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'धर्म बदलकर आप SC-ST केस नहीं कर सकते... ' हाईकोर्ट ने पादरी की FIR रिजेक्ट कर दी

आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कर दिया कि धर्मांतरण के बाद पिछला धर्म और उस धर्म की जाति का दर्जा खत्म हो जाता है. एक पादरी से जुड़ी याचिका पर कोर्ट ने ये फैसला दिया है. लेकिन ये मामला था क्या?

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कोर्ट ने कहा कि धर्म बदलने के बाद कोई अनुसूचित जाति का लाभ नहीं ले सकता

अनुसूचित जाति का कोई हिंदू अगर ईसाई बन जाता है तो क्या नए धर्म में उसकी जाति उसके साथ जाती है? क्या एससी-एसटी एक्ट के तहत उसे मिलने वाले सुरक्षा और संरक्षण नए धर्म में भी जारी रहते हैं? इस सवाल का जवाब दिया है आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने. यहां एक पादरी ने एससी-एसटी एक्ट के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराया. बताया कि जाति के आधार पर उसका उत्पीड़न किया जा रहा है. 

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आरोपी व्यक्ति ने इस दावे को कोर्ट में चैलेंज कर दिया और कहा कि पादरी ने ईसाई धर्म अपना लिया है इसलिए वह अब अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप के योग्य नहीं हैं. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला दिया कि धर्म बदलने के बाद पादरी ने अनुसूचित जाति का दर्जा खो दिया है. ऐसे में वह एससी-एसटी एक्ट का इस्तेमाल नहीं कर सकता. 

मामला क्या है विस्तार से बताते हैं 

इंडिया टुडे ग्रुप के संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कोट अपलेम कस्बे के रहने वाले पादरी चिंतदा आनंद ने अक्कला रामीरेड्डी के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराई थी. आनंद दशक भर से पादरी हैं. 2021 में दर्ज शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया गया था कि अक्कला रामीरेड्डी और अन्य लोगों ने जाति के आधार पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया. पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला भी दर्ज कर लिया. 

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उधर रामीरेड्डी और अन्य ने अदालत में इसे चुनौती दे दी. कोर्ट से उन्होंने एससी-एसटी का मामला खारिज करने की मांग की. याचिकाकर्ताओं के वकील फणी दत्त ने कोर्ट में तर्क दिया कि आनंद ने ईसाई धर्म अपना लिया है. 10 साल से भी ज्यादा समय से पादरी के रूप में काम कर रहा है. इसलिए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के तहत वह अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप में योग्य नहीं हैं.

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं. गवाहों ने पुष्टि की कि आनंद 10 साल से ज्यादा समय से पादरी के रूप में काम कर रहे हैं. इसके बाद कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा, 

अनुसूचित जाति के व्यक्ति जो हिंदू धर्म के अलावा कोई अन्य धर्म अपनाते हैं, वे अपना अनुसूचित जाति का दर्जा खो देते हैं. लिहाजा, एससी/एसटी एक्ट के तहत दायर की गई शिकायत अमान्य है.

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जाति प्रमाण पत्र पर क्या बोला कोर्ट?

आनंद के वकील ईरला सतीश कुमार ने दलील दी कि आनंद के पास वैध अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र है. इससे वह एक्ट के तहत संरक्षण के योग्य है. इस पर जस्टिस हरिनाथ ने स्पष्ट किया कि ईसाई धर्म में जातिगत भेदभाव नहीं है. भले ही आनंद के पास कोई मौजूदा जाति प्रमाण पत्र क्यों न हो, इस कानून के तहत उनके अनुसूचित जाति के दर्जे को खत्म कर दिया गया है. एससी/एसटी कानून समुदायों को भेदभाव से बचाने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसके प्रावधान उन लोगों पर लागू नहीं होते जिन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया है. 

हाइकोर्ट ने अपने निर्णय में साफ किया, 

अनुसूचित जाति (एससी) से संबंधित व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाने पर तुरंत जाति का दर्जा खो देते हैं. इससे एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत उन्हें मिलने वाली सुरक्षा और संरक्षण भी समाप्त हो जाते हैं. 

कोर्ट ने पाया कि आनंद ने झूठी शिकायत दर्ज करवाकर एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग किया है. अदालत ने बिना सत्यापन के मामला दर्ज करने के लिए पुलिस की भी आलोचना की. जस्टिस हरिनाथ ने रामीरेड्डी और अन्य के खिलाफ मामला खारिज करते हुए कहा कि आनंद की शिकायत में कानूनी आधार नहीं है. 

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