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माफियाओं से रिश्वत, 50 SHO पर एक्शन और ड्राइवरों की कमी, अपने ही भ्रष्टाचार से जूझती बिहार पुलिस!

बिहार पुलिस के पास 9,465 गाड़ियां हैं. और इनको चलाने वाले सिर्फ 3,488. यहीं से शुरू होता है माफियाओं और पुलिस के बीच सांठगांठ का खेल.

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सरकारी पुलिस ड्राइवरों की भारी कमी को इस स्थिति की असली वजह बताई गई है. (प्रतीकात्मक फ़ोटो- इंडिया टुडे)

बिहार में बीते तीन साल में कम से कम 50 पुलिस स्टेशन प्रमुखों (Station House Officers) यानी SHO पर कार्रवाई हुई है. उन्हें या तो सस्पेंड किया गया है या फिर पुलिस लाइन में भेज दिया गया है. उन पर आरोप है कि उन्होनें राज्य के शराब और बालू माफियाओं से रिश्वत लेने में प्राइवेट वाहन ड्राइवर्स के साथ मिलीभगत की.

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े संतोष सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक़, इसकी वजह है सरकारी पुलिस ड्राइवरों की भारी कमी. इसी कमी की वजह से बिहार पुलिस को निजी वाहनों का इस्तेमाल करना पड़ता है. जिससे ‘भ्रष्टाचार’ के मौक़े पैदा होते हैं.

रिपोर्ट में एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय द्वारा दायर की गई RTI के जवाब का हवाला दिया गया है. बताया गया कि बिहार में कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल स्तर के 10,390 ड्राइवरों के स्वीकृत पद हैं. इनमें से सिर्फ़ 3,488 पद ही भरे हुए हैं. ये तब है जब बिहार पुलिस के पास 9,465 वाहन हैं.

बिहार में कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल स्तर के ड्राइवरों के स्वीकृत पद10,390
इनमें से भरे हुए पद3,488
बिहार पुलिस के पास वाहनों की संख्या 9,465

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रिपोर्ट के मुताबिक़, राजधानी पटना में कॉन्स्टेबल ड्राइवर के लिए 704 और हेड कांस्टेबल ड्राइवर के लिए 166 स्वीकृत पद हैं. लेकिन सिर्फ़ 252 कॉन्स्टेबल ड्राइवर और 109 हेड कांस्टेबल ड्राइवर तैनात हैं. स्टाफ की कमी से जूझ रहे कुछ ज़िलों की लिस्ट नीचे है-

संख्याज़िलास्वीकृत पदभरे हुए पद
1.अररिया16656
2.सीतामढ़ी20357
3.बक्सर13840
4.मुंगेर12259

रिपोर्ट बताती है कि बिहार पुलिस ने फिलहाल 130 निजी वाहन किराए पर ले रखे हैं. इनमें से कई मामलों में वाहनों के ड्राइवर्स का पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं किया गया है. अखबार ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया,

पुलिस ड्राइवर्स के पदों को भरना कई बार प्राथमिकता नहीं होती. ज़िला पुलिस को अक्सर प्राइवेट ड्राइवर्स के साथ प्राइवेट वाहन किराए पर लेने पड़ते हैं. जिनके आपराधिक इतिहास की अक्सर पुष्टि नहीं की जाती. यहीं पर पुलिस अधिकारियों के इन ड्राइवर्स के साथ मिलीभगत की संभावना होती है. जो वसूली एजेंट के रूप में काम कर सकते हैं.

एक अन्य पुलिस अधिकारी ने अखबार को बताया कि 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से ही थाना प्रभारी जांच के घेरे में हैं. उन्होंने कहा, 'पुलिस थानों में काम करने वाले प्राइवेट ड्राइवर अक्सर भ्रष्टाचार में संलिप्त होते हैं.'

वहीं, एडिशनल डायरेक्टर जनरल (हेडक्वार्टर) कुंदन कृष्णन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इन खाली पड़े पदों (पुलिस ड्राइवरों) के लिए भर्ती प्रक्रिया चल रही है. जल्द ही विज्ञापन जारी किया जाएगा.

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