.

समुद्रों पर इसका प्रभाव

ग्लेशियर के पिघलने से उनका पानी समुद्र में मिल जाता है जो समुद्र के जल स्तर को बढ़ा देता है. इससे निचले इलाकों में बसे शहरों और द्वीपों के डूबने का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही इसका प्रभाव पहाड़ों के पास रहने वाले लोगों पर भी पड़ता है. इन इलाकों में रहने वाले लोगों को पर्याप्त मात्रा में पीने और सिंचाई का पानी नहीं मिल पाता.

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कोयले, पेट्रोल और डीजल के उपयोग से ग्रीनहाउस गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन) ने धरती को इतना गर्म कर दिया है कि अब ग्लेशियर्स का पिघलना रोका नहीं जा सकता. इसे कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं-

- साल 1950 से अब तक Alps के ग्लेशियर्स का आधा हिस्सा खत्म हो चुका है.
- साल 2023 में स्विट्ज़रलैंड ने अपने सभी ग्लेशियर्स का 4% हिस्सा खो दिया.
- पेरू ने पिछले 60 सालों में अपने ग्लेशियर्स की सतह का लगभग 50% हिस्सा गंवा दिया है. वहीं साल 2016 से 2020 के बीच, 175 ग्लेशियर केवल जलवायु परिवर्तन की वजह से गायब हो गए.

साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक नए शोध के मुताबिक, अगर धरती का तापमान स्थिर भी हो जाए, तो भी दुनिया के 40% ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे. लेकिन साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को मान लिया जाए, माने अगर तापमान को 1.5°C तक सीमित किया जाए तो दोगुने ग्लेशियर बचाए जा सकते हैं.

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